26 May 2016

माता-पिता बच्चों को परिणामों के भय से बचाएं और उनके मार्गदर्शक बने


विद्यार्थियों के जीवन में सबसे बड़ी भूमिका में होते है मात-पिता, ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं और अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन से उनमें आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें  ।उन्हें आश्वस्त करें कि अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नहीं भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं कि एक असफलता हमारा जीवण समाप्त नहीं करती बल्कि जीवन जीने के और भी नए व अच्छे रास्ते खोल देती है ।
परीक्षाओं का परिणाम निकलने का मौसम है और इन दिनों ज्यादातर विद्यार्थी सफलता और असफलता  या इच्छानुरूप अंक प्राप्त होंगे या नहीं होंगे इसी प्रकार के विचारों के बीच अपनी आशा रुपी नौका में गोते खा रहे होंगे । ऐसे समय में आवश्यकता है कि माता-पिता अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं और अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन से उनमें आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें और उन्हें आश्वस्त करें की अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नहीं भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं की एक असफलता हमारा जीवन समाप्त नहीं करती बल्कि जीवन जीने के और भी कई सारे नए व अच्छे रास्ते खोल देती है ।
ऐसे समय में माता-पिता का ये कर्तव्य हो जाता है की वो अपने युवा हो रहे बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करें उनकी चेष्टाओं को समझने का प्रयत्न करें उनके मित्र बने ।  आज के माता-पिता की ये शिकायत होती है की बच्चा उनकी नहीं सुनता अपनी मनमानी करता है ये आज की पीढ़ी की प्रमुख समस्या है ,युवा हो रहे बच्चे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहते  है ।
यदि आप चाहते है कि आपके बच्चे आप के अनुसार अपने जीवन को एक सांचे में ढाले और जीवन को श्रेष्ठ मार्ग पर लेकर जाए तो उसके लिए ये आवश्यक हो जाता है की आप उन्हें वो सब करने दें जो वो चाहते है ,जी हाँ शायद आप को ये शब्द आश्चर्य में डाल दे परन्तु ये सत्य है आप जिन चीज़ों के लिए उन्हें रोकेंगे उनका मन उसी चीज़ की और अकारण ही आकर्षित होगा ।चाहे तो ये प्रयोग माता-पिता स्वयं अपने साथ करके देख सकते है। लेकिन हाँ इसका मतलब ये भी नहीं है कि बच्चे को हानि होती रहे और आप देखते रहें ।
 इसका एक सीधा सरल सा उपाय ये है की आप उन्हें कार्य करने से रोके नहीं बल्कि उससे होने वाली हानियों से उन्हें अवगत करायें । उन्हें समझाएं की ये करने से तुम्हें ये हानि होगी और नहीं करने से ये लाभ, और उसके द्वारा की गयी गलती के लिए उसे कोसते ना रहे बल्कि उसे आने वाले अवसरों के लिए सचेत करें ।
इस प्रयोग से दो लाभ है पहला तो ये की बच्चे को आपकी सोच पर विश्वास बड़ेगा और बच्चा भावनात्मक रूप से आप से और अधिक जुड़ जाएगा की जो बात आपने उसे बताई थी वो सही थी यदि वो आपकी बात मान लेता तो उसे लाभ होता दूसरा लाभ ये होगा की बच्चे को काम करके जो अच्छा या बुरा अनुभव हुआ है वो उसे सदैव याद रखेगा अच्छे लाभ उसकी योग्यता प्रदर्शित करेंगे उसके आत्मविश्वास को बढ़ायेंगे और बुरे अनुभव उसको कुछ सिखाकर जायेंगे । युवा हो रहे बच्चों के आप मार्गदर्शक बनिए न की उन पर हुक्म चलाने वाले तानाशाह नहीं क्योंकि बच्चे के मनोभाव कोमल होते है माता पिता की डांट- फटकार और कड़वी बातें बच्चे को मानसिक हानि पहुंचती है ।माता-पिता को इससे बचना चाहिए । लेकिन आज के माता-पिता यहीं चुक जाते है बच्चे के परसेंट उनकी आकांक्षा के अनुरूप नहीं हुए या बच्चा असफल हो गया तो बस घर का माहौल ही बिगड़ जाता है याद रहे डॉक्टर हमेशा रोग पर प्रहार करता है रोगी पर नहीं ।  
यदि बच्चा समझाने पर भी आपकी बात नहीं मान रहा है तो इसके दोषी बच्चे नही बल्कि आप स्वयं है यदि आपने शुरू से उन्हें अनावश्यक छूट न दी होती और उसमें संस्कारों का सिंचन किया होता तो आज ये परिस्थितियाँ नहीं होती अपनी कमी का ठीकरा हमें बच्चों पर नही फोड़ना चाहिए । आज हम सभी अपने बच्चों को डॉक्टरइंजीनियरसाइंटिस्टसी.ए.और न जानेक्या-क्या तो बनाना चाहते हैंपर उन्हें चरित्रवानसंस्कारवान बनाना भूल जाते हैं। यदि इस ओर ध्यान दिया जाएतो विकृत सोच वाली अन्य समस्याओं से आसानी से बचा जा सकेगा।
आज के बच्चे अधिक रूखे स्वभाव के हो गए हैं। वह किसी से घुलते-मिलते नहीं। इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग के इस युग में रोजमर्रा की जिंदगी में आमने-सामने के लोगों से रिश्ते जोड़ने की अहमियत कम हो गई है। बच्चा माता-पिता के पास बैठने की जगह कंप्यूटर पर गेम खेलना अधिक पसंद करता है । इसके लिए आवश्यक है की बच्चे के साथ भावनात्मक स्तर पर जुडें उसे पर्याप्त समय दें उसकी बात भी सुने और उपयुक्त सलाह दें उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियों के लिए उसे सराहें तो निश्चित रूप से बच्चा आप को भी समय देगा और आपकी बात सुनेगा और समझेगा ।


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