31 Oct 2017

वसुधैव कुटुम्बकम’ का भाव रखने वाली एकमात्र संस्कृति ‘भारतीय संस्कृति


हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है | भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि हैं। अब जबकि हर एक की जीवन शैली आधुनिक हो रही है  भारतीय लोग आज भी अपनी परंपरा और मूल्यों को बनाए हुए हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के लोगों के बीच की घनिष्ठता ने एक अनोखा देशभारतबनाया है। हर भारतीय का ये कर्तव्य है कि वो अपनी भारतीय संस्कृति और उसके वैदिक ज्ञान का अंतरात्मा से अनुकरण करे जिससे की इस संस्कृति का और प्रचार प्रसार हो ये बढ़ती रहे तथा तेजस्वी रूप धारण करे। यह संस्कृति ज्ञानमय है और युतियुक्त कर्म करने की प्रेरणा देने वाली संस्कृति है। ये वो संस्कृति है जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अनुकरणीय और लीलापुरुषोत्तम श्री कृष्ण की अनुसरणीय शिक्षाओं की साक्षी है | भारतीय संस्कृति का अर्थ है, सर्वांगीण विकास, सबका विकास। भारतीय संस्कृति की आत्मा छुआछूत को नहीं मानती और ना ही हिन्दू और मुसलमान के भेद को जानती है | यह प्रेमपूर्वक और विश्वास पूर्वक सबका आलिंगन करके, ज्ञानमय और भक्तिमय कर्म का अखण्ड आधार लेकर माँगल्य-सागर की ओर तथा सच्चे मोक्षसिन्धु की ओर ले जाने वाली संस्कृति है।
भगवान् ने इस इच्छा से हम मनुष्यों का निर्माण किया है कि हम सब उसकी इस सृष्टि को अधिक सुन्दर, अधिक सुखी, अधिक समृद्ध और अधिक समुचित बनाने में उसका हाथ बंटायें। अपनी बुद्धि, क्षमता और विशेषता से अन्य पिछड़े हुये जीवों की सुविधा का सृजन करें और परस्पर इस तरह का सद्व्यवहार बरतें जिससे इस संसार में सर्वत्र स्वर्गीय वातावरण दृष्टिगोचर होने लगे। ये वो संस्कृति है जो अधिकार से ज्यादा कर्तव्य पालन पर बल देती है भारत देश और यहाँ की संस्कृति अनेक धर्मो को और उनकी शिक्षाओं को न केवल अपने में संजोय हुए है अपितु इस देश ने या संस्कृति ने किसी भी धर्म को श्रेष्ठ या निम्न नहीं आंका भारतीय संस्कृति यथार्थ के बहुआयामी पक्ष को स्वीकार करती है तथा दृष्टिकोणों, व्यवहारों, प्रथाओं एवं संस्थाओं की विविधता का स्वागत करती है। यह एकरूपता के विस्तार के लिए विविधता के दमन की कोशिश नहीं करती। भारतीय संस्कृति का आदर्श-वाक्य अनेकता में एकता एवं एकता में अनेकता दोनों है।
भारत एवं भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम का भाव रखने वाली संस्कृति है|  भारतीय संस्कृति ने न केवल भारत को अपितु समूची धरा को सदैव एक कुटुंब (परिवार) माना है जबकि अन्य देशों ने भारत को केवल बाज़ार मान है| लेकिन ये संस्कृति और इस संस्कृति में रचे बसे लोग इतने उदार है की हमने सदैव अन्य देशों की संस्कृतियों का दोनों बाहें फैलाकर स्वागत किया है |  भारतीय संस्कृति के उपासकों की महान यात्रा अनादि काल से आरम्भ हुई है। इस संस्कृति में व्यास,वाल्मीकि,बुद्ध,महावीर, शंकराचार्य,रामानुज, ज्ञानेश्वरतुकाराम, नानक,कबीर एवं महर्षि अरविन्द जैसी महान विभूतियां हुई जिन्होंने इस संस्कृति को आगे बढ़ाया और समृद्ध बनाया।
आइए, हम सब अपने आपसी मतभेदों को दरकिनार कर इस पावनयात्रा में सम्मिलित हों। आज भारतीय संस्कृति के ये सारे सत्पुत्र हम सबको पुकार रहे हैं। यह पुकार जिसके हृदय तक पहुँचेगी और जो अपने राष्ट्र और उसकी संस्कृति की सेवा के लिए सजग हो जायेगा उसी का जीवन धन्य होगा।

22 Oct 2017

अच्छे दिन आने वाले है” क्या आ गये किसानों के अच्छे दिन ?

