10 May 2016

शहीद दिवस...... विशेष लेख

एक राष्ट्र की धरोहर होता है “युवा” युवाओं के मजबूत कंधो पर ही राष्ट्र की प्रगति की आधार शिला रखी जाती है। वो युवा जो अपनी धारदार सोच और प्रगतिशील विचारों से किसी भी देश को गरिमामय स्थान दिलाता है  युवा काल युवावस्था का नाम नहीं है अपितु इसका सम्बन्ध  तो विचारों के युवापन से है युवा वो जिसमें गति हो जिसमें प्रवाह हो जिसमें चेतना हो जिस  व्यक्ति में ये गुण हो वो हर व्यक्ति युवा है ।भारत वर्ष के गौरवमय अतीत में ऐसे कई युवाओं का नाम आता है,जिन्होंने अपने ज्वलंत और निडर विचारों से समाज को सन्देश दिया और न केवल सन्देश दिया बल्कि आवश्यकता आने पर इतिहास के पन्नों को अपने बलिदान से सुर्ख कर दिया युवाओं की इस भीड़ में मुझे याद आते है ‘भगत सिंह'
 वो भगत सिंह जिसके ज़हन में प्रारम्भिक काल से ही देश को अंग्रेजी दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने की आकांक्षा हिलोरे लेती थी । भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था  अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्या काण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।।
चौबीस वर्ष की उम्र में पहुंचा युवक जहाँ आमतौर पर यौवन की नैसर्गिक मांग पर गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर स्त्री-सहवास एवं घर बसाने की इच्छा रखता है,  वहाँ भगतसिंह जैसे युवक ने इस उम्र में पहुंच कर देश की आजादी के लिए फांसी के फन्दे को अपनी नियति बना लिया। इसके लिए वे निस्संदेह हम सब को दृष्टि में आदर एवं अभिनंदन के पात्र हैं। ना केवल शहीड़-ए-आजम अभिनन्दन के पात्र है बल्कि ये प्राणोंत्कर्ष की परम्परा एक लम्बे समय से चली आ रही परंपरा है जिसमें उनसे पहले देश की आजादी के लिए सोलह वर्षीय किशोर खुदीराम बोसराम प्रसाद बिस्मिलअशफाकउल्ला खानरोशन सिंहराजेन्द्र लाहिडी जैसे युवक फांसी पर लटक चुके थे। यही नहीं, ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ जिनके सदस्य भगतसिंह भी थेके मास्टर माइण्ड माने जाने वाले चन्द्रशेखर आजाद भी उनकी फांसी के पूर्व ही इलाहाबाद के एक पार्क में पुलिस के साथ मुठभेड में मारे जा चुके थे। देश के लिए शहीद होने वाले इन सभी युवकों का जीवनविवाह एवं स्त्री प्रेम से अछूता रहा।
23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में जब भगतसिंह को फांसी दी गई तब उनके चेहरे का तेज़ अद्भुत अनोखा था उनका सीना गर्व से फूला हुआ था और मुंह पर “इन्कलाब जिंदाबाद” का नारा;  ये वो युवा थे जिन्होंने समय की मांग को पहचाना और मात्रभूमि के ऋण से उऋण हो गये 
जब हम आज के युवा को देखते है तो दुःख होता है की वो युवा जिसमें असीमित अपरिमित योग्यताएं छिपी है ।वो अपनी गरिमामय छवि को पाश्चात्य अन्धानुकरण में धूमिल कर रहा है ये दुःख का विषय है। आज समाज में आतंकवाद,भ्रष्टाचारआदि कई विकृतियां आ गयी है जो व्यक्ति के चरित्र और उसकी राष्ट्र प्रेम की भावनाओं को खा जाने के लिए आमादा है आज इन समस्याओं के बंधन से राष्ट्र को आज़ाद कराने के लिए  और इन विकृतियों को जड़मूल से उखाड़ फेंकने के लिए ज़रुरत है भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव जैसे सपूतों की 
हे युवाओं जागो और अपनी देश की अस्मिता भारत माता के स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए अपने व्यक्तित्व और विचारों में तेजस्विता लाओ तभी हमारा देश विकास की और बढ़कर विश्व गुरु  के पद पर आसीन हो सकेगा ,और निश्चित रूप से यही हमारे शहीदों के लिए सच्ची श्रधांजलि होगी ।



                                                            सर्वाधिकार सुरक्षित







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