राजस्थान की
भूमि वीर प्रसूता रही है इस भूमि पर ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने
देश की रक्षा में न केवल अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया बल्कि शत्रु दल को भी
अपनी वीरता का लोहा मानने पर विवश कर दिया ।
लेकिन
दुर्भाग्य ये रहा की हमारे देश का इतिहास ऐसे मुर्ख पक्षपातियों द्वारा लिखा गया
जिन्होंने इन महान योद्धाओं के गौरव को निम्न आंकते हुए उन विदेशी लुटेरों को
हमारा आदर्श बना दिया जो इस राष्ट्र के थे ही नहीं । आज अकबर को द ग्रेट अकबर(महान
अकबर) कहा जाता है जबकि महान अकबर नहीं बल्कि महाराणा थे इस वीर योद्धा ने ये शपथ
ली थी की अपनी मेवाड़ की भूमि को कभी गुलाम नहीं होने दूंगा अपने देश की रक्षा के
लिए वो निरंतर अकबर से लोहा लेते रहे ।
हम महाराणा के
बारे में जानेंगे तो हमें मालूम होगा की अकबर द ग्रेट नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि
महाराना प्रताप द ग्रेट कहा जाना चाहिए था। सात फिट दो इंच की हाईट इतना ही ऊँचा
उनका भला जिसका वजन बहत्तर किलो और दो सौ किलो का कवच जिसे उठाकर पहनने
वाले महाराणा जब युद्ध क्षेत्र में चेतक पर बैठ कर युद्ध का उद्घोष करते थे
तो शत्रुओं के पैरो के नीचे की ज़मीन खिसक जाती थी और उनका नाम सुनते ही शत्रु दल
की स्त्रियों के गर्भ गिर जाते थे इतना बलशाली योद्धा इस भूमि पर हुआ है ।
कल्पना कीजिये
प्रताप कितने शक्तिशाली रहे होंगे। उन्होंने राज्य का लोभ
त्यागा और वन में चले गये राज्य तो उनके पिता उदयसिंह सम्हाल ही रहे थे ।उन्होंने
अपने आप को इस प्रकार सम्भाला कि कितनी ही प्रतिकूलताएं आई लेकिन उन्होंने हार नहीं
मानी उदयपुर में अकबर ने सेना भेजी विधर्मी बनाने के लिए उस समय महाराणा के पास
केवल 40 हजार सैनिक थे और अकबर की सेना में सवा लाख
योद्धा लेकिन जब युद्ध हुआ तो महाराणा के 40 हजार सैनिकों में से कुछ ही मरे होंगे
और अकबर की सवा लाख सेना को इतनी बुरी तरीके से खदेड़ा गया की उन्हें जान बचाकर
भागना पड़ा प्रताप अपने पूरे जीवन स्वतंत्र ही जिये और स्वतंत्र ही उन्होंने अपने
प्राण त्याग दिये । अकबर के साथ उनका पैंतीस साल तक संघर्ष चलता रहा । महाराणा को
पराजित करने के लिए अकबर मोर्चे पर मोर्चे बनाता रहा बढ़ी बढ़ी सेनाएं और सेनानी
भेजता रहा लेकिन हर बार वो असफल रहा यहाँ तक की अकबर खुद भी युद्ध में
आया लेकिन उसे भी महाराणा के सामने मुंह की खानी पढ़ी महाराणा के पास कोई विशेष
सेना नहीं थी बल्कि जंगल में रहने वाले भील और गरीब लोग थे लेकिन उनमें देश
भक्ति और देश प्रेम की भावना कूट–कूट कर भरी हुई थी ।
महाराणा के समय
में कई राजपूत राजा थे जिन्होंने अकबर को शासन सौंप दिया था या तो फिर अधीनता
स्वीकार कर ली थी लेकिन महाराणा ने ऐसा नहीं किया इतिहास कहता है की अकबर जब मरा
तो उसे इसी बात का दुःख रहा की वो महाराणा को परास्त नहीं
कर सका इसे कहते है देश के लिए जीना देश के लिए मरना । ऐसे वीर सपूत को जनने वाली
राजस्थानी भूमि तुम धन्य हो।
सर्वाधिकार
सुरक्षित
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