11 Sept 2016

श्री कृष्ण एक आदर्श प्रेमी


आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन  पर्व पर हम चर्चा करेंगे कृष्ण के एक आदर्श प्रेमी के रूप की एक ऐसा रूप जहां कोई वासना या इन्द्रिय लिप्सा की तृप्ति  नहीं बल्कि जीव और बृह्म का मेल और विशुद्ध प्रेम है । प्रेम शब्दों से परे एक अनुभव है ये गूंगे के गुड के समान है निश्छल निष्कपट प्रेम के समक्ष प्रेमी निःशब्द होकर रह जाता है । सच्चे प्रेम के सामने तो ईश्वर भी भक्त के सामने हाथ बांधकर खड़े रह जाते है  । वास्तविक प्रेम में प्रेमी कुछ माँगता  नहीं है बल्कि अपने प्रेमी को कुछ देना चाहता है  । प्रेम कहते है अपने प्रेमी के प्रति निष्ठा और विश्वास को , प्रेम कहते है उस अनुभूति को जो आप को बिना किसी डोर के आपके प्रेमी से जीवन भर के जोड़ती है , प्रेम कहते प्रेमी और प्रेमिका के एक दुसरे के प्रति सहर्ष समर्पण को  । लेकिन वर्तमान समय में प्रेम की परिभाषा इतनी विकृत हो चली है उसे देखकर मन में बड़ी पीड़ा होती है  । प्रेम के नाम पर आज का युवा वो सब कुकृत्य करने लगा है जिस से प्रेम या प्रेमी का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध क्योंकि आज के युवा द्वारा प्रेम को केवल भोग विलास का एक माध्यम मान लिया गया है, जबकि प्रेम और प्रेमी का अर्थ भोग वासना न होकर एक दूसरे के जीवन और चरित्र को श्रेष्ठता की और ले जाना है । कई पुराणों में उल्लेख आता है की श्री कृष्ण की सोलह हजार एक सौ रानियाँ एवं आठ पटरानियाँ  थी ।  ये तथ्य युवाओं को बहुत प्रिय कर लगता है उन्हें लगता है जब भगवान इतनी सारी रख सकते है तो हम ने दो या तीन रख ली तो क्या हो गया गाहे-बगाहे ऐसी बातें हमें सुनने को मिल भी जाती है  । लेकिन ये सत्य से परे की बात है ।  सत्य ये है की कृष्ण अर्थात ब्रह्म की प्राप्ति के लिए जब ऋषि मुनियों ने सैकड़ों वर्षों  तक तपस्या की तो भगवान प्रकट हुए और उनसे वर मांगने के लिए कहा ऋषि जो की भगवान की माया से मुक्त हो चुके थे उन्हें संसार की और साधन की लालसा  नहीं थी इसलिए उन्होंने वर मांगने से मना कर दिया क्योंकि उनकी तपस्या का उद्देश्य लौकिक सुख प्राप्त करना  नहीं था लेकिन भगवान के बार-बार कहने पर  सभी ऋषियों ने ये वर माँगा की है सच्चिदानंद अगर आप सच में हमारी तपस्या से प्रसन्न है तो कुछ ऐसा वर दे दो की हम सब आपके साथ नाचे गायें आपके प्रेम स्नेह को प्राप्त कर  सकें और आपको अपने इच्छानुसार अपनी उँगलियों पर नचा सकें  । ये बात सुनकर भगवान कुछ आश्चर्य में पढ़ गये लकिन भगवान तो भक्त के वश में होते है अतःभगवान ने ऋषियों से कहा की आप सब का जन्म वृन्दावन नामक स्थान पर सुंदर गोपियों के रूप में होगा और उस समय में धरती पर कृष्ण के रूप में अवतरित होकर आऊंगा तब तुम सब भी गोपियों के रूप में मेरे साथ रासलीला कर मेरे विशुद्ध प्रेम का पान कर लेना तो वास्तव में सौलह हजार एक सौ रानियाँ केवल स्त्री  नहीं थी । बल्कि स्त्री के रूप में तपस्वी ऋषि ही थे जिनके साथ भगवान ने रास रचाकर उन्हे अध्यात्म के अंतिम सोपान के बाद मुक्त कर दिया । भगवान की उस रास लीला का वर्णन अलग-अलग पुराणों में भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त हुआ है कई विद्वान उसे युगों से बिछडे जीव और बृह्म का मिलन मानते है कोई अपने भक्तों के प्रेम से अभिभूत भगवान की लीला मानते है लेकिन सच्चे अर्थों में ये प्रेम का सर्वोत्तम एवं सर्वोत्कृष्ट रूप है  
इस तथ्य को जाने बिना युवा-वर्ग मनमाने अर्थ निकलकर प्रेम के नाम पर व्यभिचार और चारित्रिक पतन को बढ़ावा दे रहा है  । अतः ये जन्माष्टमी आज के युवाओं को ये सन्देश देती के की अपने प्रेम के आकार को केवल अपने प्रेमी के रूप सौंदर्य आकर तक ही सीमित न रखें   । बल्कि उसके अंदर छुपी ईश्वरीय चेतना को जागृत करें और पूर्ण समर्पण के साथ उसके और अपने चारित्रिक मूल्यों का सम्वर्धन करें  ।जय श्री कृष्णा 

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