वसंत को ऋतुराज राज कहा
जाता है पश्चिम का भूगोल हमारे देश में तीन ऋतुएं बताता है जबकि भारत के प्राचीन
ग्रंथों में छ: ऋतुओं का वर्णन मिलता है उन सभी ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहा जाता
है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि पृथ्वी पर जो भी द्रव्य
पदार्थ पाए जाते है उन में मै जल, हूँ ,वृक्षों में पीपल हूँ और आगे चलकर वो कहते है की ऋतुओं में “अहम कुसुमाकर” यानी की ऋतुओं में मैं वसंत ऋतु
हूँ। वसंत ऋतु के आते ही प्रकृति में सृजन होने लगता है
समूची प्रकृति नव पल्लवों से पल्लवित हो उठती है। जिसे
देखकर लोगों का मन नव उमंग और उत्साह से भर जाता है।
इस ऋतु को पर्व की तरह
इस लिए भी मनाया जाता है क्योंकि इस दिन स्वर और विद्या की देवी माँ वागेश्वरी
अर्थात माँ सरस्वती का जन्म भी हुआ था कहानी कुछ इस प्रकार है की ब्रह्मा जी ने जब
सृष्टि
का निर्माण किया तो उन्हें कुछ आनंद की अनुभूति नहींहो रही थी
क्योंकि चारों और एकदम शांति और सन्नाटा फैला हुआ था अतः उनके मन में आया कि क्यों
न इस पृकृति को सुंदर शब्द भाषाएँ और ध्वनियाँ प्रदान
की जाए अत: उन्होंने संकल्प लेकर जैसे ही प्रथ्वी पर छोड़ा तो वृक्षों के झुरमुट से
एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई जो कमल के पुष्प पर बैठी थी राजहंस जिसकी शोभा बड़ा रहा
था जिसके दोनों हाथों में वीणा थी तथा अन्य दो हाथों
में माला और वेद पुस्तिका थी| ब्रह्मा ने देवी से वीणा
बजाने का अनुरोध किया जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। उसके प्रकट होते ही
पृकृति की स्तब्धता और सन्नाटा क्षण भर में समाप्त हो गया और पृकृति उसके सुरों से
गुंजायमान हो गयी। आज उसी देवी की कृपा के फल स्वरूप
हमारे पास वाणी है शब्द है अनेकों भाषाएँ है। उसी देवी
को हम बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पुकारते है| ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये
संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते
हैं।
अगर उस देवी के स्वरुप
को ध्यान से देखा जाए तो उनका सुंदर विगृह हमें जीवन को श्रेष्ठ और समुन्नत बनाने
की प्रेरणा देता है माँ सरस्वती के चार हाथ और उसमे धारण की हुई वस्तुएं मूक रूप
से हमें प्रेरणा देती है उनकी चार भुजाएं प्रेरणा देते है की हम स्वच्छता ,स्वाध्याय, सादगी और श्रेष्ठता को अपने जीवन में धारण करें।
सबसे पहली चीज़ स्वछता
तन से और मन से स्वच्छ रहना मन का सम्बन्ध शरीर से है यदि शरीर ही स्वच्छ नहीं होगा
तो आप का मन भी ठीक नहीं लगता यदि शरीर अस्वच्छ होगा तो विचार भी वैसे ही आयेंगे इसलिए
ये हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है की वो तन से और मन से स्वच्छ रहे।
दूसरी भुजा दूसरी
प्रेरणा और वो है स्वाध्याय ,स्वाध्याय का अर्थ है नियमित अध्ययन ,अध्ययन किसका न केवल अपने पाठ्यक्रम से सम्बन्धित बल्कि और भी दूसरी
श्रेष्ठ पुस्तकों का चलिए ये भी मान लिया की आजकल पुस्तकें पढ़ने का चलन कम हो गया
है तो आप यदि नेट चला रहे है तो आपको नेट पर भी अनेकों
पुस्तकें उपलब्ध हो जायेंगी जो आपका मनोरंजन भी करेंगी और नये विचारों
से भी अवगत करायेंगी तो स्वाध्याय विद्यार्थी का एक विशेष गुण है जो
विद्यार्थी इसे जितना विकसित करता है वो उतना ही ज्ञानवान और श्रेष्ठ बनता चला
जाता है।
