कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
तेरी एक हँसी के आगे
अपने गम भूल जाते थे,
कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
चाँद को दावत देते थे
ये तारे मुँह फुलाते थे,
कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
रात की रानी महकती थी छूकर तुझको
जुगनू चमकना भूल जाते थे,
कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
एक शोखी हम पर आती थी
जब तेरा झूठा खाते थे,
कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
बाहर जाना भूल चुके थे
तेरे सपनों में आते थे,
कितने ख्वाब सजाते थे
जब तुझसे मिलने आते थे ।
पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’
कोटा, राज.
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