26 Jan 2017

विश्वेश्वर से स्वामी विवेकानंद बनने तक की यात्रा.....


आज से 154 वर्ष पूर्व  एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम  विश्वेश्वर रखा गया जिसे घर में प्यार से नरेंद्र के नाम से बुलाया जाता था । लेकिन ये बालक  अपनी अद्भुत गुरु सेवा और कृतित्व के कारण स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व विख्यात हुआ  । ये विवेकानंद स्वामी बनने से पहले नरेन्द्र नाम के एक साधारण से बालक थे इनका जन्म कोलकता में एक संपन्न परिवार में हुआ । नरेंद्र पूर्व के संस्कारों और पश्चिम की सभ्यता का समन्वय थे क्योंकि  इनके पिता पाश्चात्य संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थे, जबकि इनकी माता भारतीय सनातन संस्कृति के संस्कारों और आध्यात्मिक ज्ञान से अविभूत एक भारतीय नारी थी । जिनका ज्यादातर समय आध्यात्मिक वार्तालाप आदि में बीतता था ।नरेंद्र पर अपनी माँ के द्वारा दिए गये संस्कारों का अत्यधिक प्रभाव था ।अपने गुरु ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के ज्ञान और माँ के संस्कारों का ही प्रभाव था की अपने सिर्फ 40 वर्षों के जीवन काल में उन्होंने ऐसे कार्य किये जिसने समाज और समूचे देश को नई दिशा दी नई चेतना दी और आज 15वर्षों के बाद भी उनके विचारों और आदर्शों की प्रासंगिकता बनी हुई है । नरेंद्र के जीवन में दुःख और संकट के बदल तब उमड़ आये जब उनके पिता का देहावसान हो गया घर चलाने के पर्याप्त साधन उनके पास नहीं थे। ऐसी परिस्थितियों में भी नरेंद्र ने बड़ी शांति और हिम्मत से काम लिया मुझे वो घटना याद आती है जिसमें नरेंद्र नौकरी मांगने के लिए अपने एक रिश्तेदार के पास जाते है वो रिश्तेदार उनको बोलता है की तुम रामकृष्ण परमहंस के पास चले जाओ वो तुम्हें किसी मंदिर की सेवा दिला देंगे और तुम्हारा गुजरा चल जाएगा नरेंद्र तब तक विवेकानंद नहीं हुए थे। नरेंद्र एक नौकरी की अभिलाषा लेकर परमहंस के पास गये और उन्होंने परमहंस से कहा की मुझे एक नौकरी दे दो मैं बहुत गरीब हूँ परमहंस ने नरेंद्र को देखा और मुस्करा दिए आँखों से इशारा करते हुए बोले की वो सामने काली माता खड़ी है उनसे बोल दे वो दे देगी विवेकानन्द ने जाकर जैसे ही काली माता की प्रतिमा को देखा तो मंत्रमुग्ध हो गये और जो वो मांगने आये थे उसे भूल कर अपने लिए सद्बुद्धि और देश सेवा माँगने लगे ऐसा उनके साथ एक बार नहीं कई बार हुआ जैसे ही वो नौकरी के लिए बोलने का प्रयत्न करते उनके मुंह  से देश सेवा और सद्बुद्धि प्राप्त करने की बात ही निकलती ।अंत में वे परमहंस के पास आये सारी घटना उनको बताई तब परमहंस बोले तुम्हारा जन्म एक ऊँचे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुआ।  परमहंस ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया और उनके सानिध्य में रहकर नरेंद्र ने अध्यात्म के कई सोपान पार किये एवं उनकी सूक्ष्म उपस्थिति आज भी हमारा मार्ग दर्शन कर रही है। स्वामी विवेकानंद हम युवाओं के लिए एक कुछ महत्वपूर्ण काम छोड़कर गये है । उन्हें गये हुए एक शताब्दी से ज्यादा समय हो गया लेकिन उनका काम अभी भी अधूरा है जिसे हमने पूरा करना है और वो कार्य क्या है की हम जहां है जैसे है कुछ श्रेष्ठ कार्य करें, समाज और राष्ट्र का उत्थान हो ऐसा कार्य करें । स्वामी जी ने अपने जीवन काल में जब की देश गुलाम था और समाज में  अस्प्रश्यता, जातिवाद, अन्धविश्वासजैसी कुरीतियाँ व्याप्त थी और राजे रजवाड़े मार काट में लगे हुए थे उस समय विवेकानंद ने कहा था मैं अपनी आँखों से देख रहा हूँ के भारत वर्ष फिर से विश्व गुरु के पद पर आसीन होने जा रहा है उनकी अंतर दृष्टि कितनी सूक्ष्म रही होगी। हम परम सौभाग्यशाली है कि वर्तमान समय में हम विश्व के सबसे युवा देश है भारत की 65 % से अधिक जनसंख्या युवा है और आने वाले समय में 24 करोड़ नये युवा देश में होने वाले है ।हम चाहे तो स्वामी जी के स्वप्न को सच कर सकते है ।भारत को विश्व गुरु के पद पर आसीन कर के बस आवश्यकता है तो संकल्प शक्ति की। स्वामी विवेकानंद एक कहानी कई बार सुनाया करते थे की एक शेरनी थी वो गर्भवती थी एक शिकारी उसके पीछे शिकार के लिए दौड़ा और उसने उस पर बाण चलाया शेरनी गिर पड़ी और उसके गर्भ से बालक बाहर निकल आया जिसका पालन  पोषण हिरनों ने अपने झुण्ड में रखकर किया वो शेरनी का बच्चा हिरनों के झुण्ड में रहता और उन्हीं के जैसा आचरण करता एक दिन एक शेर ने हिरनों के झुण्ड को देखा और वो शिकार की इच्छा से उन पर कूद पढ़ा तब उसने देखा की हिरनों के झुण्ड के साथ एक शेरनी का बच्चा भी जान बचाकर भाग रहा है। उसने हिरनों को तो छोड़ दिया और शेरनी के बच्चे को पकड़ कर उससे पुछा की भाई तुम क्यों डरकर भाग रहे हो । उस बच्चे ने बोला में भी तो हिरन हूँ । ये सुनकर शेर को आश्चर्य हुआ उसने नदी के किनारे ले जाकर उस बच्चे को उसकी सूरत दिखाई और कहा की तू भी मेरे जैसा ही ताकतवर शेर है तू हिरन नहीं है बच्चे को भी अपना प्रतिबिम्ब देखकर अपने स्वरूप का ज्ञान हुआ और उसने दहाड़ना शुरू कर दिया प्रस्तुत कहानी आज के युवाओं की स्थिति दर्शाती है आज का युवा भी अपनी योग्यताओं और अपने वास्तविक स्वरूप को छोड़ कर पश्चिम की बयार में बहता जा रहा है वर्तमान समय में आवश्यकता है की आज का युवा अपनी योग्यताओं को पहचाने और संकल्प ले की वो समाज और देश हित के लिए अपने जीवन का परिष्कार करेगा तभी ये युवा दिवस मनाना सार्थक होगा ।  

सर्वाधिकार सुरक्षित




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