12 Feb 2017

वैलेंटाइन डे युवाओं का एक दिवालियापन


प्रेम शब्दों का मोहताज़ नहीं होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती हैप्रेमी के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है। 
एक शेर मुझे याद आता है कि............. 
बात आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है
जुबां का क्या है ये कभी भी मुकर जाती है ।।
इस शेर के बाद आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करता हूँ कहते है किसी देश में कोई राजा हुआ जिसने अपनी सेना को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए अपने सैनिकों के विवाह करने पर रोक लगा दी थी जिसके कारण समाज में व्यभिचार फैलने लगा सैनिक अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को अनैतिक रूप से पूरा करने लगे जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पढने लगा ऐसे में उस राज्य में एक व्यक्ति हुआ अब वो संत था या क्या था इसका इतिहास कहीं नहीं मिला लेकिन हाँ उसने उस समय प्रताड़ित किए गये इन सैनिकों की सहायता की और समाज को नैतिक पतन से बचाने के लिए सैनिकों को चोरी छिपे विवाह करने के लिए उत्साहित किया. उसका  परिणाम ये हुआ की राजा नाराज़ हो गया और उसने उस व्यक्ति की हत्या करवा दी तब से ही पश्चिम के लोग उस मृतात्मा को याद करने के लिए इस दिवस को वैलेंटाइन डे के रूप में मनाते हैं । जिसका हमारी तरफ से कोई विरोध नहीं है लेकिन इस दिवस के नाम पर बाज़ारों में पैसे की जो लूट होती है या कहें भारतीय संस्कारों का पतन होता हैअश्लीलता और फूहड़ता के जो दृश्य उत्पन्न होते है उनसे हमारा विरोध है 
अब सोचने वाली बात ये है की भारतीय संस्कृति में ये प्रदूषण आया कैसे हम भारतीय इतने मूर्ख कैसे हो गये की किसी और देश में घटने वाली घटना से संबंधित तथाकथित पर्व हमने अपनी संस्कृति में घुस आने दिया 
एक ऐसा देश जो राधा और कृष्ण के निर्विकार निश्चल प्रेम का साक्षी रहा हो जिसने समूची सृष्टि को प्रेम के वास्तविक रूप से अवगत कराया हो वहां के युवाओं द्वारा ये वैलेंटाइन डे मनाकर के अपनी संस्कृति का ह्रास करना ,फूहड़ता और अश्लीलता का प्रदर्शन करना कहां तक जायज़ है. हमारी संस्कृति में पहले से ही बसंत पंचमीहोली जैसे सार्थकउद्देश्यपरक त्यौहार है । जिनमें पूरा समाज मिलजुल कर खुशियाँ मनाता है । जब इस प्रकार के सामूहिक उल्लास के पर्व है तो हमारे युवाओं को उधार के उद्देश्यहीन और अश्लीलता से भरे ये पर्व है न जाने क्यों आकर्षित करते है. लार्ड मैकाले की बड़ी इच्छा थी कि वो शरीर से भारतीय और मानसिकता से अंग्रेजी सोच वाले लोगों को तैयार करे उसके इस स्वप्न को आज हमारे युवा साकार करते नजर आते है 
सात दिवस पहले से ही बांहों में बाहें डाले फूहड़बेतुके कपड़े पहने आपको ऐसे बरसाती मेंढक सड़कों पर घूमते हुए आसानी से मिल सकते है. जो इन सात दिनों तक एक दूसरे के लिए पागल रहते है और सच मानिए ऐसे दिखावा करने वालों का प्रेम अगले सात दिनों तक भी नहीं चलता क्यों ?
