हम जब बात करते है भारतीय संस्कृति और विशेषकर हिन्दू
धर्म की तो इसमें ‘अवतार वाद’ ये शब्द
ज्यादातर सुनने को मिलता है भगवान कभी राम बनकर आ जाते है कभी कृष्ण बनकर
कभी गौतम बुद्ध हो जाते है तो कभी महावीर
तो इसके पीछे भगवान का उद्देश्य क्या है ? ये प्रश्न एक बार
अकबर ने बीरबल से पूछा था ।
अकबर ने कहा की बीरबल आपके धर्म में भगवान कभी कृष्ण
बन जाते है; कभी राम तो आप के भगवान के पास इतना समय होता है की वो धरती पर आते रहते
है । बीरबल ने कहा की महाराज इसका उत्तर में आपको प्रमाण सहित दूंगा । कुछ दिन
बीते तो बीरबल और अकबर नौका विहार करने के लिए गये; अकबर
नौका-विहार आनन्द ले ही रहे थे की इतने में ही अकबर ने देखा की सामने से एक नौका आ
रही है और उसमें कई सारी महिलाएं बैठी है; और उनके हाथ में
अकबर का सबसे प्रिय पुत्र है अचानक वो बालक नदी में गिरता है ये देखकर अकबर उसे बचाने
के लिए कुंऐ में कूद पड़ते है और जब वो उसे निकाल कर बाहर लाते है तो देखते है की
वो उनका पुत्र नहीं है बल्कि पत्थर का बना एक पुतला था ।
ये देखकर अकबर को आश्चर्य होता है वो सभा बुलाते है
और उन महिलाओं से पूछते की ये किस व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य है उसे मेरे
सामने प्रस्तुत करो में उसे दण्डित करूंगा। ये सुनकर बीरबल सामने आते है और बोलते
है महाराज ये आपका उपहास नहीं है बल्कि
आपके प्रश्न का उत्तर है जो आपने मुझसे पूछा था अब आप मुझे बताइए की महाराज आप स्वयं
नदी में क्यों कूदे जबकि आपके पास तो एक बढ़ी सेना थी आप उसे आदेश देते वो पानी में
कूदते और आपके पुत्र को बचा लाते।
अकबर बोले अरे बीरबल जब मेरा प्रिय पुत्र पानी में
डूब रहा था तो मुझे कुछ नहीं सुझा और में
उसकी जान बचाने के लिए कूद पढ़ा । बीरबल बोले ये ही आपके प्रश्न का उत्तर है महाराज
जिस प्रकार आप अपने प्रिय पुत्र को संकट में देख कर स्वयं को रोक नहीं पाए और उसे
बचाने के लिए स्वयं कूद पड़े। उसी प्रकार ईश्वर भी जब देखते है की मानव अपने जीवन
के उद्देश्य और लक्ष्य से भटक गया है और जीवन जीने का ठंग भूल गया है तो भगवान
स्वयं अपने प्रिय पुत्र हम मानवों के बीच हमारे जैसे ही है बनकर आते है और इस दुनिया रूपी रंगमंच पर
हमें जीवन रूपी अभिनय करना सिखाते है इसलिए स्वयं भगवान अपने किसी पीर पैगम्बर को
नहीं भेजते आते है ।
ये ही उद्देश्य छिपा हुआ है ईश्वरीय अवतार के पीछे
इसके अतिरिक्त यदि हम देखें तो शरीर को साधने से मन में दृढ़ता आती है व ईश्वर के
प्रति आस्था के भाव दृढ होते हैं । मंदिरों में जाकर भजन कीर्तन में सम्मिलित होने
से मन बुद्धि में पवित्रता आती हैकृष्ण वो किताब हैं । श्री कृष्ण की संर्पूण जीवन
कथा कई रूपों में दिखाई पङती है। योगेश्वर
श्री कृष्ण उस संर्पूणता के परिचायक हैं जिसमें मनुष्य, देवता, योगी राज तथा संत आदि सभी के गुण समाहित है। समस्त शक्तियों के अधिपति युवा
कृष्ण महाभारत में कर्म पर ही विश्वास करते हैं। कृष्ण का मानवीय रूप महाभारत काल
में स्पष्ट दिखाई देता है। गोकुल का ग्वाला, बृज का कान्हा
धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों के मायाजाल से दूर मोह-माया के बंधनों से अलग है।
कंस हो या कौरव,पांडव,दोनों ही निकट के
रिश्ते फिर भी कृष्ण ने इस बात का उदाहरण प्रस्तुत किया कि धर्म की रक्षा के लिए
रिश्तों की बजाय कर्तव्य को महत्व देना आवश्यक है।
कृष्ण का जीवन दो छोरों में बंधा है। एक ओर बांसुरी
है, जिसमें सृजन का संगीत है,आनंद है,और रास है। तो दूसरी ओर शंख है, जिसमें युद्ध की
वेदना है, गरल है तथा नीरसता है।
ये विरोधाभास ये समझाते हैं कि सुख है तो दुःख भी है।
यशोदा नंदन की कथा किसी द्वापर की कथा नहीं है, किसी ईश्वर का
आख्यान नहीं है और ना ही किसी अवतार की लीला। ये तो वास्तव में भगवान का अनुग्रह
है, हम मानवों पर की वो हमारे बीच आकर हमारे ही जैसा जीवन
जीकर हमें जीवन जीने का ठंग सिखाते है । ईश्वर अवतार के माध्यम से ये बताना चाहते
है की मानव जीवन का उद्देश्य केवल जीवन को सुविधामय बनाना नहीं है अपितु धर्म की
रक्षा करना और अपनी कंस रुपी बुराइयों का संहार करना है ।
श्री कृष्ण जहां एक और यशोदा के नटखट लाल है तो कहीं
द्रोपदी के रक्षक, गोपियों के मनमोहन तो कहीं सुदामा के मित्र। हर रिश्ते में रंगे कृष्ण का
जीवन नवरस में समाया हुआ है। नटवर नागर नंद किशोर के जन्म दिवस पर मटकी फोड़
प्रतियोगिता के आयोजन का उद्देश्य खेल के द्वारा यह समझाना हैं, की किस तरह स्वयं को संतुलित रखते हुए लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है;
क्योंकि “संतुलन और एकाग्रता” का अभ्यास ही सुखमय जीवन का आधार है।
सृजन के अधिपति, चक्रधारी मधुसूदन का जन्मदिवस उत्सव के रूप
में मनाकर हम सभी में उत्साह का संचार होता है और जीवन के प्रति सृजन का नजरिया
जीवन को खुशनुमा बना देता है और हमारा जीवन कृष्णमय होने लगता है ।
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