29 May 2017

भारत का महान सम्राट अकबर नही महाराणा प्रताप थे


राजस्थान की भूमि वीर प्रसूता रही है इस भूमि पर ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश की रक्षा में न केवल अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया बल्कि शत्रु दल को भी अपनी वीरता का लोहा मानने पर विवश कर दिया ।
लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की हमारे देश का इतिहास ऐसे मुर्ख पक्षपातियों द्वारा लिखा गया जिन्होंने इन महान योद्धाओं के गौरव को निम्न आंकते हुए उन विदेशी लुटेरों को हमारा आदर्श बना दिया जो इस राष्ट्र के थे ही नहीं । आज अकबर को द ग्रेट अकबर(महान अकबर) कहा जाता है जबकि महान अकबर नहीं बल्कि महाराणा थे इस वीर योद्धा ने ये शपथ ली थी की अपनी मेवाड़ की भूमि को कभी गुलाम नहीं होने दूंगा अपने देश की रक्षा के लिए वो निरंतर अकबर से लोहा लेते रहे  ।
हम महाराणा के बारे में जानेंगे तो हमें मालूम होगा की अकबर द ग्रेट नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि महाराना प्रताप द ग्रेट कहा जाना चाहिए था। सात फिट दो इंच की हाईट इतना ही ऊँचा उनका भला जिसका वजन बहत्तर किलो और दो सौ किलो का कवच जिसे उठाकर  पहनने वाले महाराणा जब युद्ध क्षेत्र में चेतक पर बैठ कर युद्ध का उद्घोष  करते थे तो शत्रुओं के पैरो के नीचे की ज़मीन खिसक जाती थी और उनका नाम सुनते ही शत्रु दल की स्त्रियों के गर्भ गिर जाते थे इतना बलशाली योद्धा इस भूमि पर हुआ है ।
कल्पना कीजिये प्रताप कितने शक्तिशाली रहे होंगे।  उन्होंने राज्य का लोभ त्यागा और वन में चले गये राज्य तो उनके पिता उदयसिंह सम्हाल ही रहे थे ।उन्होंने अपने आप को इस प्रकार सम्भाला कि कितनी ही प्रतिकूलताएं आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी उदयपुर में अकबर ने सेना भेजी विधर्मी बनाने के लिए उस समय महाराणा के पास केवल 40 हजार सैनिक थे और अकबर की सेना में  सवा लाख योद्धा लेकिन जब युद्ध हुआ तो महाराणा के 40 हजार सैनिकों में से कुछ ही मरे होंगे और अकबर की सवा लाख सेना को इतनी बुरी तरीके से खदेड़ा गया की उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा प्रताप अपने पूरे जीवन स्वतंत्र ही जिये और स्वतंत्र ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये । अकबर के साथ उनका पैंतीस साल तक संघर्ष चलता रहा । महाराणा को पराजित करने के लिए अकबर मोर्चे पर मोर्चे बनाता रहा बढ़ी बढ़ी सेनाएं और सेनानी  भेजता रहा लेकिन हर बार वो असफल रहा  यहाँ तक की अकबर खुद भी युद्ध में आया लेकिन उसे भी महाराणा के सामने मुंह की खानी पढ़ी महाराणा के पास कोई विशेष सेना नहीं थी बल्कि जंगल में रहने वाले भील और गरीब लोग थे  लेकिन उनमें देश भक्ति और देश प्रेम की भावना कूट–कूट कर भरी हुई थी ।
महाराणा के समय में कई राजपूत राजा थे जिन्होंने अकबर को शासन सौंप दिया था या तो फिर अधीनता स्वीकार कर ली थी लेकिन महाराणा ने ऐसा नहीं किया इतिहास कहता है की अकबर जब मरा तो उसे इसी बात का दुःख रहा  की वो महाराणा को परास्त नहीं कर सका इसे कहते है देश के लिए जीना देश के लिए मरना । ऐसे वीर सपूत को जनने वाली राजस्थानी भूमि तुम धन्य हो।

