प्रेम शब्दों
का मोहताज़ नहीं होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती है, प्रेमी
के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है।
एक
शेर मुझे याद आता है कि.............
“बात
आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है
जुबां का क्या
है ये कभी भी मुकर जाती है ।।”
इस शेर के बाद
आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करता हूँ कहते है किसी देश में कोई राजा हुआ
जिसने अपनी सेना को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए अपने सैनिकों के विवाह करने पर
रोक लगा दी थी जिसके कारण समाज में व्यभिचार फैलने लगा सैनिक अपनी शारीरिक
आवश्यकताओं को अनैतिक रूप से पूरा करने लगे जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पढने लगा
ऐसे में उस राज्य में एक व्यक्ति हुआ अब वो संत था या क्या था इसका इतिहास कहीं नहीं
मिला लेकिन हाँ उसने उस समय प्रताड़ित किए गये इन सैनिकों की सहायता की और समाज को
नैतिक पतन से बचाने के लिए सैनिकों को चोरी छिपे विवाह करने के लिए उत्साहित किया.
उसका
परिणाम ये हुआ की राजा नाराज़ हो गया और उसने उस व्यक्ति की हत्या
करवा दी तब से ही पश्चिम के लोग उस मृतात्मा को याद करने के लिए इस दिवस को वैलेंटाइन
डे के रूप में मनाते हैं । जिसका हमारी तरफ से कोई विरोध नहीं है लेकिन इस दिवस के
नाम पर बाज़ारों में पैसे की जो लूट होती है या कहें भारतीय संस्कारों का पतन होता
है, अश्लीलता और फूहड़ता के जो दृश्य उत्पन्न होते है
उनसे हमारा विरोध है ।
अब सोचने वाली
बात ये है की भारतीय संस्कृति में ये प्रदूषण आया कैसे हम भारतीय इतने मूर्ख कैसे
हो गये की किसी और देश में घटने वाली घटना से संबंधित तथाकथित पर्व हमने अपनी
संस्कृति में घुस आने दिया ।
एक ऐसा देश जो
राधा और कृष्ण के निर्विकार निश्चल प्रेम का साक्षी रहा हो जिसने समूची सृष्टि को
प्रेम के वास्तविक रूप से अवगत कराया हो वहां के युवाओं द्वारा ये वैलेंटाइन डे
मनाकर के अपनी संस्कृति का ह्रास करना ,फूहड़ता और अश्लीलता का
प्रदर्शन करना कहां तक जायज़ है. हमारी संस्कृति में पहले से ही बसंत पंचमी, होली जैसे सार्थक, उद्देश्यपरक त्यौहार है । जिनमें
पूरा समाज मिलजुल कर खुशियाँ मनाता है । जब इस प्रकार के सामूहिक उल्लास के पर्व
है तो हमारे युवाओं को उधार के उद्देश्यहीन और अश्लीलता से भरे ये पर्व है न जाने
क्यों आकर्षित करते है. लार्ड मैकाले की बड़ी इच्छा थी कि वो शरीर से भारतीय और
मानसिकता से अंग्रेजी सोच वाले लोगों को तैयार करे उसके इस स्वप्न को आज हमारे
युवा साकार करते नजर आते है ।
सात दिवस पहले
से ही बांहों में बाहें डाले फूहड़, बेतुके कपड़े पहने आपको ऐसे
बरसाती मेंढक सड़कों पर घूमते हुए आसानी से मिल सकते है. जो इन सात दिनों तक एक
दूसरे के लिए पागल रहते है और सच मानिए ऐसे दिखावा करने वालों का प्रेम अगले सात
दिनों तक भी नहीं चलता क्यों ?