तीसरी भुजा का सन्देश
है सेवा ,सेवा किसकी हमारे आस पास जो दुखी परेशान लोग है या जिनकी हमारे द्वारा
किसी प्रकार की सहायता हो सकती है उसे करने के लिए तैयार रहना अब इसका मतलब ये
बिलकुल नहीं है कि परीक्षाएं चल रही है और आप उसे कॉपी करवा रहे है मैं ऐसा बिलकुल
नहीं कह रहा हूँ क्योंकि ये कोई सेवा नहीं है ये तो धोखा है अपने साथ भी और अपने
मित्र के साथ भी तो करना क्या है आपके जो भी मित्र है उनकी पढ़ाई में सहायता करना ये भी एक सेवा है और एक और सीधी-साधी बात बता दूँ यदि आप अपने
माता पिता का समान करते है अपने गुरुजनों की बात मानते
है किसी को वाणी से दुःख नहीं पहुंचाते है तो निश्चत
रूप से मानकर चलिए की आप बहुत बड़ी सेवा कर रहे है क्योंकि बच्चों आज हम मोबाइल में
और इन्टरनेट में इतने बिजी हो गये है की हमारे पास माता पिता के पास बैठने का समय नहीं
है आप तो बस इतना कर लो की आप पूरे दिन में केवल एक घंटा केवल अपने माता पिता के
लिए निकालेंगे अगर आपने ये कर लिया तो मानकर चलिए आप से न केवल माता-पिता प्रसन्न
होंगे बल्कि ईश्वर भी खुश हो जायेंगे क्योंकि इस धरती पर माता पिता ही ईश्वर का
प्रतिनिधित्व करते है।
चौथी भुजा प्रतिनिधित्व
करती है सादगी बच्चों आज का वर्तमान समय ऐसा है जहां हर व्यक्ति अंधाधुंध फैशन
परस्ती MORDENISATION की और दौड़ लगाने में लगा है आप पर क्या अच्छा लगेगा आपकी संस्कृति,आपका परिवार और आप जिस माहौल में रहते है वहां के लिए किस प्रकार की
वेशभूषा और कपड़े उपयुक्त है ये विचार किये बिना हम भद्दे और फूहड़ कपड़े पहनकर अपने आप
को मॉडर्न सिद्ध करने में लगे हुए है ये बहुत बढ़ी भ्रान्ति है की ऐसा करने से आप
का समाज में नाम होगा या आप बहुत अच्छे लगेंगे ऐसा
बिलकुल भी नहीं है।
क्योंकि मॉडर्न होने का
मतलब कपड़ों से बिलकुल भी नहीं है मॉडर्न होने का मतलब आपकी मॉडर्न सोच से है आपके
विचारो से है विवेकानंद बिलकुल भी मॉडर्न नहीं थे वो जब शिकागो धर्म सम्मेलन में
गये तो वहां लोगों ने उनकी साधारण सी वेशभूषा का मजाक बनाया लेकिन जब उन्होंने उस
सभा में बोलना शुरू किया तो भारत के ऐसे श्रेष्ठ विचारों से दुनिया को अवगत कराया
की आज 154 वर्ष बाद भी वो उस धर्म सभा में याद किये जाते है और आज भी उनका चित्र उस
धर्म सभा के मंच पर लगा हुआ है तो विचार आधुनिक होने चाहिए और वेशभूषा शालीन और
सभ्य क्योंकि सुन्दरता सादगी में है।
माँ सरस्वती के एक हाथ
में माला है और एक हाथ में वेद माला हमें प्रेरित करती है कि हमें उस ईश्वर के
प्रति धन्यवाद देना चाहिए जिसने हमें मनुष्य जीवन दिया माता पिता दिए उसका धन्यवाद
देना चाहिए ,उसके लिए हमें नियमित रूप से पांच बार गायत्री मन्त्र बोलना चाहिए अब मैंने
गायत्री मन्त्र के लिए ही क्यों कहा मंत्र तो बहुत सारे होते है इसका एक कारण है
गायत्री मन्त्र की ये विशेषता है कि उसमें ईश्वर से धन-धान्य या रुपये पैसे नहीं मांगे
गये है बल्कि सद्बुद्धि मांगी गयी है और जिस व्यक्ति के पास सद्बुद्धि होगी वो
संसार में ऐसा कोई वस्तु नहीं जिसे प्राप्त न कर सके इसीलिए इसे सब मन्त्रों में
श्रेष्ठ और महामंत्र कहा गया है तो निश्चित करें की आप रोज पांच बार गायत्री
मन्त्र बोलेंगे।
दूसरा है वेद, वेद
का अर्थ है ज्ञान हम श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन करें जीवन में ज्ञान को प्राप्त कर
