18 Sept 2016

विद्यार्थियों के अवसाद का कारण परिवार और समाज


("सच का हौसला" राष्ट्रीय समाचार पत्र  दैनिक वर्तमान अंकुर (नोएडा) में प्रकाशित )
प्राचीन समय के मनीषियों से लेकर वर्तमान समय के दार्शनिकों तक के विचारों को पड़ा जाए तो एक ही निचोड़ सामने आता है , समाज की भावी पीढ़ी (विद्यार्थी) किसी भी देश की मजबूत आधार शिला एवं पूंजी होती है  ।यदि किसी देश को हानि पहुँचानी हो तो वहां की शिक्षा प्रणाली में सेंध लगा दो  जी हाँ मैकाले इस बात को जान गया था और उसने भारत की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में सेंध लगा दी और पश्चिम का विष घोल दिया  प्राचीन काल में  भारत में इतने  प्रखर और तेजस्वी  विद्यार्थी हुए जिनके नाम से आर्यावर्त को भारत नाम दिया गया  ऐसे गौरवशाली देश का विद्यार्थी आज दयनीय स्थिति में है जिसके  जिम्मेदार न केवल माता पिता बल्कि ये समाज भी है। प्राचीन काल में विद्यार्थी असीमित सम्भावनाओं का भण्डार माना जाता था  ध्रुवप्रहलादएकलव्यअर्जुनभरतआर्यभटउपमन्यु जैसे न जाने कितने उदाहरण इतिहास में भरे  पडे है।  
ऐसे अप्रतिम देश का विद्यार्थी वर्तमान समय में अपने जीवन को अवसाद,हताशा और निराशा से भरे बैठा है  है जिसे देखकर आश्चर्य होता है 
आज का विद्यार्थी जीवन में जरा सी परेशानी आने पर  बहुत दुखी हो जाता है  महापुरुष कहते है की हम ईश्वर के अंश है अर्थात अपरिमित योग्यताओं का कोष , ईश्वर का अंश होते हुए भी विद्यार्थी  इतने असमर्थ और अवसादग्रस्त क्योंहम परिस्थितियों या परिणामों से इतने भयभीत क्यों है ?
अकसर देखा जाता है परीक्षा परिणाम अपने अनुरूप न मिलने पर विद्यार्थी अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैंमानसिक अवसादग्रस्त हो जाते है  यहाँ तक की आत्म हत्या जैसा घृणित कृत्य कर बैठते है   इन समस्याओं का मूल माता पिता की अत्यधिक अपेक्षाएं  परिवारों का विघटन है  जिसके कारण बच्चे अकेलापन महसूस करते है ,अधिक से अधिक सम्पत्ति की चाह एवं  भारत जैसे धार्मिक देश में पश्चिमी सभ्यता का समावेश है  इस पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण का शिकार न केवल बच्चे और युवा वर्ग है अपितु इस अन्धानुकरण में माता पिता और धनाढ्य परिवार के बड़े बुजुर्ग भी पीछे नहीं हैं  कुछ ही लोग हैं जो अच्छे आचरण और मान मर्यादा की राह पर चल रहे हैं तथा नैतिकता कायम रखे हुए हैं  वर्तमान समय  की आपाधापी वाली जीवन शैली और जीवन में बहुत कुछ प्राप्त करने की मृग मरीचिका में मनुष्य फंसा है फलस्वरूप परिवार और बच्चों में संस्कारों के सिंचन के लिए समय ही नहीं है माता पिता दोनों के काम काजी होने की वजह से बच्चे को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने का समय दोनों में से किसी के पास नहीं है  मैकाले की शिक्षा पद्धति से प्रभावित हमारे विद्यालयों में तो छात्रों में नैतिक मूल्यों के विकास के लिए कुछ नहीं है विद्यालयों को तो अपनी मोटी सी विद्यालय शुल्क से मतलब होता है रटा-रटाया ज्ञान देकर वो छात्रों को प्रतिस्पर्धी तो बना पा रहे है लेकिन उनके मानवीय गुणों का विकास करने में असफल है 
अपने आस पास के दूषित वातावरण से कामक्रोधलोभजलनद्वेष तथा दूसरे का निवाला छीनकर खाने की कला बच्चे बस ये ही सीखते हैं रही सही कसर इन दो –दो पैसे में चलने वाले चैनलों और उन पर प्रसारित होने वाले भद्दे विज्ञापनों और गन्दी फिल्मों ने पूरी कर दी है।  ऐसे में आज के बच्चे जो कल का भविष्य हैं संस्कारों के अभाव में अपने जीवन के पतन की और बढ़ रहे है ।परिवार ने इनकी मानसिकता ये बना डाली है की दुनिया में जीवन जीना है तो खूब सारा पैसा और कार कोठी होना ज़रूरी है चाहे उसको पाने के लिए हमें कुछ भी करना पड़े  ऊँचा रहन सहन अच्छे कपड़े अच्छा खाना बस इसी का नाम जीवन है  नैतिक संस्कारों के रूप में बच्चों ऐसी ही शिक्षा दी जाती है  ऐसे में देश कैसे उन्नति कर सकता है।
समय आ गया है की हमें पश्चिम का अन्धानुकरण छोड़ कर अपने बच्चों के लिए  संस्कृति और संस्कारों का मार्ग प्रशस्त कर देना चाहिए।  उन्हें अर्जुन ,एकलव्य, सुदामा, महाराणा प्रताप ,शिवाजी जैसे महान चरित्रों  के विषय में बताना एवं उनसे सम्बन्धित नाटकों का रंगमंच पर अभिनय होना चाहिए  ये केवल माता-पिता का ही कार्य नहीं है अपितु मीडिया और समाज दोनों को ही इसमें सक्रिय भूमिका निभाना चाहिए मीडिया को स्वस्थ एवं मनोरंजक सामग्री समाज में परोसनी चाहिए रामायण , महाभारतचाणक्य जैसे नाटक पुन प्रारम्भ होने चाहिए 
विद्यालयों को अपने देश के महापुरुषों से सम्बन्धित प्रतियोगिताएं आयोजित करनी चाहिए जिससे बच्चे हमारे देश के महापुरुषों के बारे में जान सके  माता-पिता को भी अपने दैनिक चर्या से थोड़ा समय  निकलकर बच्चों के साथ बिताना चाहिए  उनसे बात करनी चाहिए एवं बच्चों की सोच व उनके विचारों को समझने का प्रयास करना चाहिये 
बच्चे अनगढ़ होते है उन्हें सुगढ़ बनाना और समाज व देश के अनुरूप सुंदर आकर प्रदान करना समाज के प्रत्येक व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है 

                                                            सर्वाधिकार सुरक्षित




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