27 Apr 2020

एक संकल्प दिवस है रक्षा बंधन का पर्व

भारत के प्राचीन इतिहास को उठाकर देखें तो हम पाते है की भारत वर्ष में संकल्पों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । इतिहास कहता है कि बढ़े- बढ़े राजाओं महाराजाओं ने अपने संकल्प की रक्षा के लिए उसकी पूर्ति के लिए अपने राजपाट तक त्याग दिए राजा हरिश्चंद्र और बलि की कथाएँ सर्व विदित है। आज के दिन बहन अपने भाई को संकल्प सूत्र (राखी) बांधकर अपनी रक्षा के लिए संकल्पित करती है । रक्षाबंधन का पर्व एक ओर जहां भाई-बहन के अटूट रिश्ते को राखी की डोर में बांधता है, वहीं यह वैदिक ब्राह्मणों को वर्ष भर में आत्म शुद्धि का अवसर भी प्रदान करता है। वैदिक परंपरा अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन को श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं और यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने की जगह खुद अपनी आत्म शुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं।   
इस पर्व की महत्ता के पीछे भारतीय संस्कृति का इतना सुंदर इतिहास है जिसका कोई जवाब नहीं ऐसे एक नहीं अनेकों प्रसंग आते है जो इसके इतिहास का गौरव गान करते है । वास्तव में रक्षाबंधन एक संकल्प दिवस है इस दिन बहन अपने भाई को विश्वास,स्नेह रुपी सूत्र (राखी) बांधकर उसे अपनी रक्षा के लिए संकल्पित करती है जिसे भाई जीवनभर निभाता है ।मेरी सबसे प्रिय कथा महाभारत से सम्बन्धित है कहा जाता है की एक बार भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल का वध किया तो सुदर्शन को शिशुपाल की ओर इतना क्रोध से फेंका की उनकी ऊँगली में रक्त बहने लगा उस बहते हुए रक्त को रोकने के लिए द्रोपदी ने अपनी साड़ी का कपड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांधा जिसे ये कहकर कृष्ण ने स्वीकार कर लिया था की समय आने पर इसके एक-एक धागे का ऋण चुका दूंगा । भगवान कृष्ण द्रोपदी के इस प्रेम से भावुक हो गए और उन्होंने आजीवन सुरक्षा का न केवल वचन दिया बल्कि हर परिस्थितियों में पांडवों के साथ खड़े रहे और उनका मार्गदर्शन करते रहे । यह माना जाता है कि चीर हरण के वक्त जब कौरव राजसभा में द्रोपदी का चीर (वस्त्र) खींच रहे थे, तब कृष्ण ने उस छोटे से कपड़े को इतना बड़ा बना दिया था कि कौरव उसे पूरा खींच ही नहीं पाए।
भाई और बहन के निश्छल, निष्कपट प्रेम के प्रतीक इस पर्व से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की है पौराणिक  कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।
यह भी माना जाता है कि भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षा बंधन को शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है।
 एक कथा राजा बली की आती है दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी।
वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहाँ रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया।
जब बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी यथा रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा। आज माता-पिता और विद्यालयों का ये कर्तव्य है की हम अपनी आने वाली पीढ़ी को हमारी इस सनातनी विरासत की जानकारी दें और इनके महत्व को समझाएं । जिससे की आने वाली पीढ़ी भी हमारी गौरव और गरिमा से मंडित विरासत को संभालने में सक्षम बन सके।
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