क्योंकि ये प्रेम के सच्चे स्वरूप को नहीं जानते एक दूसरे से लिपटना चिपटना प्रेम नहीं है ये तो केवल हवस और सेक्स है जिसे हमारे युवा प्रेम समझ बैठते है और एक दूसरे के प्रति आकर्षण खत्म हो जाने के बाद ये प्रेम भी तिरोहित हो जाता है बचता है तो तनाव और मानसिक अशांति  प्रेम ईश्वर के होने का एहसास है प्रेम वो भावना है जो हमारे अंदर ईश्वर की उपस्थिति दर्शाती है प्रेम एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति को अपना बना सकते है सच्चे और निर्विकार प्रेम के आगे तो स्वयं भगवान् भी हाथ बांधे अपने प्रेमी के सामने खड़े नज़र आते है. आज जिस प्रकार के प्रेम की बात की जाती है और वो अनेकों विकृतियों से भरा हुआ है. निश्चित रूप से वो प्रेम की परिभाषा भारत की तो नहीं हो सकती हम भारतीय इस उधार की संस्कृति को अपनाकर अपने देश की छवि को धूमिल करने में लगे है 
भारतीय प्रेम किसी एक दिवस का मोहताज नहीं है भारतीय संस्कृति में हर दिवस ही प्रेम दिवस है  हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम है. अफ़सोस की आज़ादी के पहले इतने काले अँग्रेज़ नहीं थे जितने आज़ादी के बाद बन गए हैं  क्या आप अपने आपको वैज्ञानिक बुद्धि का कहते हो क्या कभी जानने की कोशिश की के जो कर रहे हैं इसके पीछे का सच क्या है वास्तव में सच ये है की इस प्रकार से भारतीय युवाओं को वैलेंटाइन डे जैसे दिनों के प्रति आकर्षित करके भारत के रुपये पैसे को खींचना है इन साथ दिनों में करोड़ों रुपये विदेशी तिजोरियों में चले जाते है अब एक प्रश्न है भारतीय युवाओं से क्या वो जिस व्यक्ति को प्रेम करते है वो इतना लालची है की इन दिनों जब तक आप उसे कोई उपहार नहीं देंगे तब तक वो आपके प्रेम को स्वीकार नहीं करेगा  क्या इन दिनों में विशेष कोई गृह दशा होती  है की इन दिनों ही अपने साथी को चोकलेट खिलाओफूल दोगुड्डा गुडिया दोतो उसके प्रभाव स्वरूप वो आपके प्रेम को स्वीकार कर लेगा  निश्चित रूप से आप कहेंगे ऐसा नहीं है फिर ये निराधार  वैलेंटाइन डे का दिवालियापन क्यों ?
एक और पक्ष भी है मेरे पास कई तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस की प्रशंसा के गीत गाते नज़र आते है उनका कहना ये होता है कि इस दिवस को आप इतना गलत तरीके से क्यों लेते हो इस दिवस को आप अपने परिवार अपने माता पिता ,बहन-भाई के साथ मना सकते है तो भाई में ये पूछना चाहता हूँ की जिस घटना का और घटना से सम्बन्धित इतिहास का भारत से कोई लेना देना ही नहीं है उसे यहाँ मनाने की आवश्यकता ही क्या है इस सप्ताह में एक दिवस आता किस डे (kiss Day) अब मनाओ अपनी माता- बहनों  के साथ कैसे सम्भव है ये अश्लीलता ?