सर्वाधिकार सुरक्षित















25 May 2017

स्त्री और नदी का स्वच्छन्द विचरण घातक और विनाशकारी


स्त्री और नदी दोनों ही समाज में वन्दनीय है तब तक जब तक कि वो अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन नहीं करती । स्त्री का व्यक्तित्व स्वच्छ निर्मल नदी की तरह है जिस प्रकार नदी का प्रवाह पवित्र और आनन्द कारक होता है उसी प्रकार सीमा रेखा में बंधी नारी आदरणीय और वन्दनीय शक्ति के रूप में परिवार और समाज में  रहती है।  लेकिन इतिहास साक्षी है की जब –जब भी नदियों ने अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन किया है समाज बड़े-बड़े संकटों से जूझता नजर आया है। तथाकथित कुछ महिलाओं ने आधुनिकता और स्वतंत्रता के नाम पर जब से  स्वच्छंद विचरण करते हुए  सीमाओं का उल्लंघन करना शुरू किया है तब से महिलाओं की  स्थिति दयनीय और हेय होती चली गयी है । इसका खामियाज़ा उन महिलाओं को भी उठाना पढ़ा है जो समाज के अनुरूप मर्यादित जीवन जीती है इसका बहुत बढ़ा उदाहरण हमारा सिनेमा है जिसने समाज को दूषित कलुषित मनोरंजन देकर युवतियों को भटकाव की ओर धकेला है । समाज में आये दिन घटने वाली शर्मनाक घटनाएं जिनसे समाचार पत्र भरे पढ़े है सीमाओं के उल्लंघन के साक्षी है  रामायण कि एक घटना याद आती है कि जब लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा एक बार खींच दी गयी तो वह केवल एक रेखा मात्र नहीं बल्कि सामाजिक मर्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाली मर्यादा की रेखा बन गयी थी। लक्ष्मण ने बाण से रेखा खींचकर उसे विश्वास रूपी मन्त्रों से अभिमंत्रित किया और राम की सहायता के लिए जंगल की ओर दौड़ पड़े सीता को हिदायत दी गयी कि वह रेखा पार न करे लेकिन विधि का विधान कुछ अलग ही था। रावण जैसा सिद्ध भी उस रेखा के भीतर नहीं जा सका था । लेकिन सीता ने जैसे ही लक्ष्मण रेखा पार की रघुकुल संकट में पड़ गया फिर जो हुआ वो सभी को विदित है। नारी जब तक सीमाओं में रहे कुल की रक्षा भगवान करते है एक बार मर्यादा की सीमा लांघी तो स्त्री पर पुरुष के विश्वास और स्त्री की अस्मिता और गरिमा का हरण तय है जब सीता जैसी सती को मर्यादा उल्लंघन का कठोर  कष्ट उठाना पड़ा यहाँ तक की दो बार वनवास भोगना पढ़ा । न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या बताती है कि सीमाएँ रोज लांघी जा रही है क्योंकि कलियुग में लक्ष्मण रेखा धूमिल हो चुकी है।


