गणतन्त्र दिवस यानी की पूर्ण स्वराज्य दिवस ये केवल एक दिन याद की जाने वाली देश
भक्ति नहीं है बल्कि अपने देश के गौरव ,गरिमा की रक्षा के लिए मर
मिटने की उद्दात भावना है | राष्ट्र
हित में मर मिटने वाले देश भक्तों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है अपने राष्ट्र से
प्रेम होना सहज-स्वाभाविक है। देश का चाहे राजनेता हो योगी हो सन्यासी हो रंक से
लेकर रजा तक का सबसे पहला धर्म राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों को आहूत करने
के लिए तत्पर रहना ही है | देशप्रेम से जुड़ी
असंख्य कथाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज है। भारत जैसे विशाल देश में इसके असंख्य
उदाहरण दृषिटगोचर होते हैं। हम अपने इतिहास के पन्नों में झांक कर देखें तो
प्राचीन काल से ही अनेक वीर योद्धा हुए जिन्होंने भारतभूमि की रक्षा हेतु अपने
प्राण तक को न्योछावर कर दिए। पृथ्वीराज चौहाण, महाराणा
प्रताप, टीपू सुल्तान, बाजीराव, झांसी की रानी लक्ष्मीबार्इ, वीर कुंवर सिंह, नाना साहेब, तांत्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्रबोस, सरदार बल्लभ भार्इ पटेल, रामप्रसाद विसिमल जैसे असंख्य वीरों के योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते।
इन्होंने मातृभूमि की रक्षा हेतु हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
विदेशियों को देश से दूर रखने और फिर स्वतंत्रता हासिल
करने में इनका अभिन्न योगदान रहा। आज हम स्वतंत्र परिवेश में रह रहे हैं। आजादी ही
हवा में हम सांस ले रहे हैं, यह सब संभव हो पाया है
अनगिनत क्रांतिकारियों और देशप्रेमियों के योगदान के फलस्वरूप। लेखकों और कवियों, गीतकारों आदि के माध्यम से समाज में देशप्रेम की भावना को प्रफुल्लित करने
का अनवरत प्रयास किया जाता है। रामचरित मानस में राम जी जब वनवास को निकले तो अपने
साथ अपने देश की मिट्टी को लेकर गये जिसकी वो नित्य प्रति पूजा करते थे | राष्ट्रप्रेम की भावना इतनी उदार और व्यापक है कि राष्ट्रप्रेमी समय आने
पर प्राणों की बलि देकर भी अपने राष्ट्र की रक्षा करता है। महर्षि दधीचि की
त्याग-गाथा कौन नहीं जानता, जिन्होंने समाज के कल्याण
के लिए अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया था। सिख गुरुओं का इतिहास राष्ट्र की बलि-वेदी
पर कुर्बान होने वाली शमाओं से ही बना है। गुरु गोविंद सिंह के बच्चों को जिंदा
दीवारों में चिनवा दिया गया। उनके पिता को भी दिल्ली के शीशगंज गुरूद्वारे के
स्थान पर बलिदान कर दिया गया। उनके चारों बच्चे जब देश-प्रेम की ज्वाला पर होम हो
गए तो उन्होंने यही कहा कि…. चार गए तो क्या हुआ, जब
जीवित कई हज़ार।
ऐसे
देशप्रेमियों के लिए हमारी भावनाओं को माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प के माध्यम से
व्यक्त किया है--
मुझे तोड़ लेना
बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक,
मातृभूमि पर
शीश चढ़ने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
देश-रक्षा
हमारा कर्तव्य है- जिस मिट्टी का हम अन्न खाते हैं, उसके
प्रति हमारा स्वाभाविक कर्तव्य हो जाता है कि हम उसकी आन-बान-मान की रक्षा करें।
उसके लिए चाहें हमें अपना सर्वस्व भी लुटाना पड़े तो लुटा दें। सच्चे प्रेमी का यही
कर्तव्य है कि वह बलिदान के अवसर पर सोच-विचार न करे, मन
में लाभ-हानि का विचार न लाए, अपितु प्रभु-इच्छा मानकर
कुर्बान हो जाए।
सच्चा
देशभक्त वही है, जो देश के लिए जिए और उसी के लिए मरे। 'देश के लिए मरना' उतनी बड़ी बात नहीं, जितनी कि 'देश के लिए जीना'। एक दिन आवेश, जोश और उत्साह की आँधी में बहकर
कुर्बान हो जाना फिर भी सरल है, क्योंकि उसके दोनों
हाथों में लाभ है। मरने पर यश की कमाई और मरते वक्त देश-प्रेम का नशा। किंतु जब
देश के लिए क्षण-क्षण, तिल-तिल कर जलना पड़ता है, अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं की नित्य बलि देनी पड़ती है, रोज़-रोज़ भग़त सिंह बनना पड़ता है, तब यह मार्ग
बहुत कठिन हो जाता है।
सच्चा देश-प्रेमी
वही है, जो अपनी योग्यता, शक्ति, बुद्धि को राष्ट्र का गौरव बढ़ता हो। आज का युवा चाहे तो क्या नहीं
कर सकता परन्तु पश्चिम की बयार में खोया हुआ युवा अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन
नज़र आता है |आज दुर्भाग्य से व्यक्ति इतना आत्मकेंद्रित
