28 Dec 2023

विद्यार्थियों में मानसिक अवसाद एवं तनाव

 ‘मानसिक अवसाद एवं तनाव’ वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक योग्यता का क्षय करने वाली ऐसी भूल-भुलैया है जिसमें फँसकर व्यक्ति अनजाने ही अपना मानसिक एवं शारीरिक स्तर पर नुकसान कर बैठता है। यह समस्या आज छूत की बिमारी की तरह फैलती जा रही है। क्या वृद्ध, क्या युवा, क्या विद्यार्थी उम्र के हर पड़ाव पर व्यक्ति आज इन समस्याओं से किसी न किसी रूप में त्रस्त नज़र आता है।

 इसका कारण एवं निवारण क्या है ? यह एक पेचीदा प्रश्न है और उससे भी ज्यादा पेचीदा है इस समस्या का समाधान , इसके लिए हमें गहन चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है। अपनी भावी पीढ़ी की रक्षा करने के लिए ये ज़िम्मेदारी माता-पिता एवं शिक्षा संस्थाओं से जुड़े मनीषियों की विशेष रूप से है ।

 आज का समय प्रतियोगिताओं का समय है हर व्यक्ति दूसरे को पीछे छोड़ता हुआ आगे बढ़ना चाहता है । हमने हमारी संतानों को भी इस दौड़ में शामिल कर रखा है। आज अभिभावक अपनी संतानों को अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ जुटाने एवं अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए प्रेरित करने में लगी हुई हैं । अभिभावकों द्वारा अपने बच्चे से कुछ आशाएँ रखना एक सीमा तक सही भी है।

 लेकिन युवाओं एवं विद्यार्थी वर्ग को ये सोचना भी आवश्यक है कि यदि वे अपने जीवन का लक्ष्य केवल धन-संपत्ति व सुख-सुविधाओं को मान रहे हैं वे सुविधाएँ यदि उन्हें मिल जाएँ  तो बहुत अच्छा लेकिन यदि वे उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप प्रयास करने के बाद भी उन्हें नहीं मिली तो क्या वो अपना जीवन बिना किसी हताशा, निराशा या तनाव के जीने में सक्षम हैं । 

 क्योंकि आकांक्षाओं की मनोनुकूल पूर्ति न होना ही अवसाद व तनाव को जन्म देता है। स्वयं के पुरज़ोर प्रयास के बाद भी सफलता का उस स्तर पर न मिलना हमें अवसाद व विषाद से घेर लेता है। तब ये अवसाद व तनाव हमारी शेष योग्यताओं और सकारात्मक मानसिकता को पूर्णतया नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। जिसके फलस्वरूप हम अनुचित निर्णय लेकर अपना ही अहित कर बैठते हैं।

 विद्यार्थी जीवन काल में नए और बड़े सपने, बड़े लक्ष्य और उनकी प्राप्ति एक वेगवती नदी की तरंगों की तरह युवा विद्यार्थीयों के जीवन में प्रवेश करती है । वेगवती नदी असावधान नाविक को उसकी नाव के साथ बहा ले जाती है , लेकिन यदि नाविक सूझ-बूझ से काम लेता है तो वह उस नाव को संभालता हुआ चप्पू के द्वारा नाव को नदी के किनारे लगाकर अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है। हालाँकि उस वेगवती नदी से अपनी नाव को बचने में उसे खासी मशक्कत करनी पड़ती है ।  

 अवसाद के कई कारण होते है जैसे अभिभवकों की अत्यधिक अपेक्षाएँ, अभिभावकों का बच्चों को समय न दे पाना जिससे बच्चा अकेलापन अनुभव करने लगता है। इसके अतिरिक्त जेनेटिक, मनोवैज्ञानिक प्रभाव ,अकेलापन और किशोर वय में होने वाले शारीरिक परिवर्तन अथवा विद्यार्थी का विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण  और उसमें मिली असफलता  या निरन्तर अपने अध्ययन स्तर में गिरावट देखकर भी विद्यार्थी अवसाद ग्रस्त हो सकता है ।

 ये अवसाद के समान्य परन्तु प्रभावी कारण हैं जिनसे ग्रस्त होकार विद्यार्थी तनाव व अवसाद में फँस जाता है। अत: शिक्षण संस्थानों के द्वारा विद्यार्थियों की समय-समय पर काउंसलिंग करना, माता-पिता का उनके साथ समय बिताना, उनके मनोरंजन का ध्यान रखना, अपनी आकांक्षाओं से परे उन्हें स्वतंत्रता देना, उनका मनोबल बड़ाना एवं उनके साथ मित्रवत व्यवहार कर उनकी समस्याओं को समझकर उनका निराकरण करना एवं सबसे महत्वपूर्ण अपने बच्चों को ध्यान योग प्राणायाम की ओर आकर्षित करना साथ ही साथ पवित्र आध्यात्मिक वातावरण उपलब्ध करवाना ही विद्यार्थियों को अवसाद व तनाव से बचाने का माध्यम हो सकता है

पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’

लेखक एवं विचारक

कोटा, राज.

   

 

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