27 Apr 2020

मातृ देवो भव:

अखिल ब्रह्मांड नायक भगवान को जब धरती पर अवतरण लेना होता है तब उसे एक माँ की आवश्यकता होती है । जो उसे 9 महीने तक गर्भ में पाले अपने प्यार और स्नेह से सींचें । माँ के अवलंबन के बिना तो स्वयं भगवान अधूरा है अर्थात माँ के बिना समूचे संसार की कल्पना तक नहीं की जा सकती । माँ के अंदर व्याप्त ब्रह्मा का अंश उसे सृष्टि निर्माण की शक्ति प्रदान करता है। माँ में उपस्थित विष्णु का अंश शिशु को प्यार और ममता से पलता पोसता है उसे एक योग्य व्यक्ति बनता है , और माँ में व्याप्त शिव तत्व बालक में उत्पन्न हुई बुराइयों का दृढ़ता से संहार करता है । इस समूची सृष्टि का मूल बीज माँ ही है।
माँ का भारतीय संस्कृति में सदा से सबसे ऊंचा स्थान रहा है । यह सच है की माँ के लिए अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए समस्त जीवन ही कम है पर ये दिन शायद इसी लिए बनाये जाते हैं कि इस दिन हम सामूहिक रूप से भावनाओं का प्रदर्शन कर सकें और माँ की निस्वार्थ सेवा ,प्रेम और ममता के लिए उसे खुले भाव से नमन कर सकें।
जब हम जिन्दगी की आपाधापी से थक जाते हैं तो उसका वात्सल्य से भरा स्पर्श हमारी सभी दुख तकलीफों को दूर कर देता। ईश्वर की सृष्टि में, माँ में ही ईश्वर का वास है जिसे हम सब दुख एवं तकलीफ में सबसे पहले आवाज देते हैं क्योंकि माँ से तो हमारा रिश्ता आज से नहीं है बल्कि दुनिया में आने के पहले से ही होता है। माँ प्यार और डाँट से जीवन को खुशहाल बनाती है । हमारे भले के लिये कभी-कभी सख्त भी हो जाती है लेकिन उस सख्ती में भी हमारे लिए प्रेम और चिंता होती है। अपने सुख-दुख का ख्याल न रखकर बच्चे को बेहतर इंसान बनाने में प्रयत्नशील रहती है।
ईश्वर की सभी सजीव रचना जैसे, पशु एवं पक्षी में भी माँ के वात्सल्य का रूप विद्यमान है। एक चिड़िया एक-एक दाना लाकर अपने बच्चे को खिलाती है और उनको पालती है। इसी प्रकार हमारा सम्पूर्ण विकास माँ की छत्रछाया में ही पल्लवित होता है। माँ अपने दिये संस्कारों के रूप में हमेशा हमारे पास रहती है ।
माँ अपने खाने-पीने का वक़्त भूलकर, भूखी रहकर, बच्चे को दूध पिलाना कभी नहीं भूलती . हर रोज़ बच्चे में नया परिवर्तन व विकास देख कर खुश हुआ करती है। माँ बच्चे कि पहली शिक्षिका होती है. वह माँ ही है जो बच्चे को बोलना, चलना, खाना, पढ़ना सिखाती है. इसके साथ-साथ जीवन के मूल्यों को समझती है, सदाचार सिखाती है. जीवन में एक अच्छा व्यक्ति बनने की सभी सामग्रियाँ बच्चे में डालने कि कोशिश करती है । हर माँ अपने सामर्थ्य से बच्चे के लिए ज्यादा ही करती है. चाहे वह माँ अशिक्षित, गरीब या अपाहिज ही क्यों न हो ।
माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की इमारत खड़ी होती है। मेरी कल्पना में घर-परिवार एक बगीचा है, “माँ” उस बगीचे की माली (बागवान) है, और उसकी संतान  उस बगीचे के रंग-बिरंगे फूल है । जिस तरह माली अपने बगीचे के एक-एक फूल के सामान भाव से देखता है और उनका लालन-पालन करता है, ठीक उसी तरह “माँ” भी अपने सभी बच्चों का सामान भाव -दृष्टि से लालन-पालन करके, अपना प्यार व् ममता लुटाती है, सृष्टि के अनमोल वरदान को हर पल मेरा शत्-शत् नमन।

                                                                                                 सर्वाधिकार सुरक्षित














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