(राष्ट्रीय
समाचार पत्र में प्रकाशित, दैनिक वर्तमान अंकुर (नोएडा) से
भी प्रकाशित)
कुछ दिन पहले
एक नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला जिसमें एक पात्र दूसरे
पात्र से पूछता है की जीवन क्या है तो दुसरे पात्र ने
उत्तर दिया “हमारी सबसे पहली और सबसे अंतिम सांस के बीच
का जो समय है वो जीवन है ” जीवन के प्रति उसकी इस
संक्षिप्त परिभाषा में जीवन की क्षण भंगुरता दृष्टिगोचर हुई और अनुभव हुआ की ये
जीवन जो ईश्वर ने हमें अपनी कृपा के रूप में दिया है ये कितना मूल्यवान है जिसे आज
का युवा अनजाने ही थोड़े सी कठिनाइयों और विषाद में या तो समाप्त कर देता है या भटक
जाता है ।
किसी जमाने में
युवा एक आयु वर्ग के ऐसे समृद्ध व्यक्तित्व को कहा जाता था जिसके जीवन का उद्देश्य
गुरुकुल की शिक्षा प्राप्त कर मानव मूल्यों का सम्वर्धन
करते हुए परिवार पालन और समाज निर्माण में भागीदारी लेना होता था । ये जीवन का वो समय होता था जिसमें युवा में
एक नया उत्साह एक नयी चेतना हिलोरे मार रही होती थी।
लेकिन वर्तमान
समय में परिस्थितियाँ भिन्न है आज का किशोर युवावस्था में कदम रखते ही तनाव और
चिंता से ग्रस्त हो जाता है। आज की युवा होती पीढ़ी की
आँखों में बड़े और चमकदार सपने होते है लेकिन जरा सी परिस्थितियों की विपरीत चाल से
वो सारे सपने उसी प्रकार ध्वस्त हो जाते है जिस प्रकार
ताश के पत्तों का महल ।
इस अवस्था में
किसी किशोर या किशोरी को उचित अनुचित का भली भांति ज्ञान नहीं हो पाता है और शनै:
शनै: यह मानसिक तनाव का कारण बनता है ।आज के युवा को शुरू से ही
उच्च शिक्षा प्राप्त करके डॉक्टर, इंजीनियर बनकर धनार्जन
कर सुख-सुविधा युक्त जीवन निर्वाह करना ही सिखाया जाता है , परंतु जब उनका उद्देश्य उनकी इच्छानुरूप पूर्ण नहीं हो पता है तो उनका मन
असंतुष्ट हो उठता है और मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है साथ ऐसे समय में माता और
पिता या दूसरे लोगों द्वारा की गयी टीका टिप्पणी भी उनके विषाद को बड़ा देती है
शिक्षा से प्राप्त उपलब्धियां उन्हें निरर्थक प्रतीत होती हैं।
वर्तमान युग
में लड़का हो या लड़की, सभी स्वावलंबी होना चाहते हैं, मगर बेरोजगारी की समस्या हर वर्ग के लिए अभिशाप सा बन चुकी है। मध्यम वर्ग
के लिए तो यह स्थिति अत्यंत कष्टदायी होती है। जब इस प्रकार की स्थिति हो जाती है
तो जीवन में आए तनाव से मुक्ति पाने के लिए वे या तो नशा करते है कुसंगति में पढ़
जाते है या तो आत्महत्या जैसे कदम उठाने को बाध्य हो जाते हैं। महिलाओं की स्थिति
तो पुरुषों की तुलना में ज्यादा ही खतरनाक है।
जिस देश की 65 % जनसंख्या युवा हो और जिस युवा पीढ़ी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की
आशाएं संजोए बैठा है, उस राष्ट्र के युवा का विषाद या
तनावगृस्त होना समाज व राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। अब प्रश्न ये
है की इस समस्या का समाधान क्या है ? यदि सच्चे अर्थों में देखा जाये तो युवा वर्ग को ही इसका समाधान निकलना
पड़ेगा । एक दृष्टि से देखा
जाए तो इन मानसिक तनावों से मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपाय युवाओं का अपना विवेक
है। इसके लिए दृढ़ संकल्प, अथक परिश्रम और
धैर्य, की आवश्यकता होती है। यह जीवन एक साधना
है। इसे आप एक नियमित दिनचर्या बनाकर, एक उद्देश्य को
सामने रख कर जिएं अपने आप को शुभ चिन्तन में व्यस्त रखें।
परेशानियों को
हमेशा सबक की तरह लें, प्रकृति आपको सिखाना चाहती है। परीक्षा
लेती है। कितने खरे उतरते हो किस रोल के लिए आपको चुना
गया है ये प्रकृति निर्धारित करती है । आप चाहें तो टूटकर बिखर जाएं, आप चाहें तो निखर जाएं और अपनी ऊर्जा को सही दिशा देते हुए जीवन लक्ष्य को
प्राप्त करें ये दोनों ही आप पर निर्भर करते है ।समस्याएं
तो जीवन में आएगी ही आप उन से बच नहीं सकते जितना बचने की कोशिश करेंगे ये उतना ही
विशाल रूप धारण कर आप को परेशान करेंगी इसलिए परिस्थितियों से घबराएं नहीं बल्कि
पूरी तैयारी के साथ इनका स्वागत और सामना करें ,मन की
नकेल सदैव अपने हाथ में रखें । चिंता और डर को अपने पर हावी न होने दें तो निश्चित ही आप अपने जीवन को
ढंग से और सुख से जी पाने में समर्थ बन सकेंगे।
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