2 Sept 2025

पतंगे

 

ज़िंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे, बारिशों में पतंगे उड़ाया करो।

ये शेर आज की परिस्थितियों में बिलकुल माकूल बैठता है ये ज़िंदगी हमें खुदा ने बक्शी है इस पर हम से ज़्यादा इख्तियार ख़ुदा का है। लेकिन हम लोग ज़रा-सी परेशानी और मुसीबतों के आते ही या तो शिकायतों का पिटारा खोलकर बैठ जाते हैं या फिर इस ज़िंदगी को बदसेबत्तर समझकर इसे बर्बाद या खत्म कर देते हैं ।

ख़ुदा ने ये ज़िंदगी हमें हल्के-फुलके ठंग से बसर करने के लिए अता फरमाई थी । लेकिन हमने अपनी जायज़ और नाजायज़ हसरतों को इतना बढ़ा लिया की ख्वाहिशें पूरी होने का नाम ही नहीं लेती एक के बाद एक पैदा होती रहती हैं और हर ख्वाइश पहली से ज़्यादा जायज़ लगती है । इन्हीं ख्वाइशों को मुकम्मल करने के लिए ज़िन्दगी दिन-रात गुजरती जा रही है।

किताबें

 

हमने सुना है की किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है लेकिन ये अनुभव मुझे अभी कुछ दिन फले ही हुआ जब मीने एक उपन्यास पढ़ना शुरू किया फले एक डॉ पगे तो मन बे मन पढ़ा ज्ञ लेकिन धीरे-धीरे उस पुस्तक ने मुझे अपने मोहपाश में ऐसा बांधा की उस साढ़े चार सो पागे के उपन्यास को मीने केवल पाँच दिन में पढ़कर ही डीएम लिया ।

हमें अपने जीवन में कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में किताबों से जुड़ना रहना चाहिए। ये साहित्य हिन्दी अङ्ग्रेज़ी किसी भी भाषा में हो सकता हैं । जो व्यक्ति किसी ना किसी रूप में साहित्य से जुड़ा रहता है उसमे नकरतमकता का प्रतिशत और लोगों की अपेक्षा कम होता है। साहित्य से जुड़ा व्यक्ति काल्पनिक पात्रों के माध्यम से जीवन की ऊँची-नीची परिस्थितियों से इतना रूबरू हो चुका होता है कि उसे अपने जीवन की समस्याएँ कम लगने लगती हैं। सुख-दुख के प्रसंगों में उसे अलग-अलग कहानियों के पात्र याद आते हैं जो काल्पनिक होते हुए भी पाठक के मनोबल को बनाए रखते हैं । जो साहित्य से जुड़े है सकारात्मक किस्से, कहानियाँ पढ़ते हैं वह  निराशा के कुएँ में नहीं गिरते इसलिए भले ही एक पृष्ठ पढ़ें लेकिन प्रतिदिन कोई ना कोई अच्छी पुस्तक ज़रूर पढ़ें ।

मनपसंद


ज़्यादा नहीं तो थोड़ा ही सही कुछ समय ऐसा ज़रूर निकालें जिसमें आप अपना मनपसंद कार्य करें। कई लोगों का ये अनुभव है कि जब भी कोई काम हम अपने मन के अनुरूप करतेहैं तो उस काम का परिणाम हमारी आकांक्षाओं से भी श्रेष्ठ निकाल कर सामने आता है जिससे हमारा आत्मविश्वास अपने चरम पर पहुँच जाता है और अपार आनंद की अनुभूति होती है सो अलग ।

वहीं जब हमें अपने मन के अनुरूप कार्य न मिले और मजबूरी में या दबाव में कोई कार्य करना  पड़े तो उस कार्य से शारीरिक कष्ट और मन में खिन्नता ही उत्पन्न होती है ।

