आज एक बच्चे से लेकर 80 वर्ष का बुज़ुर्ग
आधुनिकता की अंधी दौड़ में लगा हुआ है आज हम पश्चिमी हवाओं के झंझावत में फंसे हुए हैं।
पश्चिमी देशो ने हमें बरगलाया है और हम इतने मुर्ख की उससे प्रभावित होकर इस दिशा
की और भागे जा रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं है ।वास्तव में देखा जाए तो हमारा
स्वयं का कोई विवेक नहीं है हम जैसा देख
लेते है वैसा ही बनने का प्रयत्नं करने लगते है निश्चित रूप से यह हमारी संस्कृति
के ह्रास का समय है जिस तेज गति से पाश्चात्य संस्कृति का चलन बढ़ रहा है, उससे लगता है
कि वह समय दूर नहीं, जब हम पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम बन जायेंगे और अपनी पवित्र
पावन भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा सम्पूर्ण रूप से विलुप्त हो जायेगी, गुमनामी के
अंधेरों में खो जायेगी। आज मनोरंजन के नाप पर बुद्धू बॉक्स से केवल अश्लीलता और
फूहड़पंन का ही प्रसारण हो रहा है हमें मनोरंजन के नाम पर क्या दिया जा रहा है मारधाड़, खुन खराबा, पर फिल्माए गए
दृश्य मनोरंजन के नाम पर मानवीय गुणों, भारतीय संस्कृति व कला
का गला घोट रहे हैं।माना की आधुनिक होना आज के दौर की मांग हैं और शायद अनिवार्यता
भी है,
लेकिन
यह कहना भी गलत ना होगा कि यह एक तरह का फैशन है। आज हर शख्स आधुनिक व मॉर्डन बनने
के लिये हर तरह की कोशिश कर रहा है, मगर फैशन व आधुनिकता का वास्तविक अर्थ जानने
वालों की संख्या न के बराबर होगी, और है भी, तो उसे
उंगलियों पर गिना जा सकता है। क्या आधुनिकता हमारे कपड़ों, भाषा, हेयर स्टाइल
एवं बाहरी व्यक्तित्व से ही संबंध रखती है? शायद नहीं।
भारत वो देश है जहां पर मानव की पहचान
उसके महंगे और सुंदर वस्त्र नहीं बल्कि उसके अदंर छुपे हुए नैतिक मूल्य है जो मानव
के व्यवहार से प्रतिबिंबित होते है
विवेकानंद जब शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये तो वहां के लोग उनकी भारतीय
वेशभूषा को देख कर हास्य करने लगे कई लोगों ने मजाक बनाया बुरा भला कहा लेकिन जब
उन्होंने धर्म सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त किये तो सारा जन समूह भारतीय
संस्कृति के रंग में रंग गया विवेकानन्द ने अपने ज्ञान से विदेशियों के समक्ष अपना
लोहा मनवा दिया ।
मैं आधुनिकता के विपक्ष में नहीं हूँ मैं
समय के साथ बदलना आवश्यक मानता हूँ। लेकिन आधुनिकता का मतलब ये तो बिल्कुल नहीं है
की हम अपनी संस्कृति के स्वयं भक्षक बन
जाएँ । वास्तविक रूप में आधुनिकता तो एक सोच है, एक विचार है, जो व्यक्ति को
इस दुनिया के प्रति अधिक जागरूक व मानवीय दृष्टिकोण से जीने का सही मार्ग दिखलाती
है। सही मायने में सही समय पर, सही मौके पर अपने व्यक्तित्व को आकर्षक व् सभ्य
परिधान से सजाना, सही भाषा का प्रयोग तथा समय पर सोच-समझकर फैसले लेने की
क्षमता,
समझदारी
और आत्मविश्वास का मिला-जुला रूप ही आधुनिकता है। लेकिन आधुनिकता के नाम पर हो कुछ
और रहा है आज हमारी वेशभूषा से लेकर सोच
तक सारी पश्चिम के रंग में रंगी हुई है ।।
हम इतने आधुनिक हो गए की व्यक्ति को
व्यक्ति से बात करने की फुर्सत नहीं है सब काम ऑनलाइन है सब व्यस्त है किसी के पास
समय नहीं है लेकिन वास्तव में देखा जाए तो सब व्यस्त नहीं है बल्कि तृस्त है आज
तकनीक को हम नहीं बल्कि तकनीक हमें स्तेमाल कर रही है । सुबह उठते ही सबसे
पहले मोबाइल पर हाथ जाता है की किस –किस
के और कितने मेसेज आये ,फेसबुक पर कितने लाइक आये । आदमी पहले सुबह उठकर
ईश्वर का नाम लेता था अपनी दैनिक - चर्या से निवृत्त हो फिर वो अपने कामकाज में
लगता था परिवार के साथ माता-पिता के पास बैठता था आज हमें अपने बच्चों से बात करने
का माता-पिता के पास बैठने का ही समय नहीं है आज भीढ़ में भी आदमी अकेलेपं का अनुभव
करता है ।
आज युवा इससे ज्यादा तृस्त है वो युवा जो
आने वाले समय में इस देश की दिशा धारा निर्धारित करने वाले है । वेशभुषा हमारी
निहायती फूहड़ और भद्दी हो गयी बिगडती हुई भाषा शैली और अस्त व्यस्त जीवन शैली से
युवा तृस्त है । अपने बच्चो को छोटे-छोटे कपड़े पहनाने में भी हमें अब गर्व का
अनुभव होने लगा है सलवार कुर्ते की जगह अब मिनी स्कर्ट और टॉप ने ले लिया लेकिन
इसका परिणाम क्या हुआ समाज का वातावरण दूषित हुआ हाँ ये बात पक्की है मेरे इस
विचार को पढकर कई तथाकथित सामाजिक लोग मुझे पिछड़ी और छोटी सोच का व्यक्ति आंकेगे ।
जिसका मुझे कोई रंज नहीं है लेकिन ये वास्तविकता है ।
एक बहुत सोचनीय स्थिति बनी हुई है और वो
ये की हमारे बच्चे हमारी और आप की आधुनिक
शैली अपनाने की वजह से समय से पहले बड़े हो रहे ।
बचपन में दादा-दादियों द्वारा हमें
अच्छी-अच्छी कहानिया सुनाई जाती थीं। कहते हैं कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग
बिल्कुल शून्य होता है। आप उसको जिस प्रकार के संस्कार व शिक्षा देंगे उसी राह पर
वह आगे बढ़ता है। अगर वाल्यकाल में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि चोरी करना
बुरी बात है तो वह चोरी जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी अवस्था में
बच्चों को संस्कारित करने में माता-पिता, दादा-दादी व बुजुर्गो
का बड़ा हाथ होता था। कहानियां भी प्रेरणादायी होती थीं। - कही ऐसा ना हो की अंधी
आधुनिकता और स्वयं की मह्त्व्कंषा की वजह से हमारा सारा कुछ समय से पहले ही लूट
जाये और हमारे सामने रोने के सिवा कुछ ना बचे देश में आधुनिकता के नाम पर एक अंधी
दौड़ जारी है।
आम इंसान आधुनिकता की इस दौड़ में अंधा व भ्रमित हो
गया है, उसे
यही समझ में नहीं आ पा रहा कि आधुनिकता के नाम पर कंपनियाँ आम इंसान को किस प्रकार
गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने की फिराक में लगी हुई हैं।
सर्वाधिकार सुरक्षित