क्योंकि ये
प्रेम के सच्चे स्वरूप को नहीं जानते एक दूसरे से लिपटना चिपटना प्रेम नहीं है ये
तो केवल हवस और सेक्स है जिसे हमारे युवा प्रेम समझ बैठते है और एक दूसरे के प्रति
आकर्षण खत्म हो जाने के बाद ये प्रेम भी तिरोहित हो जाता है बचता है तो तनाव और
मानसिक अशांति । प्रेम ईश्वर के होने का एहसास है प्रेम वो
भावना है जो हमारे अंदर ईश्वर की उपस्थिति दर्शाती है प्रेम एक ऐसा माध्यम है
जिसके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति को अपना बना सकते है सच्चे और निर्विकार प्रेम के
आगे तो स्वयं भगवान् भी हाथ बांधे अपने प्रेमी के सामने खड़े नज़र आते है. आज जिस
प्रकार के प्रेम की बात की जाती है और वो अनेकों विकृतियों से भरा हुआ है. निश्चित
रूप से वो प्रेम की परिभाषा भारत की तो नहीं हो सकती हम भारतीय इस उधार की
संस्कृति को अपनाकर अपने देश की छवि को धूमिल करने में लगे है ।
भारतीय प्रेम
किसी एक दिवस का मोहताज नहीं है भारतीय संस्कृति में हर दिवस ही प्रेम दिवस है हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम है.
अफ़सोस की आज़ादी के पहले इतने काले अँग्रेज़ नहीं थे जितने आज़ादी के बाद बन गए हैं । क्या आप अपने आपको वैज्ञानिक बुद्धि का कहते हो क्या कभी जानने की कोशिश
की के जो कर रहे हैं इसके पीछे का सच क्या है वास्तव में सच ये है की इस प्रकार से
भारतीय युवाओं को वैलेंटाइन डे जैसे दिनों के प्रति आकर्षित करके भारत के रुपये
पैसे को खींचना है इन साथ दिनों में करोड़ों रुपये विदेशी तिजोरियों में चले जाते
है अब एक प्रश्न है भारतीय युवाओं से क्या वो जिस व्यक्ति को प्रेम करते है वो
इतना लालची है की इन दिनों जब तक आप उसे कोई उपहार नहीं देंगे तब तक वो आपके प्रेम
को स्वीकार नहीं करेगा । क्या
इन दिनों में विशेष कोई गृह दशा होती है की इन दिनों
ही अपने साथी को चोकलेट खिलाओ, फूल दो, गुड्डा गुडिया दो, तो उसके प्रभाव स्वरूप वो
आपके प्रेम को स्वीकार कर लेगा । निश्चित रूप से आप कहेंगे ऐसा नहीं है फिर ये निराधार वैलेंटाइन डे का दिवालियापन क्यों ?
एक और पक्ष भी
है मेरे पास कई तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस की प्रशंसा के गीत गाते नज़र आते है उनका
कहना ये होता है कि इस दिवस को आप इतना गलत तरीके से क्यों लेते हो इस दिवस को आप
अपने परिवार अपने माता पिता ,बहन-भाई के साथ मना सकते
है तो भाई में ये पूछना चाहता हूँ की जिस घटना का और घटना से सम्बन्धित इतिहास का
भारत से कोई लेना देना ही नहीं है उसे यहाँ मनाने की आवश्यकता ही क्या है इस
सप्ताह में एक दिवस आता किस डे (kiss Day) अब मनाओ अपनी
माता- बहनों के साथ कैसे सम्भव है ये अश्लीलता ?