राजनैतिक परिस्थितियाँ इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो गई हैं कि देश का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हमारा अन्नदाता किसान आज विकट परिस्थितियों से जुझ रहा है इसका कारण है कि वो अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है । क्या ये सरकार इतनी नाकारा हो गयी है कि अपना अधिकार मांगने वाले किसान पर गोली दाग दे कढ़ी धूप, बरसात और हाढ़ कंपाती सर्दी में जो किसान अपनी मेहनत और खून पसीने से धरती की छाती को फोड़कर बीज बोता है । उधार लेकर बीज,खाद,सिंचाई और दवाई की व्यवस्था करता है हम जैसे लाखों लोगों का पेट पालता है यदि वो किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है तो क्या ये अनुचित है अपराध है? वृक्ष की सबसे महत्वपूर्ण इकाई उसकी जड़े है यदि उनसे ही नाता टूट जाये तो बड़े से बड़ा वृक्ष को  भी धराशायी होने में समय नहीं लगता किसान की समाज में यही स्थिति है यदि इन जड़ों को हिलाने या नुकसान पहुँचने का प्रयास होगा तो निश्चित रूप से विकास रुपी वृक्ष धराशयी हो जायेगा । देश में विकास क्या केवल उद्योगों एवं मशीनों से ही आएगा ?  सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि हर इकाई का अपना महत्व है उपयोगिता है किसी को भी नज़रंदाज़ करने की भूल नहीं की जा सकती ।
इस आन्दोलन में केवल किसान ही भाग नहीं ले रहा बल्कि घर में बैठा उसका भूखा, प्यासा परिवार भी शामिल है,जिसकी आँखों में आंसू हैं इतिहास सक्षी है दुखियों की आह और आंसुओं ने बड़े–बड़े सत्ताधारियों को मुंह के बल पछाड़ा है । आज सरकार द्वारा उस किसान के ऊपर उसे चुप करने, दबाने कुचलने के लिए गोली तक चलवा देना और फिर मृतकों को मुआवजा देना निश्चित रूप से सरकार की असफलता और संवेदनहींनता को दर्शाता है । जी हाँ,ये वास्तविकता उसी सरकार की है जिसे उम्मीदों की पालकी पर बिठाकर इसी जनता ने सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठाया था ।
परिस्थिति ये है कि आज की सरकार तब तक किसी आन्दोलन को महत्व नहीं देती जब तक की कोई बढ़ी घटना नहीं घट जाती और क्या कारण है की किसान आन्दोलन हिंसक न हो जिन लोगों की जान चली गयी है क्या मुआवजा देने से उनके परिवार की भरपाई हो पाएगी क्या सरकार के प्रतिनिधि जो बढ़ी कुर्सियों को दोनों हाथ से थाम कर बैठे है वो एक करोड़ रूपये के एवज में अपने पुत्र परिवार की मृत्यु को स्वीकार करंगे ।
सरकार द्वारा घोषित किया गया की किसानो की मांगे मान ली गई है । वास्तव में ये सरकार द्वारा फूट डालो शासन करो की निति का अनुसरण था । जिसके द्वारा किसानो को दो भागों में बाँट दिया गया अब इन दो धड़ो में जिसने आपकी हाँ में हाँ मिलाई वो धन्य-धन्य हो गया लेकिन जिसने मुद्दे की और हक की बात की वो दोषी करार कर दिया गया यहाँ तक की उस पर गोलियां भी बरसा दी गयी। ये लोकतंत्र की हत्या है ।
सरकार के प्रतिनिधि कह रहे हैं कि गोली हमने नहीं चलाई आन्दोलन में कुछ विपक्ष के लोग माहौल बिगाड़ने का काम कर रहे हैं जबकि वहां के पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कुछ फायरिंग हमारी तरफ से भी हुई है ये दोनों बयान सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगाते है क्योंकि यदि पुलिस ने गोली नहीं चलाई तो सरकार मृतकों को एक –एक करोड़ देने के लिए क्यों मरी जा रही है ? अब इसे क्या समझा जाए क्या सरकार और पुलिस प्रशासन में तालमेल नहीं है या पुलिस प्रशासन निरंकुश हो गया है मुझे तो लगता है आने वाले दिनों में आपको ये भी सुनने को मिल सकता है की किसान आपस में ही एक दुसरे को गोली मार रहे है क्या आप ने चुनावों में अच्छे दिन इन्ही परिस्थितियों को कहा था क्या इसी के लिए शिवराज सरकार को सत्ता सौंपी थी।
यदि ये सरकार वाकई किसानो की मौत को लेकर दुखी है तो इस सरकार को दान बांटने और आड़े टेड़े बयान देने की जगह जल्दी से जल्दी किसानो को उनकी मेहनत का उचित मूल्य देना जिससे ये आन्दोलन और इससे होने वाली क्षति से बचा जा सके । 
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अवसर” खोजें, पहचाने और लाभ उठायें

अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नहीं मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है  इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को पहचानने और उसका भरपूर लाभ उठाने भर का होता है प्राय: आपने देखा होगा की अपने वर्तमान से अधिकाँश मनुष्य संतुष्ट नहीं होते हैं। जो वस्तु अपने अधिकार में होती है उसका महत्व, उसका मूल्य हमारी दृष्टि में अधिक नहीं दीखता। वर्तमान अपने हाथ में जो होता। अपने गत जीवन की असफलताओं का भी रोना वे यही कह कर रोया करते हैं कि हमें भगवान या भाग्य ने अच्छे अवसर ही नहीं दिए अन्यथा हम भी जीवन में सफल होते। ऐसा कहना उनकी अज्ञानता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं जिनसे वह लाभ उठा सकता है। पर कुछ लोग अच्छे और उचित अवसर को पहिचानने में ही अक्षम्य होते हैं। ठीक अवसर को भलीभांति पहचानना तथा उससे उचित लाभ उठाना जिन्हें आता है जीवन में सफल वे ही होते हैं। पर यह भी सत्य है कि अच्छे अवसर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक बार आते हैं। अब हम उन्हें न पहचान पावें या पहचानने पर भी उनसे उचित लाभ न उठा पावें तो यह हमारा अज्ञान है। एक पाश्चात्य विद्वान का कहना है “अवसर के सर के आगे वाले भाग में बाल होते हैं, सर के पीछे वह गंजा होता है। यदि तुम उसे सामने से पकड़ सको, उसके आगे बालों को, तब तो वह तुम्हारे अधिकार में आ जाता है,पर यदि वह किसी प्रकार बचकर निकल गया तो उसे पकड़ा नहीं जा सकता ।
आपको अनेक ऐसे मनुष्य मिलेंगे जो बिना सोचे-समझे यह कह देते हैं कि फलाँ - फलाँ को जो जीवन में सफलतायें मिली वह इत्तफाक के कारण। घटनावश उनका भाग्य उनके ऊपर सदय हो गया और यह इत्तफाक है कि आज सफलता पाकर वे इतने बड़े हो सके। पर सच पूछा जाय तो इत्तफाक से प्रायः कुछ नहीं होता। संसार के समस्त कार्यों के पीछे कार्य - कारण-सम्बन्ध होता है। और यदि इत्तफाक से ही वास्तव में किसी को सुअवसर प्राप्त हो जाता है, तो भी हम न भूलें कि यह बात हमें ‘अपवाद’ के अंतर्गत रखनी चाहिए। एक विद्वान ने कहा है” जीवन में किसी बड़े फल की प्राप्ति के पीछे इत्तफाक का बहुत थोड़ा हाथ होता है।” अंधे के हाथ बटेर भी कभी लग सकती है। लेकिन सफलता प्राप्त करने का सर्वसाधारण और जाना पहिचाना मार्ग है केवल लगन, स्थिरता, परिश्रम, उद्देश्य के प्रति आस्था और समझदारी।
मानिए एक चित्रकार एक चित्र बनाता है तो उसकी सुन्दरता के पीछे चित्रकार का वर्षों का ज्ञान, अनुभव, परिश्रम और अभ्यास है। इस चित्रकला में योग्यता पाने के लिए उसने बरसों आँखें फोड़ी हैं, दिमाग लगाया है तब उसके हाथ में इतनी कुशलता आ पाई है। उसने उन अवसरों को खोजा है जब वह प्रतिभावान चित्रकारों के संपर्क में आकर कुछ सीख सके। जो अवसर उसके सामने आये, उसने उन्हें व्यर्थ ही नहीं जाने दिया वरन् उन अवसरों से लाभ उठाने की बलवती इच्छा उसमें  थी और क्षमता भी।
मनुष्यों की समझदारी तथा चीजों को देखने परखने की क्षमता में अन्तर होता है। एक मनुष्य किसी एक घटना या कार्य से बिल्कुल प्रभावित नहीं होता, उससे कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकता, जब कि एक दूसरा मनुष्य उसी कार्य या घटना से बहुत कुछ सीखता और ग्रहण करता है।
