मित्रों बात ये है कि हम दूसरों के प्रयासों और उनकी
विशेषताओं से प्रभावित होते हैं और कहीं न कहीं हमारे मन में स्वयं के लिए हेय भाव
आ जाता है। हम सोचते हैं कि काश हम भी उस जैसे होते तो उतने ही सफल होते जब हम इस
तरह के विचार मन में लाते हैं तो कहीं न कहीं हम अपनी योग्यताओं को भूलकर स्वयं का
अपमान करते हैं और स्वयं को कमतर आँकने लगते हैं जिससे हमारा मन और बुद्धि की
योग्यता पर अनुचित प्रभाव पड़ता है ।
किसी की उपलब्धियों को देखकर प्रसन्न होना चाहिए और उसने
सफलता कैसे पाई ये सीखना चाहिए लेकिन उसके जैसे ही बनने का हठ नहीं करना चाहिए। क्योंकि
हर व्यक्ति की अपनी योग्यता संस्कार और प्रयास होते हैं जिनके आधार पर वो अपना
जीवन चलाता है ।
एक ही माता के उदर से जन्म लेने वाले बच्चों के आचार-विचार
कर्म सब अलग होते हैं कोई डॉ बनता है तो कोई क्लर्क इसलिए स्वयं को जानिए और अपने
प्रति कमतरी का भाव छोड़कर स्वयं का सम्मान कीजिये फिर देखिये आपकी योग्यताएँ किस
प्रकार आपका जीवन महकाती हैं और आपके जीवन से संतोष की सुगंध किस प्रकार आती है ।
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