सर्वाधिकार सुरक्षित















न सुख से प्रभावित हों और न दुःख से विचलित


मानव जीवन में कठिनाइयों का भी अपना महत्व है। कठिनाईयाँ हमारी परीक्षा लेती हुई हमारी योग्यताओं को और धारदार कर देती है ज्यादातर लोग कठिनाइयों को अपना दुर्भाग्य मानकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है । इनमें वो लोग विशेषकर होते हैं जिन्होंने सामान्य से निचले स्तर के परिवारों में जन्म लिया है। वे लोग मानते हैं कि उनकी समस्त आवश्यकताएं बिना किसी कठिनाई और समस्या के पूरा हो जाए अन्य लोग भी ऐसे लोगों को बड़ा भाग्यवान मानते है ।जबकि वास्तविकता ये है की जिन लोगों ने जीवन में कठोरता और समस्याओं का सामना नहीं किया उनका मन मस्तिष्क सब कमजोर रह जाता है ऐसे लोग छोटी-छोटी समस्याओं के सामने घुटने टेक देते है या तो कठिनाइयों से विचलित होकर स्वयं का अहित कर बैठते है ।
अत: भगवान ने मनुष्य के सम्पूर्ण विकास के लिए उसके जीवन में सुख और दुःख दोनों की स्रष्टि की है। परन्तु मानव समस्याओं को देवी आपदा मानकर ईश्वर को कोसने लगता है परन्तु ऐसा नहीं है ईश्वर दया एवं करुणा का सागर है वो हर क्षण अपनी सबसे सुंदर कृति मानव की सहायता के लिए तत्पर है और उसपर अपना भरपूर स्नेह लुटा रहा है ,लेकिन फिर भी समाज में हम जब दबे कुचले दुखी लोगों को देखते है तो हमें ईश्वर की दया और ममता पर शंका होने लगती है ।माँ  का अपने बच्चे के लिए निस्वार्थ निश्छल प्रेम होता है वो अपने बालक को खुश रखने के लिए हर सम्भव प्रयास करती है लेकिन फिर भी बालक को उसके कई कार्य अप्रिय लगते है माँ लीजिये बालक किसी भोजन को ज्यादा मात्रा में खाना चाहता है तो माँ उसे रोकती टोकती है क्योंकि वो जानती है की भोजन की अधिकता से वो बीमार पढ़ जाएगा ।इसलिये वो बच्चे के रोने पिटने को नज़र अंदाज करते हुए उतना ही भोजन उसे देती है जितनी की उसे आवश्यकता है माँ अपने बच्चे की सुरक्षा की दृष्टि से उसे उन स्थानों पर जाने की छूट नहीं देती जिनके विषय में वो शंकित होती है बच्चे की अनर्गल जिद पर वो उसे दण्डित करने से भी नहीं चुकती वो ही माँ बच्चे के बीमार पड़ने पर उसे कड़वी दवाएं पिलाती है और उसके कष्ट की परवाह किए बिना आवश्यक होने पर उसे इंजेक्शन लगवाती है ।लेकिन इस सब परिस्थितियों में बालक समझता है की उसकी माँ बहुत निष्ठुर है उसे अमुक वस्तु नहीं देती उसे अमुक प्रकार से सताती है और आवश्यकता पड़ने पर सहायता नहीं करती । अल्पज्ञान के कारण बालक अपनी माँ के प्रति अपने मन में दुर्भाव ला सकता है उस पर निष्ठुरता का दोषारोपण कर सकता है निश्चय ही उसकी ये मान्यता भ्रम पूर्ण होती है यदि वह माता के हृदय को देख सकता तो उसे पता चलता की उसके हृदय में उसके लिए कितनी करुणा और प्रेम भरा हुआ है ।
माँ के स्नेह के दो अलग-अलग तरीके  होते है एक तरीका वो जिनसे बालक प्रसन्न होता है जब उसे मिठाइयाँ खिलौने ,कपड़े आदि दिए जाते है और सैर कराने तमाशा दिखाने ले जाया जाता है तो बालक सोचता है मेरी माँ कितनी अच्छी है और जब उसी बालक को उसकी आँख में काजल लगाने के लिए उसके हाथ कसके पकड़कर उसके साथ ज़बरदस्ती करती है उसे ज़बरदस्ती नहलाती है स्कूल छोड़ने जाती है तो बालक झल्लाता है और माँ को कोसता है ।बालक बुद्धि ये नहीं जानती की कभी कठोर और कभी मधुर व्यवहार उसके साथ क्यों किया जा रहा है ।
इसी प्रकार मनुष्य है उस पर भी ईश्वर सुख और दुःख दो प्रकार से अपनी कृपा बरसाता है ईश्वर प्रदत्त सुख और दुःख दोनों ही हमारे लिए श्रेयस्कर होते है लेकिन अल्पज्ञता हमें उसका आभास नहीं होने देती ।जब भगवान की कृपा होती है तभी बुद्धि में सद्ज्ञान का प्रकाश होता है तो कष्ट देने वाली कोई भी वस्तु शेष नहीं रहती ।सुख से मनुष्य को कई लाभ है सुख से मनुष्य का मन प्रसन्न रहता है इन्द्रियाँ तृप्त होती है मन में उत्साह रहता है उन्नति करने में सुविधा रहती है साहस बढ़ जाता है और मान बढाई के अवसर मिलते है इस प्रकार सुख के अनेक लाभ है। लेकिन मानकर चलिए दुःख के लाभ भी कम नहीं होते है, दुःख से मनुष्य की सोयी हुई प्रतिभा का विकास होता है कष्ट से अपनी रक्षा करने के लिए दिमाग के सभी कलपुर्जे एक साथ क्रिया शील हो उठते है एवं शरीर भी आलस्य छोड़ कर कर्मनिष्ठ हो जाता है ।घुड़सवार अपने घोड़े को समय के अनुसार चलाने के लिए हंटर का उपयोग करता है जिसके इशारे से घुड़सवार घोड़े को कंट्रोल कर उसे अपने मन मुताबिक़ चलता है उसी प्रकार दुःख रूपी हंटर जीवन रूपी घोड़े को एक सही चाल चलाने के लिए आवश्यक होता है ।
अतः मनुष्य को सुख और दुःख दोनों ही परिस्थितियों में संतुलन बनाते हुए मन में इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए की दुःख भी ईश्वर की कृपा का अंश है और निश्चित रूप से ये सुख की प्राप्ति कराएगा ।



