2 Sept 2025

पतंगे

 

ज़िंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे, बारिशों में पतंगे उड़ाया करो।

ये शेर आज की परिस्थितियों में बिलकुल माकूल बैठता है ये ज़िंदगी हमें खुदा ने बक्शी है इस पर हम से ज़्यादा इख्तियार ख़ुदा का है। लेकिन हम लोग ज़रा-सी परेशानी और मुसीबतों के आते ही या तो शिकायतों का पिटारा खोलकर बैठ जाते हैं या फिर इस ज़िंदगी को बदसेबत्तर समझकर इसे बर्बाद या खत्म कर देते हैं ।

ख़ुदा ने ये ज़िंदगी हमें हल्के-फुलके ठंग से बसर करने के लिए अता फरमाई थी । लेकिन हमने अपनी जायज़ और नाजायज़ हसरतों को इतना बढ़ा लिया की ख्वाहिशें पूरी होने का नाम ही नहीं लेती एक के बाद एक पैदा होती रहती हैं और हर ख्वाइश पहली से ज़्यादा जायज़ लगती है । इन्हीं ख्वाइशों को मुकम्मल करने के लिए ज़िन्दगी दिन-रात गुजरती जा रही है।

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