भारत के एक महान संत ने इस संस्कृति की रक्षा हेतु इस दिवस को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में घोषित किया है जिसके पीछे उद्देश्य आज  विघटित होते परिवार और हमारी संस्कृति को जो हानि हो रही है उसकी भरपाई करना है उन्होंने इस सप्ताह को मातृ-पितृ पूजन सप्ताह बनाया है । उन्होंने इस सप्ताह के प्रत्येक दिवस को एक अलग रंग देने के लिए अलगअलग नाम दिए है ।
प्रथम दिवस धारणा दिवस  जिसका उद्देश्य है की व्यक्ति अपने अंदर श्रेष्ठ धारणाएँ उत्पन्न ही न करे बल्कि धारणाओं में दृढ़ता भी लायें ।
द्वितीय दिवस भावना दिवस मनुष्य का जीवन उसके अंदर उत्पन्न होने वाली भावनाओं पर आधारित होता हो जो जैसा सोचता है वैसा बनता चला जाता है तो इस दिवस पर अपनी भावनाओं,विचारों को ठीक करने का संकल्प लें ।
तीसरा दिवस है सेवा दिवस ये दिवस प्रेरित करता है की हम परोपकारी बने जैसे भी हो सके मन से वचन से कर्म से या धन से लोगों की सेवा करने का संकल्प लें ।
चौथा दिवस है संस्कार दिवस अर्थात हम संस्कारों को धारण करें कौन से संस्कार ,वो संस्कार जो हमारे व्यक्तित्व का विकास करें हमें हमारे धर्म और  परिवार का नाम रोशन करने में मदद करे. इसकी नैतिक जिम्मेदारी माता-पिता की है क्योंकि आज बच्चों में यदि संस्कारों का अभाव  है तो उसके लिए माता-पिता भी दोषी है तो ये दिवस हमें बताता है की बच्चों के लिए भी समय निकाले और बच्चे भी श्रेष्ठ संस्कारों को धारण करें ।
पाँचवां दिवस संकल्प दिवस इस दिवस पर आप संकल्प ले की आपके अंदर आपको जो भी दुर्गुण दिखाई देते है आप उन पर लगाम लगायेंगे वो दुर्गुण एकदम समाप्त नहीं भी हो पाए तो कम से कम उनको कम करने का संकल्प तो ले ही सकते है तो इस दिवस बुराइयों को छोड़ने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प ले सकते है.
छटा दिवस है सत्कार दिवस इस भागती दौड़ती दुनिया में हर आदमी पैसे की ओर अंधाधुंध दौड़ता नजर आता है. किसी व्यक्ति को किसी अतिथि के आने की तिथि मालूम पड़ जाए तो उसके आने से पहले ही वो किसी और का अतिथि बन जाता है । हमारे देश में अतिथि को देव कहा गया है हमारी परम्परा अतिथि देवो भव: की रही है । लेकिन वर्तमान समय में इस भावना का अभाव नजर आता है. कोई किसी का सत्कार नहीं करना चाहता हाँ स्वयं के सत्कार के लिए सब लालायित है  लेकिन जब तक आप सत्कार करेंगे नहीं तब तक आपका सत्कार भी नहीं हो सकता तो अपने इष्ट मित्रों के साथ समय व्यतीत करें अपने अंदर अतिथि देवो भव: की भावना लाये तो देखिये परिवारों और इष्ट मित्रों के बीच आप अपने आप को कितना निश्चिंन्त और प्रसन्न अनुभव करेंगे जो लोग एकाकीपन का अनुभव करते है ये दिवस उन्हें विशेष रूप से मनाना चाहिए ।
सातवाँ दिवस है श्रद्धा दिवस अर्थात ये दिवस संदेश देता है की हम वैसे तो रोज ही प्रदर्शित करते है लेकिन आज के दिन विशेष रूप से अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रदर्शित करें । क्योंकि हमारे बड़े ही हमारी वो जडें हैं जिन्होंने हमें सींचकर  समाज के योग्य बनाया है तो निश्चित रूप से हमें उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए.
आठवाँ दिवस मातृ-पितृ पूजन दिवस ये जितने भी दिवस हम मनायेंगे इन सब का आधार है माता-पिता........