भारत के एक
महान संत ने इस संस्कृति की रक्षा हेतु इस दिवस को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में
घोषित किया है जिसके पीछे उद्देश्य आज विघटित होते परिवार और
हमारी संस्कृति को जो हानि हो रही है उसकी भरपाई करना है उन्होंने इस सप्ताह को
मातृ-पितृ पूजन सप्ताह बनाया है । उन्होंने इस सप्ताह के प्रत्येक दिवस को एक अलग
रंग देने के लिए अलग–अलग नाम दिए है ।
प्रथम दिवस
धारणा दिवस
जिसका उद्देश्य है की व्यक्ति अपने अंदर श्रेष्ठ धारणाएँ उत्पन्न ही
न करे बल्कि धारणाओं में दृढ़ता भी लायें ।
द्वितीय दिवस
भावना दिवस मनुष्य का जीवन उसके अंदर उत्पन्न होने वाली भावनाओं पर आधारित होता हो
जो जैसा सोचता है वैसा बनता चला जाता है तो इस दिवस पर अपनी भावनाओं,विचारों
को ठीक करने का संकल्प लें ।
तीसरा दिवस है
सेवा दिवस ये दिवस प्रेरित करता है की हम परोपकारी बने जैसे भी हो सके मन से वचन
से कर्म से या धन से लोगों की सेवा करने का संकल्प लें ।
चौथा दिवस है
संस्कार दिवस अर्थात हम संस्कारों को धारण करें कौन से संस्कार ,वो
संस्कार जो हमारे व्यक्तित्व का विकास करें हमें हमारे धर्म और परिवार का नाम रोशन करने में मदद करे. इसकी नैतिक जिम्मेदारी माता-पिता की
है क्योंकि आज बच्चों में यदि संस्कारों का अभाव है तो
उसके लिए माता-पिता भी दोषी है तो ये दिवस हमें बताता है की बच्चों के लिए भी समय
निकाले और बच्चे भी श्रेष्ठ संस्कारों को धारण करें ।
पाँचवां दिवस
संकल्प दिवस इस दिवस पर आप संकल्प ले की आपके अंदर आपको जो भी दुर्गुण दिखाई देते
है आप उन पर लगाम लगायेंगे वो दुर्गुण एकदम समाप्त नहीं भी हो पाए तो कम से कम
उनको कम करने का संकल्प तो ले ही सकते है तो इस दिवस बुराइयों को छोड़ने के लिए
ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प ले सकते है.
छटा दिवस है
सत्कार दिवस इस भागती दौड़ती दुनिया में हर आदमी पैसे की ओर अंधाधुंध दौड़ता नजर आता
है. किसी व्यक्ति को किसी अतिथि के आने की तिथि मालूम पड़ जाए तो उसके आने से पहले
ही वो किसी और का अतिथि बन जाता है । हमारे देश में अतिथि को देव कहा गया है हमारी
परम्परा अतिथि देवो भव: की रही है । लेकिन वर्तमान समय में इस भावना का
अभाव नजर आता है. कोई किसी का सत्कार नहीं करना चाहता हाँ स्वयं के सत्कार के लिए
सब लालायित है लेकिन जब तक आप सत्कार
करेंगे नहीं तब तक आपका सत्कार भी नहीं हो सकता तो अपने इष्ट मित्रों के साथ समय
व्यतीत करें अपने अंदर अतिथि देवो भव: की भावना लाये तो देखिये परिवारों और
इष्ट मित्रों के बीच आप अपने आप को कितना निश्चिंन्त और प्रसन्न अनुभव करेंगे जो
लोग एकाकीपन का अनुभव करते है ये दिवस उन्हें विशेष रूप से मनाना चाहिए ।
सातवाँ दिवस है
श्रद्धा दिवस अर्थात ये दिवस संदेश देता है की हम वैसे तो रोज ही प्रदर्शित करते
है लेकिन आज के दिन विशेष रूप से अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान और श्रद्धा
प्रदर्शित करें । क्योंकि हमारे बड़े ही हमारी वो जडें हैं जिन्होंने हमें सींचकर समाज
के योग्य बनाया है तो निश्चित रूप से हमें उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए.
आठवाँ दिवस
मातृ-पितृ पूजन दिवस ये जितने भी दिवस हम मनायेंगे इन सब का आधार है
माता-पिता........
माता-पिता है
तो श्रेष्ठ धारणा है,भावना है ,सेवा है
और संस्कार है
धरती पर माता
पिता ईश्वर का प्रतिपल अवतार है ।
माता-पिता है
तो जीवन में श्रेष्ठ संकल्प है, सत्कार है श्रद्धा और
विश्वास है,
माता-पिता की
कृपा ही हमारे जीवन का आधार है ।
इसलिए इस दिवस
माता-पिता की पूजा कर स्वयं को कृतार्थ करें. माता-पिता का सम्मान करें उनके साथ
समय व्यतीत करें ये ही इस दिवस का संदेश है ।
तो
चलिए क्यों न आज से हम अपने जीवन में श्रेष्ठ आदर्शों को अपनाते
हुए अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु इस वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ पूजन दिवस के
रूप में आत्मसात करें ।
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