11 Sept 2016

शिक्षकों को समर्पित .... एक अज्ञात रचना



शिक्षक-दिवस मनाने आये हम सब लोग यहाँ पर हैं।
एक गुरु की आवश्यकता पड़ती हमें निरन्तर है ।
हमनें जो भी सीखा अपने गुरुओं से ही सीखा है।
ज्ञान गुरू का अन्धकार में जैसे सूर्य सरीखा है।
कदम-कदम पर ठोकर खाते शिक्षा अगर नहीं होती।
खुद को रस्तों पर भटकाते शिक्षा अगर नहीं होती।
शिक्षा ये बेमानी होती शिक्षक अगर नहीं होते।
बस केवल नादानी होती शिक्षक अगर नहीं होते।
आगे बढने का पथ हमको शिक्षक ही दिखलाते हैं।
सही गलत का निर्णय करना शिक्षक ही सिखलाते हैं।
शिक्षक क्या होते हैं सबको आज बताने आया हूँ।
मैं सारे शिक्षक-गण का आभार जताने आया हूँ।
अगर वशिष्ठ नहीं होते तो शायद राम नहीं होते।
सन्दीपन शिक्षा ना देते तो घनश्याम नहीं होते।
द्रोणाचार्य बिना कोई अर्जुन कैसे बन सकता है।
रमाकान्त आचरेकर बिन सचिन कैसे बन सकता है।
परमहंस ने हमें विवेकानन्द सरीखा शिष्य दिया।
गोखले ने गाँधी जैसा उज्जवल एक भविष्य दिया।
चन्द्रगुप्त चाणक्य के बल पर वैसा शासक बन पाया।
देशप्रेम आज़ाद ने हमको कपिलदेव से मिलवाया।
भीमसेन जोशी के सुर या बिस्मिल्ला की शहनाई।
गुरुओं की शिक्षा ने ही तो इनको शोहरत दिलवाई।
शुक्राचार्य, वृहस्पति हैं ये इन्हें मनाने आया हूँ।
मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।
जनम लिया जब सबने माँ को खुद का प्रथम गुरु पाया।
उठना, चलना, खाना-पीना माँ ने ही तो समझाया।
माँ की जगह पिता ने ले ली जैसे-जैसे उम्र बढ़ी। 
घर, बाहर कैसे जीना है बात पिता ने हमसे कही।
फिर हम विद्यालय में आये अक्षर ज्ञान हुआ हमको।
भाषा और कई विषयों का ज्ञान प्रदान हुआ हमको।
गुरू ने हमको शिक्षा दी संयम की, अनुशासन की।
गुण-अवगुण की, सही-गलत की, देशप्रेम और शासन की।
लेकिन हम सब शिक्षा पाकर भूल गुरू को जाते हैं।
केवल पाँच सितम्बर को ही याद गुरू क्यों आते हैं।
मैं सबको अपने गुरुओं की याद दिलाने आया हूँ।
मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।
शिक्षा अगर सही मिलती तो भ्रष्टाचार नहीं होता।
नेताओं, अधिकारीगण का ये व्यवहार नहीं होता।
भ्रूण के अन्दर कोई कन्या मारी कभी नहीं जाती।
जलती हालत में मुर्दाघर नारी कभी नहीं जाती।
आतंकी नहीं होते ये दंगे कभी नहीं होते।
लोकतन्त्र के खम्भे यूं बेढंगे कभी नहीं होते।
लूटमार, हत्या, बेइमानी चारों ओर नहीं होती।
भारत माता चुपके-चुपके ऐसे कभी नहीं रोती।
देश समस्याग्रस्त अगर है इसका हल भी शिक्षा है।
शिक्षण एक चुनौती है अब शिक्षण एक परीक्षा है।
शिक्षक ही है राष्ट्रविधाता ये समझाने आया हूँ।
मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।;
अज्ञात 

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