माता-पिता है तो श्रेष्ठ धारणा है,भावना है ,सेवा है और संस्कार है
धरती पर माता पिता ईश्वर का प्रतिपल अवतार है ।
माता-पिता है तो जीवन में श्रेष्ठ संकल्प हैसत्कार है श्रद्धा और विश्वास है,
माता-पिता की कृपा ही हमारे जीवन का आधार है ।
इसलिए इस दिवस माता-पिता की पूजा कर स्वयं को कृतार्थ करें. माता-पिता का सम्मान करें उनके साथ समय व्यतीत करें ये ही इस दिवस का संदेश है 
तो चलिए क्यों न आज से हम अपने जीवन में  श्रेष्ठ आदर्शों को अपनाते हुए अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु इस वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में आत्मसात करें         




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6 Feb 2017

राम केवल एक चुनावी मुद्दा नहीं हमारे आराध्य है

राम केवल चुनावी मुद्दा नहीं बल्कि हमारे आराध्य होने के साथ-साथ हमारे गौरव का प्रतीक है । ये देश जो राम के आदर्शों का साक्षी रहा है ये अयोध्या जहां राम ने अपने जीवन आदर्शों के लिए न केवल कष्ट सहे बल्कि मनुष्यत्व के श्रेष्ठ गुणों को उसके चरम तक पहुँचाया वो राम आज केवल एक चुनावी मुद्दा है जिसे नेता अपनी–अपनी इच्छानुसार तोड़ते-मरोड़ते, घुमाते-फिराते हुए अपने मतलब सिद्ध करने में लगे हुए है। राम की मर्यादाओं और आदर्शों का दम भरने वाले सारे नेता सिर्फ ये सोच रहे है कैसे राम की कसम खा-खाकर राम मंदिर का लोभ दिखाकर लोगों को बरगलाया जाए और राम को मुद्दा बनाकर कैसे अपना–अपना उल्लू सीधा किया जाए । राम मंदिर निर्माण  के मूल प्रश्न को छोड़ कर लोगों को राम के म्युसियम से बहलाने की चेष्टा की जा रही है । हमारे रावण रूपी नेता राम की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर लोगों की श्रद्धा रूपी सीता का हरण करने में लगे हुए है । लेकिन ये लोग भूल गये है की सीता का हरण तो रावण ने कर लिया था लेकिन कभी उसका वरण ही कर पाया था इसी प्रकार ये नेता कितना भी राम के नाम पर चीख लें नारे बाज़ी कर ले भारत का हिन्दू तब तक संतुष्ट नहीं होगा जब तक की राम मंदिर का निर्माण शुरू नहीं हो जाता ।  भारत का एक बढ़ा कवि जब भी उसे अवसर मिलता है दो लाईन कहता है कि “राम लला है टाट में ,और पट्ठे सारे ठाट में” वर्तमान समय के राजनीतिक दल ये पंक्तियाँ चरितार्थ करते नज़र आ रहे है सरकार अन्य समुदायों के लिए कितनी भी तुष्टिकरण की राजनीति कर ले लेकिन हिन्दू वोट के आभाव में सरकार बन ही नहीं सकती।
कहा जाता था की जब कोर्ट का फैसला आएगा तब राम मंदिर का निर्माण होगा कोर्ट का फैसला आये एक अरसा हो गया लेकिन मंदिर निर्माण की बात अभी तक खटाई में है ये ही फैसला अगर मुस्लिम समुदाय के पक्ष में आता तो तथाकथित सेक्युलर मुंह धोकर समर्थन में आ जाते हमारे देश के साधु संत जब भी इस मुद्दे को उठाने या लोगों को जगाने के लिए प्रयत्न करते है तो उनका विरोध होता है चैनलों पर बड़ी बहस होती है और जब ये मुद्दा राजनीतिज्ञों की कुर्सियां हिलाने की तैयारी में होता है तो हिन्दू संतों पर आक्षेप लगाकर जनमानस को दूसरी दिशा की और मोड़ दिया जाता है । कब तक हिन्दू धर्म ये अन्याय सहन करेगा ।गीता में कृष्ण कहते है की यदि ईश्वर को देखना हो तो प्रातः ब्राह्मण का मुख देखा जाना चाहिए अर्थात ब्राह्मण धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, अन्य जातियां भी सम्माननीय है उन्हें भी भगवान ने गीता में उनकी योग्यता के अनुसार परिभाषित किया है ।
