आज हर पुरुष सौन्दर्य के पीछे पागल है जहां भी उसे थोड़ा
बहुत कम या ज्यादा मात्रा में सौन्दर्य का आभास होता है वो वहां अनायास ही खिंचा
चला जाता है वास्तव में सौन्दर्य होता क्या है क्या देह की कमनीयता,शरीर की कामुक
भावभंगिमायें सौन्दर्य है, क्या नारी का रूप सौष्ठव ही उसकी
पहचान है । जब पुरुष को स्त्री में केवल कमनीयता, कामुकता का
ही दर्शन होने लगे तो क्या इसे ही सौन्दर्य की पराकाष्ठा समझा जाए । लेकिन कई बार
पुरुष एक सुंदर स्त्री के सौन्दर्य का दर्शन ही नहीं कर पाता क्योंकि सौन्दर्य
केवल ऊपरी सजावट का नाम नहीं है बल्कि ये अंदर से प्रकट होने वाली सुंदर कोमल
भावनाओं की परछाई भी है ।
लेकिन जब कोई पुरुष स्त्री के बाह्य सौन्दर्य को ही
सब कुछ मान बैठता है तो स्त्री की स्थिति बड़ी मार्मिक हो जाती है एक घटना याद आ
रही है,एक नवविवाहिता थी जिसे दर्पण के सामने बैठे हुए काफी देर हो गयी थी । न
जाने यह दर्पण उसे क्या बता रहा था या वो स्वयं, ही इस काँच
के टुकड़े में कुछ ढूंढ़ रही है। जरीदार लाल साड़ी , हाथों
में भरी-भरी लाल चूड़ियां, अंग-प्रत्यंगों में अपनी आभा
विकीर्णित करते सुवर्ण आभूषण, सिर में लाल रंग की रेखा बनाता
सिन्दूर और माथे पर सूर्य के समान दैदीप्यमान कुमकुम बिंदी उसके नववधू होने की
पहचान दे रहे थे। कीमती साजो-सामान से भरा-पूरा कमरा ऐश्वर्यवान होने की गवाही
देने के लिए काफी था। उसकी निजी सम्पत्ति के रूप में अलमारी में करीने से सजी
पुस्तकें, यह बता रही थीं कि यहाँ विद्या का भी वास है।
धन-ऐश्वर्य-विद्या इन तीनों की उपस्थिति के बावजूद वह
उदास थी। पलकें व्यथा के भार से बोझिल थीं। मुख मलिन था मुख पर उभरने वाली
आड़ी-तिरछी रेखाओं ने उदासी का स्पष्ट रेखांकन किया था। कहा जाता है मुख मनुष्य का
भाव-दर्पण है,हमारे अंदर मची हुई उथल-पुथल को ये साफ़ प्रदर्शित करता है । व्यक्ति कितनी
भी कोशिश करे लेकिन किन्हीं गहन आयामों में होने वाली हलचलें, भावों का आलोड़न-विलोड़न इसमें उभरे बिना नहीं रहता। अनायास उसने होंठ सिकोड़े।
माथे की लकीरें बिखरीं और कुछ शब्द फिसले ‘सौंदर्य’ किसे कहते हैं ‘सुन्दरता क्या
है ?’ शब्द अस्फुट होने के बावजूद स्पष्ट थे। पता नहीं किससे
पूछा था उसने यह सवाल?
वैसे दिखने में यदि उसके नाक-नक्श तराशे हुए नहीं हैं
तो कुरूप भी नहीं कहा जा सकता। अन्धी-कानी, लँगड़ी- लूली, बहरी
तो वह है नहीं। सुन्दरता की पहचान क्या महज चमड़ी की सफेदी है? क्या मोहक चाल, इतराती मदभरी आँखें, तराशी हुई संगमरमरी देह जो अपनी रूप ज्वाला में अनेकों के चरित्र को आहूत
कर दे और हृदय को झुलसा दे। उनके चरित्र चिन्तन को अपने हाव-भावों से दूषित कर दे
क्या इसे ही सुन्दरता कहते है ? अथवा सुन्दरता उसे कहें
जिसका मन व्यक्तित्व के गुणों का समुच्चय हो ,जो उच्च मानवीय
गुणों से युक्त हो और कर्तृत्व सत्प्रवृत्तियों का निर्झर हो जिसकी विशालता के
कारण जिसके निस्वार्थ प्रेम ,स्नेह के कारण अनेक जिन्दगियाँ
विकसित हों। रूप राशि भले दो जीवनों में
क्षणिक आकर्षण पैदा करे, पर सम्बन्धों की डोर मृदुल व्यवहार
के बिना कहाँ जुड़ पाती है? चरित्र की उज्ज्वलता के बिना भी
कभी आपस में विश्वसनीयता पनपी है? उसके पूछे गए प्रश्न के यही दो उत्तर हैं, जो आदि
काल से वातावरण में गूँज रहे हैं- किसी एक को चुनना है। चलिए इस प्रश्न का उत्तर
अंतरात्मा से आप भी चुनिए मैं भी चुनता हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित
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