स्त्री और नदी
दोनों ही समाज में वन्दनीय है तब तक जब तक कि वो अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन नहीं
करती । स्त्री का व्यक्तित्व स्वच्छ निर्मल नदी की तरह है जिस प्रकार नदी का
प्रवाह पवित्र और आनन्द कारक होता है उसी प्रकार सीमा रेखा में बंधी नारी आदरणीय
और वन्दनीय शक्ति के रूप में परिवार और समाज में रहती
है। लेकिन इतिहास साक्षी है की जब –जब भी नदियों ने
अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन किया है समाज बड़े-बड़े संकटों से जूझता नजर आया है। तथाकथित
कुछ महिलाओं ने आधुनिकता और स्वतंत्रता के नाम पर जब से स्वच्छंद विचरण करते
हुए सीमाओं का उल्लंघन करना शुरू किया है तब से
महिलाओं की स्थिति दयनीय और हेय होती चली गयी है । इसका खामियाज़ा उन महिलाओं
को भी उठाना पढ़ा है जो समाज के अनुरूप मर्यादित जीवन जीती है इसका बहुत बढ़ा उदाहरण
हमारा सिनेमा है जिसने समाज को दूषित कलुषित मनोरंजन देकर युवतियों को भटकाव की ओर
धकेला है । समाज में आये दिन घटने वाली शर्मनाक घटनाएं जिनसे समाचार पत्र भरे पढ़े
है सीमाओं के उल्लंघन के साक्षी है रामायण कि एक घटना
याद आती है कि जब लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा एक बार खींच दी गयी तो वह केवल एक
रेखा मात्र नहीं बल्कि सामाजिक मर्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाली मर्यादा की रेखा
बन गयी थी। लक्ष्मण ने बाण से रेखा खींचकर उसे विश्वास रूपी मन्त्रों से
अभिमंत्रित किया और राम की सहायता के लिए जंगल की ओर दौड़ पड़े सीता को हिदायत दी
गयी कि वह रेखा पार न करे लेकिन विधि का विधान कुछ अलग ही था। रावण जैसा सिद्ध भी
उस रेखा के भीतर नहीं जा सका था । लेकिन सीता ने जैसे ही लक्ष्मण रेखा पार की रघुकुल संकट में पड़ गया फिर जो हुआ वो सभी को विदित
है। नारी जब तक सीमाओं में रहे कुल की रक्षा भगवान करते है एक बार मर्यादा की सीमा
लांघी तो स्त्री पर पुरुष के विश्वास और स्त्री की अस्मिता और गरिमा का हरण तय है
जब सीता जैसी सती को मर्यादा उल्लंघन का कठोर कष्ट उठाना पड़ा यहाँ तक की दो
बार वनवास भोगना पढ़ा । न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या बताती है कि सीमाएँ
रोज लांघी जा रही है क्योंकि कलियुग में लक्ष्मण रेखा धूमिल हो चुकी है।
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