वो हिंदी जिसने
हमारी सेवा तब की जब हमें अन्य किसी भाषा का ज्ञान नहीं था ।तब हम केवल हिंदी
शब्दों को ही चबाया करते थे, जिससे हमारी अभिव्यक्ति की
पूर्ति हुआ करती थी । लेकिन आज हमने अपनी उसी सहायिका उसी मात्र भाषा को दीन-हीन
स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। हम ये नहीं कहते की अन्य भाषाएँ न सीखी जायें हम
सभी भाषाओं का सम्मान करते है जिस प्रकार से माता किसी की भी हो आदरणीय होती है
उसी प्रकार भाषा कोई भी हो सभी सम्माननीय है । लेकिन दूसरे की माता का समान करना
और अपनी माता को दुःख पहचाना उसका शोषण करना उसे
लज्जित करना कहां तक उपयुक्त है हम भारतीय इतने मूर्ख कैसे हुए समझ नहीं
आता दुःख तो इस बात का है की हमने केवल अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को ही अपनी उच्च
शिक्षा का मापदंड बना दिया है,क्यों ? और
ये कार्य समाज के उस सम्भ्रांत वर्ग द्वारा प्रमुख रूप से किया जाता है जो समाज को दिशा देने का कार्य करते है
।
इन दिनों यदि
आप सरकारी दफ्तरों में जायेंगे तो वहाँ एक
वाक्य आपको देखने को मिलेगा की “हिंदी में काम करना आसन है शुरुआत तो कीजिये।” और
दुर्भाग्य ये है की और दिनों की तो छोड़े इस हिंदी पखवाड़े में भी आप उसी कार्यालय
के अधिकारी से लेकर बाबू तक और चपरासी से लेकर
सफाई कर्मचारी तक की भाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग आसानी से देख सकते
है ।
मैं धन्यवाद
देता हूँ चीन को जापान को की जब भी इन
राष्ट्रों के प्रतिनिधि भारत में आते है तो ये अपने देश की भाषाओं में ही हमारी सभाओं को संबोधित करते, और हम
भारती पिछले कुछ वर्षों से अपने गौरवमयी राष्ट्रीय भाषा का चीर हरण राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं कराते आये है ।
मैं धन्यवाद
देता हूँ भारतवर्ष के वर्तमान प्रधान मंत्री को जो लाल किले की प्राचीर से ही नहीं
अपितु यु. एन. ओ. जैसी अंतर्राष्ट्रीय सभा में भी अपने देश की भाषा का प्रयोग करते
है;
जो हम भारतीयों के लिए बड़े गौरव की बात है ।
यदि भाषायी
दृष्टि से देखा जाये तो आज भी हिंदी अपने यौवन के सौन्दर्य से, अपने
ताल से तेवर से अन्य भाषाओं को पछाड़ने में सक्षम है आज कवियों के नायक के अधरों पर
नायिका के सौन्दर्य के रूप में हिंदी है । लेखकों की लेखनी में, गाँव के गीतों में,चौपालों में केवल हिंदी है ,बाजारों में मोहल्लों में केवल हिंदी है । हिंदी एक मात्र ऐसी भाषा है
जिसके पास शब्दों का अकूत भंडार है
अपने विचारों और भावों की अभिव्यक्ति हम
हिंदी भाषा में जितने प्रभावपूर्ण ढंग से कर सकते है उतना हम अन्य किसी और भाषा
में नहीं कर पाते ।
हम लोगों
द्वारा शोषित हिंदी आज भी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा का तमगा
लगा कर हमें अंतराष्ट्रीय स्तर पर गौरान्वित कर
रही है आज भी हिंदी हमारे देश की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली और सुनी जाने
वाली भाषा है और में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान को साथ में मिला लू तो ये आंकड़ा और
भी विस्तृत,
विशाल हो जाता है, हाँ यदि लिखने और पड़ने के
आंकड़े देखें तो ये आंकड़े थोडा तकलीफ देह हो जाते है और इस तकलीफ का कारण मैकाले
द्वारा भारत की शिक्षा पद्धति में लगाई गयी सेंध है ,जिसका
परिणाम हम कान्वेंट शिक्षा पद्धति पर आधारित विद्यालयों में देख सकते है परन्तु फिर भी हिंदी कान और मुख के द्वारा
सम्प्रेष्ण का सुख दे रही है ।
सच्चाई तो ये
है कि जिस चीज़ पर आज हम गर्व कर सकने की स्थिति में है वो केवल हिंदी है जो
सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली और सुनी जाती है, यह गर्व शायद आगे आने
वाले कुछ वर्षों के बाद हम न कर पाएँ, क्यों कि अंग्रेज़ी
उससे ज़्यादा मात्रा में फैल रही है।
वर्तमान समय
में सरकार द्वारा शिक्षा पद्धति में व्यापक सुधार की महती आवश्यकता आ पड़ी है
। क्योंकि केवल एक दिन हिंदी दिवस मना लेने भर से हम मातृभाषा के ऋण से उऋण नहीं ही पाएंगे । यदि
जल्द ही हिंदी भाषा के विकास और प्रचार के क्षेत्र में बड़े निर्णय नहीं लिए गये तो
वो दिन दूर नहीं जब हम अपने गौरव से च्युत हो जायेंगे और हम अपनी माँ (राष्ट्र
भाषा )को अपने ही सामने दम तोड़ते देखने के लिए मजबूर होंगे।
लिए मजबूर
होंगे।
सर्वाधिकार
सुरक्षित
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