27 Apr 2020

विवाह व वैवाहिक जीवन के प्रति वर्तमान युवाओं का भ्रामक दृष्टिकोण

आज के समय में जब किसी विवाह योग्य युवा से विवाह प्रस्ताव अथवा विवाह करने की बात की जाती है तो वो बिदक जाता है और ये कहकर टालने की कोशिश करता है की अभी इतनी जल्दी क्या है ,अभी मेरा जीवनयापन का माध्यम सही नहीं है । इसका कारण जब जानने की कोशिश की गयी तो अपने नजदीकी मित्रों और रिश्तेदारों से युवा वास्तव में ये कहते पाए गये की शादी ब्याह तो झंझट है इसमें जितना देर से फंसो उतना ही अच्छा है। एक बार शादी हो गयी तो बस आदमी फिर जिम्मेदारियों में फंसता चला जाता है शादी का दुसरा नाम ही जिम्मेदारी और परेशानी है।  युवाओं की इस सोच को और भी पुख्ता करता है आज का सिनेमा और इस प्रकार की फ़िल्में और घीसापिटा मनोरंजन ।
आज के युवा की शादी ब्याह के मामले में यही सोच बनती चली जा रही है क्या लड़का और क्या लड़की सभी यही सोचते है। जिसमें ये मानसिकता विशेषरूप से पुरुष वर्ग में अधिक पायी जाती है । कई युवाओं की सोच ये भी होती है की पहले अच्छी मात्रा में पैसा जोड़ ले फिर आराम से शादी करके आराम की जिंदगी जीयेंगे लडकियां भी चाहती है सरकारी नोकरी वाला या कोई बड़ा बिसनेसमेन मिले तो शादी करें । जिससे की झंझट का कोई काम नहीं रहे लेकिन ये आकांक्षाएं हर व्यक्ति की पूरी नहीं हो सकती समाज में ऐसे इक्का दुक्का उदाहरण ही मिलते है । स्वयंकी आजीविका की व्यवस्था करके विवाह करने का विचार तो ठीक है लेकिन पैसे या सुविधाओं के प्रति अधिक महत्वाकांक्षी हो जाना अनुचित ही है ।
अब एक नजर यदि भारत की गौरवशाली परम्परा पर डाली जाए तो हमारी सनातन संस्कृति में सोलह संस्कार बताये गये है। जो प्राणी के जन्म से पूर्व (पुंसवन संस्कार) से शुरू होकर उसकी मृत्यु के बाद (अंतिम संस्कार) तक चलते रहते है। प्राचीन समय में इन सभी संस्कारों का एक निश्चित समय होता था जिसके अनुसार जीव को संस्कारित किया जाता था इसी श्रृंखला में एक संस्कार है विवाह संस्कार जिसकी आयु 25 वर्ष बताई गयी है लेकिन आज अधिक महत्वाकांक्षा और धन संगृह की लोलुप पृवृत्ति ने न केवल इस संस्कार की समय सीमा को लांघा है बल्कि इसकी उपेक्षा भी की है । विवाह एक सामाजिक परम्परा एक संस्कार है जो समाज को राष्ट्र को आगे बढ़ाता है।
युवाओं को ये समझने की ज़रूरत है की यदि आप अपने आस-पास कि दम्पत्तियों के जीवन में खींचतान या तनाव देखते है तो ये तनाव विवाह के कारण नहीं बल्कि विवाह के बाद उनके द्वारा पनाए गयी अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण है।
वैवाहिक जीवन एक सुंदर सुगन्धित उद्यानं की तरह है यदि माली उद्यान का ध्यान न रखे तो वहाँ  खिले हुए सुगन्धित पुष्प मुरझा जायेंगे अनचाही घास उग आएगी जो बगीचे के सौन्दर्य को धीरे- धीरे समाप्त कर देगी। इसी प्रकार जो पति-पत्नी अपने दाम्पत्य जीवन रुपी उद्यान की रक्षा नहीं कर पाते उसमें स्नेह और निर्मल प्रेमरूपी जल और विश्वास रुपी खाद नहीं डालते उनका दाम्पत्य जीवन एकाकी ,निर्जन और दुखरूपी कांटेदार झाड़ियों से घिर जाता है । ऐसी स्थिति में जीवन में नीरसता,मानसिक ,शारीरिक रोग ,परस्त्री या पर पुरुष जैसी विकृतियाँ जीवन को नरक बना देती है । इस भयावह परिस्थिति से बचने का उपाय है वह प्रतिज्ञा जो गृहस्थ जीवन का सच्चा सार है अर्थात् यह प्रतिज्ञा कि “हम कभी एक दूसरे का परित्याग नहीं करेंगे,हम हर परिस्थिति में एक दूसरे के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलेंगे  हम अपने सुख और संयोग की, अपने प्रेम और स्नेह की रक्षा करेंगे, वर्तमान समय में विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन में जो तनाव देखा जाता है उसका कारण दम्पत्ति स्वयं है एक घटना याद आ रही है एक प्रेमी युगल जो एक दुसरे को 4 वर्षों से जानते थे उनका प्रेम विवाह उनके परिवार द्वारा करा दिया गया। पति के पास अच्छी नोकरी थी और पत्नी घर और परिवार सम्भालती थी लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे दोनों के विचारों में परिवर्तन आने लगा पति अपने काम और पैसा कमाने में इतना मशगुल हो गया की वो कब पत्नी की उपेक्षा करनी लगा उसे मालूम ही नहीं पढ़ा इधर स्त्री भी घर परिवार की जिम्मेदारियों और पति के उपेक्षित व्यवहार से उब चुकी थी अंत में इस दम्पत्ति के चार वर्ष के प्रेम और उसके बाद वैवाहिक जीवन के 3 वर्ष का सार ये निकला की दोनों ने एक दुसरे से बिना कुछ कहे सुने तलाक लेने की इच्छा व्यक्त कर दी दोनों अदालत में पहुंचे दोनों से कारण पुछा गया पति ने बोला में पत्नी को बेहतर जीवन देने के लिए अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता था लेकिन ये समझती ही नहीं थी पत्नी से पुछा गया तो बोली मेरे पति मुझे समय नहीं देते में केवल घर परिवार सम्भालने वाली नौकरानी बनकर रह गयी थी । दोनों ने ठंडे दिमाग से जब एक दूसरे की शिकायतें सुनी तो दोनों ही के नेत्रों से आंसू बह निकले क्योंकि दोनों के हृदय में एक दूसरे के लिए प्रेम तो था ।लेकिन दोनों अनजाने में सुख प्राप्ति के लिए एक दुसरे की उपेक्षा कर रहे थे सुख के लिए गलत दिशा की और दौड़ रहे थे ।
विवाह को धन सम्पत्ति या भौतिक सुख सुविधायें सफल नहीं बनाती बल्कि विवाह को सफल बनाता है पति पत्नी का एक दुसरे के प्रति अनन्य भाव ,दृढ़ विश्वास और निष्कपट प्रेम समाज में ऐसे भी कई उदाहरण देखने को मिलते है जहां दम्पत्ति की आयु 60 या 70 पार है लेकिन फिर भी उनमें एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना बनी हुई है ।
तो युवाओं को अपनी सोच को सही दिशा देने की आवश्यकता है उन्हें समझने की आवश्यकता है की विवाह झंझट या तनाव का नहीं बल्कि प्रेम और सहयोग का नाम है ।
                                                                                                       सर्वाधिकार सुरक्षित










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