मन से किया गया कठिन से कठिन से कठिन कार्य भी आत्मविश्वास और संतुष्टि प्रदान करता है जबकि ज़बरदस्ती या बेमन से किया गया सरल ,सहज कार्य भी केवल खीज और दुख उत्पन्न करता है। अतः अपनी रुचि और योग्यता को पहचान करउसके अनुरूप कार्य करें तो फिर वह कार्य, कार्य नहीं रहेगा बल्कि सुख देने वाला एक आनंददायक मनोरंजन बन जाएगा।

हेयभाव

 

मित्रों बात ये है कि हम दूसरों के प्रयासों और उनकी विशेषताओं से प्रभावित होते हैं और कहीं न कहीं हमारे मन में स्वयं के लिए हेय भाव आ जाता है। हम सोचते हैं कि काश हम भी उस जैसे होते तो उतने ही सफल होते जब हम इस तरह के विचार मन में लाते हैं तो कहीं न कहीं हम अपनी योग्यताओं को भूलकर स्वयं का अपमान करते हैं और स्वयं को कमतर आँकने लगते हैं जिससे हमारा मन और बुद्धि की योग्यता पर अनुचित प्रभाव पड़ता है ।

किसी की उपलब्धियों को देखकर प्रसन्न होना चाहिए और उसने सफलता कैसे पाई ये सीखना चाहिए लेकिन उसके जैसे ही बनने का हठ नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी योग्यता संस्कार और प्रयास होते हैं जिनके आधार पर वो अपना जीवन चलाता है ।

एक ही माता के उदर से जन्म लेने वाले बच्चों के आचार-विचार कर्म सब अलग होते हैं कोई डॉ बनता है तो कोई क्लर्क इसलिए स्वयं को जानिए और अपने प्रति कमतरी का भाव छोड़कर स्वयं का सम्मान कीजिये फिर देखिये आपकी योग्यताएँ किस प्रकार आपका जीवन महकाती हैं और आपके जीवन से संतोष की सुगंध किस प्रकार आती है ।

मेडिटेशन (ध्यान)

 

शरीर कितना भी स्वस्थ हो लेकिन हमारा मन या मस्तिष्क उदासीन है तो ये स्वस्थ शरीर भी उदासीन रहेगा और पूरे पैनेपन से कार्य नहीं कर पाएगा ।शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए जिस प्रकार व्यायाम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए ध्यान की आवश्यकता होती है ।

ध्यान किसका ?‘शून्यका अर्थात ना किसी देवता का न किसी देवी का बल्कि अपने मस्तिष्क को विचारहीन करना कुछ नहीं सोचना हालांकि ये कठिन है लेकिन प्रयास करें इसके लिए ध्यान में बैठते समय अपने श्वास की गिनती करें पहले एक से दस, फिर एक से बीस फिर निरंतर संख्या बढ़ाते रहें गिनती में गलती होने पर फिर एक से शुरू करें ऐसा करने पर आप पाएंगे की आपका मन केवल गिनती में लगा हुआ है और उसकी भागदौड़ बहुत सीमा तक कम हो गयी है। 

ये प्रयोग हमारी स्मरण शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाने में सहायता करता है जो कि आज हर वर्ग के व्यक्ति के लिए आवश्यक है ।

करीबी दोस्त

 

दोस्त’ यह शब्द याद आते ही हम सब के ज़हन में कोई न कोई चेहरा घूमने लगता है| हमारे आज भाग-दौड़ भरे जीवन और एक दूसरे से आगे बढ़ने की धमाल-चौकड़ी में हम अपने उन साथी-संगियों और करीबीयों की उपेक्षा कर बैठे हैं जिनके साथ हमने कभी जीवन का शानदार समय बिताया था। वे हमारे स्कूल, कॉलेज, ऑफिस या हमारे यायावरी के दिनों के यार हो सकते हैं | जिनके सामने हम अपना दिल खोलकर रख देते थे | जिनके साथ रहकर हमने बहुत कुछ सीखा और उनके अनुभव से बहुत कुछ पाया |

