22 Aug 2017

तीन तलाक का खेल ख़त्म हुआ


मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के लिए आज सोने का सूरज उगा है  ये तारीख और ये फैसला इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता का उद्घोष करने वाले इस भारत देश में अब हमारी मुस्लिम बहनों को भी आज समाज में बराबरी का दर्जा मिला है। सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक पर आये फैसले के द्वारा अब हमारा देश मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के गौरव, गरिमा और अस्मिता की रक्षा करने में समर्थ हुआ है साथ ही अब सरकार को संविधान और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हिन्दू मेरिज एक्ट की तरह मुस्लिम मेरिज एक्ट भी बनाना चाहिए जिसमें विवाह की उम्र, औरतों के अधिकार और विकट परिस्थितियों में तलाक लेने का प्रावधान हो जिससे की मुस्लिम औरतों का जीवन भी अधिक सुरक्षित हो सके।
ये ऐतिहासिक फैसला उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो हिन्दू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य बड़ाने के लिए  ये कहते फिरते है की मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है। यदि सरकार के मन में भेदभाव होता तो सरकार मुसलमान औरतों के तीन तलाक के कारण उनके उजड़ते परिवार, समाज और उनके बच्चों की ज़िन्दगी के बारे में नहीं सोचती मुस्लिम महिलाओं के दर्द और परेशानियों को इस सरकार ने बिना किसी भेदभाव के समझा और सशक्त बहस और मुद्दों पर बात करते हुए इस समस्या का निराकरण किया। जिसे कांग्रेस सरकार पिछले 7सालों में समझ नहीं पायी कोशिश उन्होंने भी की लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण धराशायी हो गयी।
हालांकि अभी भी कई मौलवी मन ही मन इस फैसले से खुश नहीं है उनका मानना है की ये उनके धर्म में हस्तक्षेप है। उनके धर्म से छेड़छाड़ है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ कि ये कैसा धर्म है जिसमें पुरुष वर्ग द्वारा की गयी गलती को एक स्त्री जीवन भर भुगते, उसके बच्चे यतीम हो जाए, उसका घर खानदान समाज में बदनाम हो जाए, और वो शख़्स जिसने तलाक देने का पाप किया है वो बिना किसी भय और दुःख के अपने लिए नई नवेली दुल्हन लाकर फिर से घर बसा ले और इस घृणित कृत्य को एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार कर सके और कभी उस शोहर को वापस पुरानी पत्नी की याद आ जाये तो वो फिर से उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए उसका हलाला करवाए गौर किया जाना चाहिए इस सब बखेड़े में वो औरत जो अपना घरबार छोड़कर आपका घर बसाने आई थी उसे किस-किस दोज़ख से गुजरना पढ़ता वो कितने मानसिक अवसाद  और तनाव से गुजरती होगी। क्या इस्लाम में  स्त्रियों को केवल इतना ही सम्मान मिला हुआ है नहीं इस्लाम एक महान धर्म है। हर धर्म की तरह इसमें भी विकृतियाँ है जिन्हें दूर करने का समय आ गया है। हिन्दू धर्म में सती प्रथा जैसी विकट कुरीतियाँ शामिल थी लेकिन उनका भी निषेध किया गया। इसी प्रकार किसी भी धर्म में यदि कोई विकृति आ गयी है या किसी रीति-रिवाज़ का दुरुपयोग हो रहा हो तो ऐसे में उस धर्म के ज्ञाता और जानकार लोगों का ये नैतिक कर्तव्य हो जाता है की वो उन विकृतियों को समाप्त कर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सहायक सिद्ध हो। 
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