साधारण रूप से मनुष्य की बुद्धि तथा प्रवृत्ति तीन प्रकार की हो सकती है। इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए एक प्रसंग याद आता है “एक नदी के तट पर तीन लड़के खेल रहे हैं। तीनों खेलने के बाद घर वापस आते हैं। आप एक से पूंछते हैं भाई तुमने वहाँ क्या देखा? वह कहता है ‘वहाँ देखा क्या, हम लोग वहाँ खेलते रहे बैठे रहे।’ ऐसे मनुष्यों की आँखें, कान, बुद्धि सब मंद रहती है। दूसरे लड़के से आप पूछते हैं कि तुमने क्या देखा तो वह कहता है कि ‘मैंने नदी की धारा, नाव, मल्लाह, नहाने वाले, तट के वृक्ष, बालू आदि देखी।’ निश्चय ही उसके बाह्य चक्षु खुले रहे, मस्तिष्क खुला रहा था। तीसरे लड़के से पूछने पर वह बताता है कि ‘मैं नदी को देखकर यह सोचता रहा कि अनन्त काल से इसका स्रोत ऐसा ही रहा है। इसके तट के पत्थर किसी समय में बड़ी-बड़ी शिलाएँ रही होंगी। सदियों के जल प्रवाह की ठोकरों ने इन्हें तोड़ा-मरोड़ा और चूर्ण किया है। प्रकृति कितनी सुन्दर है, रहस्यमयी है। तो फिर इनका निर्माता भगवान कितना महान होगा, आदि।’यह तीसरा बालक आध्यात्मिक प्रकृति का है। उसकी विचारधारा, अन्तर्मुखी है। ऐसे ही प्रकृति के लोग अवसरों को ठीक से पहचानने और उनसे काम लेने की पूरी क्षमता रखते है .सतत परिश्रम के फल स्वरूप ही सफलता मिलती है, इत्तफाक से नहीं जो भी अवसर उनके सामने आये उन्होंने दत्तचित्त हो उनसे लाभ उठाया।
यदि हम एक कक्षा के समस्त बालकों को समान अवसर दें, तो भी हम देखते हैं कि सभी बालक एक समान लाभ नहीं उठाते या उठा पाते। बाह्य सहायता या इत्तफाक का भी महत्व होता है पर हम एक कहावत न भूलें ‘भगवान उनकी ही सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करना जानते हैं।’अतः आलस्य और कुबुद्धि का त्याग कीजिये। अवसर खोइये मत। उन्हें खोजिये,पहचानिए और लाभ उठाइए ।
अनेक ऐसे आविष्कार हैं जिनके बारे में हम कह सकते हैं कि इत्तफाक से आविष्कर्त्ता को लक्ष्य प्राप्त हो गया पर यदि हम ईमानदारी से गहरे जाकर सोंचे तो स्पष्ट हो जायगा कि इत्तफाक से कुछ नहीं हुआ है। उन आविष्कर्त्ताओं ने कितना अपना समय, स्वास्थ्य, धन और बुद्धि खर्ची है आविष्कार करने के लिए।
न्यूटन के पैरों के निकट इत्तफाक से वृक्ष से एक सेब टपक कर गिर पड़ा और न्यूटन ने उसी से गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञान कर लिया। पर न जाने कितनों के सामने ऐसे टूट-टूट कर सेब न गिरे होंगे। पर सभी क्यों नहीं न्यूटन की भी भाँति गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञात कर सके? कारण स्पष्ट है। अवसर आया और न्यूटन ने उस अवसर को पकड़ा और उससे लाभ उठाया। न जाने कितने वर्षों से न्यूटन ने इस सिद्धान्त की खोज में दिन रात एक किये थे। सेब का उसकी आँखों के सामने गिरना एक ऐसा इत्तफाक था जिसने बिजली की भाँति उनके मस्तिष्क में ज्योति दी और वह इस आविष्कार के ज्ञाता बन सके। अतः यदि आप जीवन में सफलता चाहते हैं तो अवसर से लाभ उठाना सीखिये।
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युवा नरेन्द्र से स्वामी विवेकानंद तक....

  जाज्वल्य मान व्यक्तित्व के धनी स्वामी विवेकानंद ‘ विवेकानंद ’ बनने से पहले नरेन्द्र नाम के एक साधारण से बालक थे। इनका जन्म कोलकता में एक स...