सर्वाधिकार सुरक्षित















14 May 2017

सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थ

 मानव ईश्वर की अनमोल कृति है । लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्द-गिर्द ही रचा बसा है गीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती । इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पढ़े है जो पुरुषार्थ के महत्व को प्रमाणित करते हैं हम इतिहास टटोलकर देखें तो ईसा मसीह, सुकरात,अब्राहम लिंकन, कालमार्क्स, नूरजहाँ, सिकंदर आदि ऐसे कई उदाहरण इतिहास में विद्यमान है जिन्होंने अपने निजी जीवन में बहुत से दुःख और तकलीफें झेली इनके जीवन में जितने दुःख और परेशानियां आई इन्होंने उतनी ही मजबूती के साथ उनका मुकाबला करते हुए न केवल एक या दो बार बल्कि जीवन में अनेकों बार उनका डटकर मुकाबले किया और अपने प्रबल पुरुषार्थ से उन समस्याओं और दुखों को परास्त करते हुए इतिहास में अपना एक सम्माननीय स्थान बना लिया ।
सिकंदर फिलिप का पुत्र था कहा जाता है की सिकंदर की माँ अपने प्रेमी के प्रणय जाल में इतनी अंधी थी की उसने अपने पति फिलिप को धोखे से मरवा दिया और सिकंदर का भी तिरस्कार किया मगर सिकंदर का परिस्थितियों पर हावी होने का इतना प्रबल पुरुषार्थ था की सिकंदर ने अपने दुर्भाग्य को पुरुषार्थ से सौभाग्य में परिणीत कर दिया ।
एक मूर्तिकार का बेटा जो देखने में बड़ा कुरूप था उसने अपने जीवन की शुरुआत एक सैनिक के रूप में की और बहुत छोटी उम्र में उसके पिता का साया उस पर से उठ गया अब उसकी माँ ही थी जो अपने पुत्र और अपने जीवन का निर्वाह दाई का कम करके करती थी यही कुरूप बालक आगे चलकर सुकरात के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसने अपने पुरुषार्थ से दर्शनशास्त्र के जनक की उपाधि प्राप्त की ।
एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने वाला लिओनार्दो विन्ची को भी अपने जीवन में माता पिता के बीच हुए मनमुटाव के कारण अलग होने पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पढ़ा बहुत गरीब स्थिति में उसने अपना जीवन बिताया थोडा बड़े होते ही घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गयी लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया और इटली ही नहीं अपितु पुरे विश्व में शिल्प और चित्रकला के नये आयाम स्थापित कर अपनी कलाकृतियों के द्वारा अमर हो गया ।
ईसा मसीह जिनके आज दुनिया में एक तिहाई अनुयायी है उनका जन्म एक बढ़ई के घर में हुआ लेकिन ईश्वर में अपनी आस्था और विश्वास के द्वारा उन्होंने श्रेष्ठ मार्ग पर चलते हुए सभी विघ्न बाधाओं को काटते हुए वे एक महामानव बने और लोगों के लिए सत्य का मार्ग अवलोकित कर गये ।
भारत वर्ष को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म भी एक दासी से हुआ था लेकिन उसे चाणक्य जैसे गुरु मिले और उनके बताये रास्ते पर चलते हुए वह अपने पराक्रम और पुरुषार्थ के द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने में सफल रहा ।
प्रसिद्द विचारक और दार्शनिक कुन्फ़्युसिअस को तीन वर्ष की छोटी सी उम्र में ही पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा था अपने पिता को वो अभी ठीक प्रकार से पहचान भी नहीं पाया था की वह अनाथ हो गया है और छोटी सी उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन  के कार्य में लगना पढ़ा लेकिन बढ़ा बनने की इच्छा उसमें प्रारम्भ से ही थी यद्यपि 19 वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हो गया और तीन संतानों के साथ बड़ी ही तंगहाली में उसने जीवन जिया लेकिन अपने पुरुषार्थ और दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण उसने चमत्कार कर दिखाया और महान  दार्शनिक कहलाया ।