हो गया है कि वह चाहता है कि सारा राष्ट्र मिलकर उसकी सेवा में जुट जाए। 'पूरा वेतन, आधा काम' उसका नारा बन गया है। आज देश में किसी को यह परवाह नहीं है कि उसके किसी
कर्म का सारे देश के हित पर क्या प्रभाव पड़ेगा। हर व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध
करने में लगा हुआ है यही कारण है कि भारतवर्ष नित्य
समस्याओं के अजगरों से घिरता चला जा रहा हैं। जब तक हम भारतवासी यह संकल्प नहीं
लेते कि हम देश के विकास में अपना सर्वस्व लगा देंगे, तब
तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता, और जब तक देश
का विकास नहीं होता, तब तक व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता।
अतः हमें मिलकर यही निश्चय करना चाहिए कि आओ, हम
राष्ट्र के लिए जियें।
हमारा
देश भारत अत्यन्त महान एवं सुन्दर है। यह देश इतना पावन एवं पवित्र है कि यहाँ
देवता भी जन्म लेने को लालायित रहते हैं। विश्व में इतना गौरवशाली इतिहास किसी देश
का नहीं मिलता जितना की भारत का है हमारी यह जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
कहा गया है - 'जननी
जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' अर्थात जननी और जन्मभूमि
स्वर्ग से भी बढ़कर है। हमारे देश का नाम भारत है, जो
महाराज दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रतापी पुत्र 'भरत' के नाम पर रखा गया। पहले इसे 'आर्यावर्त' कहा जाता था। इस देश में राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, वर्धमान महावीर आदि महापुरुषों
ने जन्म लिया। इस देश में अशोक जैसे प्रतापी सम्राट भी हुए हैं। इस देश के
स्वतंत्रता संग्राम में लाखों वीर जवानों ने लोकमान्य तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरोजिनी नयाडू आदि से
कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
हिमालय हमारे
देश का सशक्त प्रहरी है, तो हिन्द महासागर इस भारत माता के
चरणों को निरंतर धोता रहता है। हमारा यह विशाल देश उत्तर में कश्मीर से लेकर
दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला
हुआ है। इस देश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करते हुए कवि रामनरेश त्रिपाठी लिखते
हैं-''शोभित है सर्वोच्च मुकुट से, जिनके दिव्य देश का मस्तक।
गूँज रही हैं
सकल दिशाएँ, जिनके जय गीतों से अब तक।''हमारे देश में 'विभिन्नता में एकता' की भावना निहित है। यहां
प्राकृतिक दृष्टि से तो विभिन्नताएं हैं ही, इसके
साथ-साथ खान-पान, वेशभूषा, भाषा-धर्म
आदि में भी विभिन्नताएं दृष्टिगोचर होती हैं। ये विभिन्नताएँ ऊपरी है, ह्नदय से हम सब भारतीय हैं। भारतवासी उदार ह्नदय वाले हैं और ‘वसुधैव कुटुम्बम्‘ की भावना में विश्वास करते
है। यहां के निवासियों के ह्नदय में स्वदेश-प्रेम की धारा प्रवाहित होती रहती है।
हमारे देश भारत की संस्कृति अत्यंत महान् है। यह एक ऐसे मजबूत आधार
पर टिकी है जिसे कोई अभी तक हिला नहीं पाया है। कवि इकबाल कह गए हैं-
'यूनान
मिस्त्र रोम, सब मिट गए जहाँ से, बाकी मगर है अब तक नामोशियां हमारा।
कुछ बात कि
हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमा हमारा।'
वर्तमान समय
में हमारा देश अभी तक आध्यात्मिक जगत् का अगुआ बना हुआ है। स्वामी विवेकानंद ने
अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में भारतीय संस्कृति के जिस स्वरूप से पाश्चात्य
जगत् को परिचित कराया था, उसकी अनुगूँज अभी तक सुनाई पड़ती है। भारतीयों
ने अस्त्र-शस्त्र के बल पर नहीं बल्कि प्रेम के बल पर लोगों के ह्नदय पर विजय
प्राप्त की। वैसे तो हर व्यक्ति में अपने देश के प्रति देशप्रेम की भावना किसी न
किसी रूप में मौजूद होती ही है, अपितु हर व्यक्ति इसे
जाहिर नहीं कर पाता। हमें अपने देशप्रेम की भावना को अवश्य उजागर करना चाहिए। इसी
भावना से ओत-प्रोत होकर खिलाड़ी खेल के मैदानों पर और सैनिक सीमा पर असाधारण
प्रदर्शन कर जाते हैं। अगर हर व्यक्ति अपने दायित्वों का निर्वाह भलीभांति करेगा
और न खुद से तथा न किसी अन्य के साथ गलत करेगा तो यह उसका अपने देश के लिए एक
उपहार ही होगा। इसे भी देशप्रेम के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। भारतवर्ष का
लोकतंत्र आज भी विश्व में अनोखा है। अतः देश के हर निवासी को कुछ ऐसा करना चाहिए
कि हमारे देश के इतिहास में हमारा नाम सदा सर्वदा के लिए अमर हो जाए और लोग हमेशा
हमारे योगदान की सराहना करें।
सर्वाधिकार
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