उसे श्रेष्ठ बनाएं ये प्रेरणा हमें वेद से मिलती है।
सरस्वती के अन्य दो
भुजाएं जिनमें उन्होंने वीणा पकड़ रखी है ये वीणा जीवन का प्रतीक है अर्थात माँ
शारदा की वीणा हमें प्रेरणा देती है की हर मनुष्य को जीवन रुपी वीणा ईश्वर ने दी
है अब इस जीवन रूपी वीणा का हम किस प्रकार प्रयोग करते है| ये
हम पर निर्भर करता है यदि हम अच्छे कर्म करेंगे तो इस जीवन रुपी वीणा से सुख के
स्वर निकलेंगे और हमारे कर्म गलत दिशा की और होंगे तो हमारा जीवन बेसुरा और दुखमय
हो जाएगा इसलिए जिस तरह माँ सरस्वती ने अपने दोनों कर कमलों में वीणा को पकड़ा हुआ
है। उसी प्रकार से हमें भी अपने जीवन को मजबूती से पकड़े
रहना चाहिए और ये ध्यान रखना चाहिए की कहीं हमारा जीवन गलत मार्ग पर तो नहीं जा
रहा तो इस प्रकार माँ शारदा की वीणा हमें प्रेरणा देती है।
अब हम बात करें सरस्वती
के आसन का तो वो है कमल और कमल की ये विशेषता है की वो खिलता कीचड़ में है लेकिन
कीचड़ से ऊँचा उठा रहता है उसी प्रकार कभी यदि आप ऐसी परिस्थितियों
में फंस जो आपको गलत मार्ग की और ले जाना चाहती हो तो ऐसे आप सजग हो जाइये और अपने
आप को उस मार्ग रूपी कीचड़ से बचाइए।
माँ सरस्वती का वाहन है
हंस और उसकी एक विशेषता है की वो नीर और क्षीर की पहचान करना जानता है| यदि
आप हंस के सामने दूध और पानी मिलकर रख दें तो उसकी ये विशेषता है की वो उसमें से
दूध को पी लेता है और पानी को छोड़ देता है इससे हमें प्रेरणा मिलती है की हमें
अच्छे और बुरे की पहचान करना आना चाहिए। जिस प्रकार हंस
दूध ग्रहण करता है और पानी छोड़ देता है उसी प्रकार आपको किसी भी व्यक्ति और उसकी
आदतों से केवल अच्छी चीजें ही ग्रहण करनी चाहिए और उसके दुर्गुणों को अपने अंदर
प्रवेश नहीं करने देना चाहिए।
तो इस प्रकार माँ
वीणापाणी का श्री विगृह हमें मूक रूप से जीवन को श्रेष्ठ और समुन्नत बनाने की
प्रेरणा देता है यदि इन गुणों को आप आत्मसात कर सकें अपने जीवन में अपना सकें तो
निश्चित रूप आपका जीवन भी बसंत ऋतु की तरह सुंदर सुहावना हो जाएगा और सफलता रुपी
पल्लवों से पुष्पित और सुशोभित होगा और आपके व्यक्तित्व की महक इस समूचे वातावरण
को सुगन्धित कर देगी
इसके अलावा ‘पौराणिक कथाओं के अनुसार
वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा
है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही
प्रकृति झूम उठती है। पेड़ों उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है।
भारतीय संगीत साहित्य और कला में इसे महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत
में एक विशेष राग वसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं। वसंत राग
पर चित्र भी बनाए गए हैं। इसके अलावा इस दिन पीले वस्त्र पहनना और शरीर पर हल्दी
और तेल का लेप लगाकर स्नान करना भी महत्वपूर्ण माना
गया है ऐसा माना जाता है की रंगों का भी एक विज्ञान होता है ,रंगों का भी मनुष्य के चित्त और मानस पर व्यापक प्रभाव होता है तो रंगों
के विज्ञान के अनुसार पीला रंग उत्साह और उमंग का प्रतीक है जिसे धारण करने से
हमारे मन मस्तिष्क में उत्साह और उमंग की तरंगें हिलोरे मारने लगती है। इस प्रकार
सनातन संस्कृति का ये पर्व हमें चहुं ओर से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सन्देश
देता है।
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