27 Apr 2020

दीपावली पर पटाखों का प्रयोग धार्मिक एवं पर्यावरण दोनों ही दृष्टि से अनुचित

मित्रों जब से दिल्ली सरकार ने दिल्ली में दीवाली पर आतिशबाजी करने और पटाखे चलाने पर बैन लगाया है तब से सोशल साइट पर सरकार के खिलाफ एक प्रकार का आन्दोलन सा चल पढ़ा है हमारे बेचारे हिन्दू भाई जानकारी एवं ऐतिहासिक तथ्यों के अभाव में इसे धर्म का अपमान और सनातन संस्कृति के प्रति षड्यंत्र मान रहे है। आप मेरा ये लेख अंत तक ज़रूर पढ़े तब आप को मालूम पढ़ सकेगा की हम कैसे भ्रम में पढ़कर अपनी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहे है, जब की मुद्दा तो कुछ और ही है। वास्तव में हमारे हिन्दू सनातन संस्कृति में दीवाली जैसे पावन अवसर पर आतिशबाजी करने की परम्परा कभी रही ही नहीं रामचरित्र मानस में भी कहीं नहीं लिखा की राम जी जब अयोध्या लौट कर आये तो अयोध्या वासियों ने आतिशबाजी की या पटाखे चलाकर और पर्यावरण को दूषित प्रदूषित कर श्री राम का स्वागत किया।उस समय चूंकि श्री राम की वापसी के कारण लोगों में उत्साह था और हर व्यक्ति श्री राम के प्रति अपने स्नेह और भक्ति को प्रकट करना चाहता था इसलिए उन्होंने श्री राम के अयोध्या आगमन पर दीपमालिका सजाकर उनका स्वागत किया क्योंकि श्री राम अमावस की काली रात में अयोध्या लौटे तो उनके दर्शन पाने के लिए लोगों ने घरों में और पुरे नगर में दीप जलाए जिससे की लोगों को उनका दर्शन स्पष्ट रूप से हो सके क्योंकि उन दिनों बिजली तो हुआ नहीं करती थी ।
लेकिन किसी ने पटाखे चलाये हों ऐसे तो कोई प्रमाण नहीं मिलते सरकार द्वारा पर्यावरण की रक्षा हेतु पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाना एक सराहनीय प्रयास है जिसका धर्म से कोई लेनदेन नहीं है । दिल्ली जैसे महानगर में जहां लोगों की आबादी करोड़ों में है। वहां पहले से ही पर्यावरण प्रदूषण है अभी कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में इतना प्रदूषण बढ़ गया था की वहां के लोगों को प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए वहां की सरकार को कई दिनों तक सरकारी,गैर सरकारी संस्थान बंद रखने पढ़े थे साथ ही लोगों को ज़हरीली हवा से बचने के लिए मास्क लगाने की हिदायत भी दी गयी थी ।क्या वहां के लोग या कट्टर हिन्दू पंथी पर्यावरण संरक्षण के इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर या धर्म के अपमान के साथ जोड़कर लोगों के स्वास्थ्य या जीवन के साथ खेलना चाहते है जो लोग ऐसा चाहते है निश्चित रूप से वो हिन्दू अथवा कहें की श्री राम के उपासक तो नहीं हो सकते । कई लोग तो अपनी बात को सही साबित करने के लिए ये तथ्य भी दे रहे है की केवल हिन्दुओं के त्योहारों में ही ऐसा होता है लेकिन जब मुसलमान बकरा काटता है तो सरकार कुछ नहीं कहती तब कोई प्रदूषण नहीं होता क्या ? इसके लिए मैं कहता हूँ की हाँ तब कोई प्रदूषण नहीं होता क्योंकि बकरा काटने पर ना तो धुंए का कोई ज़हरीला गुबार उठता है और न ही प्रदूषण होता है हाँ पानी को ज़रूर बढ़ी मात्रा में बहाया जाता है जिस पर की सरकार को कार्यवाही करनी चाहिए और उचित प्रबंधन करना चाहिए । यदि आहार एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो बकरा काटने वाले और खाने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य पर ही प्रभाव पढ़ता है जबकि आस-पास के लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित नहीं होता लेकिन पटाखे और आतिशबाजी से निकलने वाला धुआं आस पास के उन लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है जिनका इस त्यौहार से कोई लेना देना नहीं है इस दृष्टि से भी ये अनुकूल नहीं है ।
कई लोगों ने तथ्य दिए की क्रिसमस और नये साल पर भी बढ़ी मात्रा में आतिशबाजी की जाती है तब सरकार कुछ नहीं कहती लेकिन भाइयों क्रिसमस और नये साल पर जो आतिशबाजी होती है वो इतनी बढ़ी मात्र में नहीं होती जितनी की दीपावली के दिन होती है हम इस देश के 80 प्रतिशत हिन्दू इस पर्व को बढ़ी धूमधाम से मनाते है और लगभग प्रत्येक व्यक्ति 500 से 5000 या उससे भी अधिक मूल्य के पटाखे चलाकर इस पर्व को मनाता है साथ ही अन्य धर्मों के वो लोग भी इसमें शामिल हो जाते है जिनका इस पर्व से कोई लेना देना नहीं है इस कारण देश में विशेषकर बड़े शहरों में इस दिन पर्यावरण की स्थिति ज्यादा ख़राब हो जाती है जो की एक विचारणीय मुद्दा है।
आइये बात करते है ऐतिहासिक तथ्यों पर की आतिशबाजी और पठाखे चलाने की परम्परा का प्रारम्भ कहां से हुआ ।
बारूद के पटाखे को 20 अप्रैल 1526 ई0 को चंगेज़ ख़ान का बेटा बाबर लेकर आया था। प्रो0 रशब्रुक विलियम्स की पुस्तक ऐन इम्पायर बिल्डर ऑव दी सिक्सटीन्थ सेन्चुरी पेज 111 और बाबरनामा के अनुसार इसकी खोज बाबर की सेना के एक उस्ताद अली कुली नाम के एक तुर्क तोपची ने की थी ।
इस बारुद की बदौलत ही 16 मार्च 1527 ई0 को बाबर की सेना ने मेवाड़ के राजा राणा सांगा और भारत के राजपूत राजाओं की सेना को परास्त कर भारत में  मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी थी।
श्री कौशिकेय ने बताया कि भारत की धरती पर पहली बार आतिशबाजी और पटाखे बाबर की सेना ने तब छोड़ कर खुशियाँ मनाई। जब खानवा के मैंदान में हिन्दू राजाओं के नरमुण्डों का पिरामिड सजा कर मंगोलों ने बाबर को गाजी की उपाधि से नवाज़ा था। बाबरनामा अनुवादक बेवरिज के अनुसार पेज 90 पर बाबर ने लिखा है कि हमारे दस हजार बहादुर मंगोलों ने हिन्दू राजाओं की दो लाख सैनिकों की सेना को परास्त कर दिया और सभी हिन्दू राजा मारे गये। यदि आप हिंदुत्व की बात करते है तो ये ऐतिहासिक जानकारी रखना भी आवश्यक है ।
ये भी विचारणीय है की दीपावली और छठ जैसे पवित्र पर्वों पर आतिशबाजी करना पटाखे बजाने की परम्परा कभी नहीं रही है। यह तो सरासर अपने पूर्वजों का घोर अपमान और मुगलों की दासता क्रूरता को महिमा मंडित करना है।  हमारे यहाँ शंख , घंटा, घड़ियाल, नगाड़े बजाने की परम्परा रही है। जो मंगल वाद्य है।
 भारत माता मातृभूमि को मुगलों की दासता से बचाने में बलिदान हुए हिन्दू वीरों के सम्मान की रक्षा अब आप किस प्रकार करना चाहते है ये आप स्वयं विचार करें ।
                                                                                                       सर्वाधिकार सुरक्षित










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