अतः हमें अपने ऐसे साथियों से फिर से मिलने और उनसे मजबूती से जुड़ने का प्रयत्न करना चाहिए। आज सोशल मीडिया से हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है सोशल मिडिया भी हमारे खोये हुए साथियों को हमसे मिलाने में सहायक हो सकता है ।

इससे दो फायदे तो निश्चित रूप से होंगे एक तो उन लोगों से मिलकर पुराने दिनों की मधुर स्मृतियाँ सहज ही हमारे मन को आनन्द से भर देगी | दूसरा हमारे जीवन में आने वाले जो उतार-चढ़ाव हैं जिन्हें हम कई बार अपने परिवार से साझा नहीं कर पाते उन्हें हम अपने करीबी दोस्तों से कहकर अपना मन हल्का कर सकते हैं तो चलो मित्रों आज ही अपने उन पुराने मित्रों की सूची बनाकर उन्हें ढूँढते हैं।

सिक्के के दो पहलू


दोस्तों, हमारा जीवन दो ही परिस्थितियों के इर्द-गिर्द गति करता है- एक है सकारात्मकता और दूसरी नकारात्मकता | हमारे आस-पास जो भी ऊर्जा फैली हुई है उसे सकारात्मक और नकारात्मक बनाना सब हमारे हाथ में है। सुने जाने वाले और कहे जाने वाले शब्दों का मन, मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है इसीलिए तो जब कोई प्रेमाप्लावित शब्दों का प्रयोग करता है तो हमारे निराश और दुखी मन में आनंद का अनुभव होता है, वहीं जब कोई हमसे कटु या कर्कश बोलता है तो हम आवेशित हो उठते हैं । सकारात्मकता और नकारात्मकता ये सिक्के के दो पहलू उछल-उछल कर जीवन का रूख बदलते रहते हैं |

अतःआज कुछ महत्वपूर्ण वाक्य आपको बता रहा हूँ जिसका दिन में एक बार मन ही मन या जैसा अनुकूल लगे वैसे बोलकर आप अपनी मनःस्थिति बदल सकते हैं| थोड़े ही अभ्यास से इन वाक्यों की सकारात्मक ऊर्जा आपको ईश्वर का स्मरण कराने के साथ-साथ आपके मनोभावों को सकारात्मकता से भर देगी | ऐसे ही कुछ वाक्य हैं हरि इच्छा प्रबल हैअर्थात भगवान की जो इच्छा है वही मेरी इच्छा है।,हरि करे सो खरीअर्थात भगवान मेरे लिए जो कर रहे हैं मेरे लिए वही उचित है| या मुझ पर ईश्वर की विशेष कृपा है।

इन तीन वाक्यों का प्रयोग आप भीषण से भीषण स्थिति में भी करेंगे तो भी आपको लाभ ज़रूर होगा और आप डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी समस्याओं से बच सकेंगे। इन वाक्यों को बोलने का या मन ही मन याद करने का अभ्यास करें निश्चित ही आपका मन दुखद परिस्थितियों में भी शांत रहेगा और आप स्वयं को ईश्वर की कृपा से घिरा पाएंगे।

अभाव

             ईश्वर से सदैव यह प्रार्थना करें कि हे! ईश्वर मेरे जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव देना परंतु कभी भी मुझे आत्मविश्वास का अभाव मत देना क्योंकि कितनी भी कीमती वस्तु व्यक्ति के जीवन से चली जाये तो हम उसे प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अपना आत्मविश्वास चला जाते तो उसके बिना जीवन अत्यंत कठिन हो जाता है क्योंकि आत्मविश्वास ही हमें वह दृष्टि प्रदान करता है जहाँ  दुख, भय और निराशा की स्थिति में भी अवसर खोज लेते हैं ।

