इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें महापुरुषों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर मानव से महामानव तक की यात्रा की उनकी सफलता के पीछे दृढ़ संकल्प और निरंतर अभ्यास जैसी मजबूत आधार शिला थी। निरंतर अभ्यास से मूर्खों को भी ज्ञानी बनते देखा गया है।
एक साधारण से परिवार में जन्मा
बालक जिसके पास न शिक्षा के साधन थे ना किसी का सहयोग परिवार में गरीबी का भयानक
तांडव था। जिस कार्य में भी हार डालता हानि के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता लेकिन
मनोबल इतना सशक्त के कभी भी अपने दृढ़ संकल्प को डिगने नहीं देता, वही बालक
प्रतिकूल परिस्थितियों को मुँहतोड़ जवाब देता हुआ अमेरिका का राष्ट्रपति बना जिसे
हम अब्राहम लिंकन के नाम से जानते हैं।
कालिदास जो अपने समय का महामूर्ख
व्यक्ति था लेकिन निरंतर अभ्यास ने उसे संस्कृत साहित्य का महाकवि बनाया। पत्नी के
कटु शब्द उसके अंतस को छेद गए उसने घर छोड़ दिया और वह निरंतर अभ्यास करता रहा यह
निरंतर अभ्यास का ऐतिहासिक प्रमाण एक नजीर है जिससे सिद्ध होता है की जो अभ्यासी
है वह अभ्यास के बल पर कठिन से कठिन कार्य सुगम को सुगम बना लेता है ।
भील जाति का एक बालक जिसमें धनुर्विद्या
सीखने की ऐसी ललक जगी कि अपने पिता को लेकर उत्साह, उमंग के साथ द्रोंण के आश्रम
तक पहुंच गया लेकिन द्रोंण उच्च जाति के छात्रों और विशेषकर क्षत्रियों को ही
शिक्षा दिया करते थे। इस भील जाति के बालक ने भी द्रोण से धनुर्विद्या सीखने का
आग्रह किया। द्रोण द्वारा मना किए जाने पर इस बालक ने अपने मन के दृण भाव से
द्रोंण को ही अपना गुरु माँ लिया । श्रद्धा की मिट्टी और विश्वास के पानी से अपने
गुरु द्रोण की प्रतिमा का निर्माण किया तथा अपने दृढ़ संकल्प की माला प्रतिमा को
पहना कर पूरी भावना तन्मयता के साथ धनुर्विद्या का अभ्यास आरंभ किया स्वयं को
धनुर्विद्या में इतना पारंगत किया कि द्रोण भी उसके कौशल को देखकर स्तब्ध रह गए।
यह बालक इतिहास में एकलव्य के नाम से प्रसिद्ध है।
जीवन में सफलता उन्हीं विद्यार्थियों को मिलती
है जो इसे प्राप्त करने के लिए सतत अभ्यास करते हैं। जो विद्यार्थी अभ्यास का पल्ला पकड़ते हैं वह
अपने जीवन की मजबूत आधारशिला का निर्माण कर लेते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी में
अनंत संभावनाएं व क्षमताएँ विद्यमान हैं परंतु जो प्रतिकूल परिस्थितियों से
प्रभावित हुए बिना दृण संकल्प और अभ्यास का अवलंबन लेते हुए बाधाओं पर विजय
प्राप्त कर आगे बढ़ते हैं वह अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाते हैं तथा इतिहास में अमर
हो जाते हैं।
पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’
लेखक एवं विचारक
कोटा,
राज.
No comments:
Post a Comment