कालमार्क्स यद्यपि गरीब था और मरते तक उसने तंगहाली में ही जीवन जिया लेकिन अपनी संकल्प शक्ति और दृढ़ विचारों द्वारा दुनिया के करोड़ो लोगों को अपने भाग्य का विधाता आप बना गया उसने अपनी पुस्तक “दास केपिटल” को सत्रह बार लिखा अठारवीं बार में वो अपने उद्दत रूप में निकलकर बाहर आई और साम्यवाद की आधारशिला बन गयी।   
नूरजहाँ जिसके इशारे पर जहांगीर अपना शासन चलाता था एक निर्वासित ईरानी की बेटी थी जो शरणार्थी बनकर सम्राट अकबर के दरबार में आया था ।
अपने संगठन शक्ति दूरदर्शिता दावपेंच और सीमित साधनों के बल पर औरंगजेब के नाकों चने चबवाने वाले शिवाजी के पिता शाहजी एक रियासत के दरबारी थे शिवाजी को अपने पिता का किसी प्रकार का सहयोग या आश्रय नहीं मिला उनका साहस केवल माता की शिक्षा और गुरु के ज्ञान पर टीका हुआ था वे साहस और पराकृम के बल पर स्वराज्य के लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ते गये एवं यवनों से जूझकर छत्रपति राष्ट्राध्यक्ष बने ।
शेक्सपियर जिनकी तुलना संस्कृत के महान कवि कालिदास से की जाती है एक कसाई के बेटे थे परिवार के निर्वाह हेतु उन्हें भी लम्बे समय तक वही काम करना पड़ा लेकिन बाद में अपनी अभिनय प्रतिभा तथा साहित्यिक अभिरुचि के विकास द्वारा अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि तथा नाटककार बन गये ।
न्याय और समानता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले  अब्राहम लिंकन को कौन नहीं जानता उन्होंने अपने जीवन में असफलताओं का मुँह इतनी बार देखा की यदि पूरे जीवन के कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उनमे सौ में से निन्यानवे तो असफल रहे है जिस काम में भी उन्होंने हाथ डाला असफल हुए । रोजमर्रा के निर्वाह हेतु एक दूकान में नौकरी की तो दुकान का दिवाला निकल गया किसी मित्र से साझेदारी की तो धंधा ही डूब गया जैसे तैसे वकालत पास की लेकिन वकालत नहीं चली चार बार चुनाव लढ़े  और हर बार हारे जिस स्त्री से शादी की उसके साथ भी सम्बन्ध बिगड़ गये और वो इन्हें छोड़कर चली गयी जीवन  में एक बार उनकी महत्वाकांक्षा  पूरी हुई जब वे राष्ट्रपति बने और इस सफलता के साथ ही वो विश्व इतिहास में सफल हो गये ।
विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइन जिसने परमाणु शक्ति की खोज की वो खोजी बचपन में मुर्ख और सुस्त था । उनके माता-पिता को चिंता होने लगी थी की ये अपना जीवन कैसे चला पायेगा लेकिन जब उन्होंने प्रगति पथ पर बढ़ना शुरू किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया ।
सफलता के लिए अनुकूल परिस्थितियों की बात नहीं देखी जाती बल्कि संकल्प शक्ति को जगाया उभारा एवं विकसित किया जाता है आशातीत सफलता हर क्षेत्र में प्राप्त करने का एक ही राजमार्ग है प्रतिकूलताओं से टकराना और अंदर छिपी सामर्थ्य को उभारना ।




सर्वाधिकार सुरक्षित














युवा नरेन्द्र से स्वामी विवेकानंद तक....

  जाज्वल्य मान व्यक्तित्व के धनी स्वामी विवेकानंद ‘ विवेकानंद ’ बनने से पहले नरेन्द्र नाम के एक साधारण से बालक थे। इनका जन्म कोलकता में एक स...