वहीं यदि आत्मविश्वास चला जाये तो मनुष्य को अपनी छोटी-छोटी समस्याएँ भी अत्यंत विकराल और भयावह लगने लगती हैं। आत्मविश्वास के अभाव में मनुष्य का चित्त इतना कमजोर हो जाता है कि वह गंभीर विचारों पर चिंतन ही नहीं कर पाता अतः अपने आत्म विश्वास को दृढ़ बनाएँ ईश्वर पर भरोसा करें और छोटी-छोटी समस्याओं से दुखी न होकर उनका पूर्ण विश्वास के साथ सामना करें फिर देखिये आपका दृढ़ आत्मविश्वास औरों के लिए कैसे प्रेरणा स्त्रोत बनता है ।

मुस्कराहट

 

                मुस्कुराहट मनुष्य का सर्वोत्कृष्ट अलंकार है जो उसकी छवि को अधिक प्रभावशाली और सौमनस्यता से अलंकृत करता है हँसता मुस्कराता व्यक्ति उस पुष्प की तरह है  जिसे देखकर हम उसकी आत्मिक संतुष्टि और आनंद की महक का अनुभव कर सकते हैं । जहाँ प्रसन्नचित्त मनुष्य को देखकर हमारा मन प्रफुल्लित हो जाता है वहीं किसी हताश,निराश व्यक्ति को देखकर हम भी वैसे ही भाव अनुभव करने लगते हैं ।

यदि हम विचार करें तो पाएंगे हमारा सुंदर स्वस्थ शरीर, हमारे माता-पिता, इष्ट-मित्र, बंधु-बांधव ये सब हमारे पास हैं हमारा शरीर स्वस्थ है हम दोनों समय भरपेट भोजन कर रहे हैं ये सभी हमारे प्रसन्न रहने के पर्याप्त कारण हैं । अपनी छोटी-छोटी समस्याओं को भूलकर यदि हम इन पर चिंतन करें तो हम सदैव प्रसन्न रह सकते हैं, और यदि इन्हें हम भूल जाएँ तो हमारे आसपास फैली हुई नकारात्मकता और समस्याएँ हमें धर दबोचेंगी।

समय प्रबंधन (कविता)

 

हे! मित्र समय प्रबंधन सीखो ,

जीवन सुरभित हो जायेगा ।

नित-नव पल्लव महकेंगे और ,

जीव दीप सा बन जायेगा ।।

 

समय प्रबंधन सिखलाता है,

सारे काम समय पर करना ।

एक-एक क्षण की प्रतिपल,प्रतिक्षण ,

सार्थकता संरक्षित करना ।।

 

गाँधी बापू ने बतलाया,

समय प्रबंधन कैसे हो ।

सभी कार्य मिल करें समय पर,

भारत का अभिनन्दन हो ।।

 

समय नियोजन कर विद्यार्थी,

अपने लक्ष्य को पायेंगे ।

जीवन के जो भी सपने हैं,

सारे सच हो जायेंगे ।।

 

जीवन महकेगा धरती पर,

इतिहास नया लिख जायेंगे ।

पद गरिमा बढ़ती जाएगी,

नित-नव गौरव पायेंगे ।।

पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’

कोटा, राज.

 

 

 

मंथरा के ऋणी….. श्रीराम


‘मंथरा’ ये शब्द सुनते ही हमारे सामने एक अधेड़ उम्र की कुरूप,घृणित किन्तु रामायण की अत्यंत महत्वपूर्ण स्त्री की छवि बन जाती है जिसका नाम था ‘मंथरा’। इस पात्र ने हमारे मन मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा है कि आज भी जब हम किसी नकारात्मक स्वभाव वाली महिला को देखते हैं तो केवल ये एक शब्द (मंथरा) ही उसकी प्रवृत्ति और उसके स्वभाव की व्याख्या कर देने में सक्षम नज़र आता है। रामायण का यह पात्र समाज में इतना घृणित माना जाता है कि आज तक कोई भी अपनी कन्या का नाम मंथरा नहीं रखता है।