लेकिन बड़े दुःख का विषय है जिन लोगों पर भरोसा करके उन्हें देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठाया उन्होंने भी हमारे साथ न्याय नहीं किया हम धोखे खाये हुए प्राणी है तब तक किसी भी सरकार पर विश्वास नहीं कर सकते जब तक की वो व्यक्ति या सरकार राम मंदिर का निर्माण शुरू नहीं करवा दे । क्योंकि इस बार तो इस मुद्दे को रखा ही नहीं गया है सिर्फ म्युसियम की लोली पॉप पकड़ा दी है। ऐसा क्यों जब कोर्ट द्वारा ने ये मान लिया गया है की वहां बाबरी नहीं बल्कि राम मंदिर था तो उसका निर्माण शूरू क्यों नहीं हो रहा है? अब किस विवाद का इंतज़ार कर रही है सरकार ।
सरकार इस बात को निश्चित रूप से मान ले की ये देश उन 80 प्रतिशत हिन्दुओं का है जिनके आदर्श श्री राम है जब तक ब्राह्मणों में सहनशक्ति है तब तक ही राम मंदिर नहीं बन रहा है जिस दिन इस देश के हिन्दुओं ने मुट्ठी कस ली उस दिन अपनी वर्षों पुरानी बढ़ी-बढ़ी पार्टियों का दावा करने वालो को भागने के लिए कोई भी मार्ग शेष नहीं होगा क्योंकि ये निश्चित है की राम मंदिर का निर्माण तो होगा और होगा ।
क्योंकि सरकार या कोई व्यक्ति विशेष चाहे राम को राजनीतिक मुद्दा बनाने की धृष्टता कर ले लेकिन ये ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा ।अभी तक हिन्दू धर्म पर हो रहे अत्याचारों को हिन्दू ने सहन कर अपनी सहनशीलता का प्रदर्शन किया है ये हिन्दुओं की नपुंसकता नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा प्रद्दत उनका क्षमाशील स्वभाव है लेकिन ये जान लेना भी बहुत आवश्यक है की जब क्रांति होने वाली होती है तो उससे पहले शांति का वातावरण कुछ क्षणों के लिए निर्मित होता है उसे ही सत्य मान लेना मूर्खता है।  हिंदुत्व की ये शांति क्रांति का मार्ग प्रशस्त करने की और बढ़ रही है, आये दिन हमारे हिन्दू धर्म के ऊपर आक्षेप विक्षेप करना हमारे धर्म गुरुओं का निरादर करना कहानियाँ बनाकर धर्म को नीचा दिखाने वाली फूहड़ बहस का प्रसारण करना। एके 47 रखने वाले को 145 दिन पहले रिहा कर देना, हिरन मारने वाले और सोते हुए लोगों को मौत के घाट उतारने वाले को बाइज्ज़त छोड़ देना और एक 80 साल के वृद्ध पुरुष को बेल तक नहीं मिलना ये न्यायपालिका का कैसा दोगला पन है। जिसका समर्थन सुब्रमन्यम स्वामी जैसे बेरिस्टर कर चुके हो अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों ने जिसके सम्मान में कसीदे पढ़े हो ऐसे हिन्दू धर्म के संतो के साथ अन्याय करना अब बंद कर देने में ही बुद्धिमानी है ऐसा ही जैनेन्द्र सरस्वती और अन्य कई हिन्दू धर्म गुरुओं के साथ हो चुका है ,इतिहास में एक ब्राह्मण हुआ था जिसमें धरती को अनेकों बार ब्राह्मणों का निरादर करने वालों को काल का ग्रास बनाकर समूल नष्ट कर दिया था ।आज की परिस्थितियाँ भी ऐसी ही बनी हुई है जहां हमे ऐसे ही विकराल काल रूप धारण करने वाले हिन्दू युवा संगठनों के मनोभावों का सम्मान करते हुए उनके हिंसक स्वरूप को प्रकट होने से रोकना है ।
सरकार को हिन्दू युवाओं के रोष को समझने और होश में आने की आवश्यकता आन पढ़ी है यदि अभी भी सरकार होश में नहीं आई तो वो दिन दूर नहीं जब देश में हिंसक गतिविधियाँ मुंह फाड़कर उसके समक्ष खड़ी हो जायेगी तक ये सरकार क्या अपने ही लोकतंत्र को जेलों में बंद करेगी । ये निश्चित रूप से एक संवेदनशील और गंभीर विषय है जिस पर न केवल विचार बल्कि निर्णायक विचार कर कुछ सार्थक कदम भी उठाने चाहिए ।
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युवा नरेन्द्र से स्वामी विवेकानंद तक....

  जाज्वल्य मान व्यक्तित्व के धनी स्वामी विवेकानंद ‘ विवेकानंद ’ बनने से पहले नरेन्द्र नाम के एक साधारण से बालक थे। इनका जन्म कोलकता में एक स...