11 Sept 2016

असहिष्णुता (हास्य व्यंग)

एक सेठ जी का बहुत पुराना बढ़ा सा  होटल था। सेठ जी बचा हुआ खाना यहाँ वहां फेंक देते थे । जिससे शहर में बहुत गंदगी का माहौल हो जाता था । लेकिन कुत्तों के लिए ये बड़ा अच्छा था उनकी तो मौज हो गयी थी रोज बोटियाँ-रोटियाँ खाने को मिल रही थी कुत्ते खुश रहते थे और और होटल के प्रति वफादार भी ,होटल की तरफ कोई टेड़ी निगाह करके देख ले तो उसे काटने को दौड़ते थे ।

लेकिन एक दिन एक नया अधिकारी शहर में आया और उसमें शहर को गंदगी से मुक्त करने के लिए जन जागृति पैदा की और सारे सरकारी कार्य न केवल ईमानदारी से करना शुरू कर किया बल्कि आवारा कुत्तों को भी पिंजरे में डालना प्रारम्भ किया ।

परिणामस्वरूप कुत्तों के मुंह से बोटी और रोटी छिनने लगी और बचा हुआ खाना व्यवस्थित रूप से गरीबों में बंटने लगा । परिणाम यह हुआ की कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया और इस प्रकार समाज में असहिष्णुता

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