संस्कृत में मंथरा शब्द का अर्थ ’कुबड़ा’ होता है और मंथरा के कुबड़े होने के कारण ही उसे ये नाम मिला होगा हिंदी में मंथरा शब्द का अर्थ ’मंदमति’ है । मंथरा राजा दशरथ की तीसरी पत्नी और राजा अश्वपति के यहाँ काम करने वाली कैकेयी की धाय थी । कैकेयी के प्रति इसका विशेष लगाव था इसलिए कैकेयी के पिता अश्वपति ने विवाह के पश्चात कैकेयी के साथ मंथरा को भी अयोध्या भेज दिया था । कैकेयी की धाय माँ होने के कारण उसका प्रभाव भी कैकेयी पर बहुत था। रामचरित्र मानस के रचयिता भले ही महाकवि तुलसी दास हैं लेकिन इस महाकाव्य की भूमिका तैयार करने वाली देवी मंथरा लगती हैं क्योंकि मानस में तुलसीदास जी लिखते हैं कि.........नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकइ केरि, अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ।।

अर्थात्- मन्थरा नाम की कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर देवी सरस्वती उसकी बुद्धि को फेरकर चली गई। अर्थात राम वनवास का षड्यंत्र मंथरा ने नहीं बनाया बल्कि मंथरा को देवताओं ने अपने उद्धार का और इस षड्यंत्र का निमित्त बनाया था।

मानस में ये भी आता है कि देवी सरस्वती द्वारा ऐसा कुचक्र बनवाने के लिए देवता उनसे प्रार्थना करते हैं और जब देवी ऐसा करने में संकोच व्यक्त करती हैं तो तुलसीदास लिखते हैं ……‘बार बार गहि चरण संकोची, चली बिचारि बिबुध मति  पोची’।।

अर्थात्- बार-बार चरण पकड़कर देवताओं ने सरस्वती को संकोच में डाल दिया। तब वे ये विचार करती हुई चलीं कि देवताओं कि मति ओछी है।

अगली पंक्ति में तुलसी बाबा ने लिखा कि माँ सरस्वती सोचती हैं ‘ऊंच निवासु नीच करतूती,देखि न सकहि पराई बिभूती’।।

अर्थात्- ये देवता ऊँचे स्थानों पर निवास करते हैं अर्थात महान माने जाते हैं लेकिन इनकी बुद्धि बहुत खोटी है ये दूसरों की विभूति(ऐश्वर्य)देख नहीं सकते।

यदि ये कहा जाए कि राजकुमार राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम और जन-जन के राम बनाने में जो महत्वपूर्ण भूमिका देवी मंथरा ने निभाई है और देव कल्याण और जनकल्याण के लिए अपयश का जो विषपान किया है उसके लिए मंथरा सदैव प्रणम्य रहेंगी तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

‘कम्ब-रामायण’ में ये वर्णित है कि राम वनवास के बाद मंथरा को कारागार में डाल दिया जाता है और राम वनवास के पश्चात उसे वहाँ से मुक्त करवाते हैं और उसे धन्यवाद भी देते हैं। कई विचारकों का ये भी मानना है कि राम कैकेयी और मंथरा का कार्य बुरा होते हुए भी समाज के हित में था क्योंकि उन्हीं के कारण राम वन जा पाए और अपने अवतार का वास्तविक कार्य रावण-वध कर पाए ।

मंथरा इतने युगों से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के लिए अपयश का जो दंश झेलती आ रही है उसके लिए नरोत्तम श्रीराम सदैव देवी मंथरा के ऋणी रहेंगे।              

पंकज कुमार शर्मा प्रखर

साहित्यकार

कोटा, राज॰

पतंगे

  ‘ ज़िंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे , बारिशों में पतंगे उड़ाया करो। ’ ये शेर आज की परिस्थितियों में बिलकुल माकूल बैठता है ये ज़िंदगी हमें ख...