22 Oct 2017

अच्छे दिन आने वाले है” क्या आ गये किसानों के अच्छे दिन ?

राजनैतिक परिस्थितियाँ इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो गई हैं कि देश का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हमारा अन्नदाता किसान आज विकट परिस्थितियों से जुझ रहा है इसका कारण है कि वो अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है । क्या ये सरकार इतनी नाकारा हो गयी है कि अपना अधिकार मांगने वाले किसान पर गोली दाग दे कढ़ी धूप, बरसात और हाढ़ कंपाती सर्दी में जो किसान अपनी मेहनत और खून पसीने से धरती की छाती को फोड़कर बीज बोता है । उधार लेकर बीज,खाद,सिंचाई और दवाई की व्यवस्था करता है हम जैसे लाखों लोगों का पेट पालता है यदि वो किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है तो क्या ये अनुचित है अपराध है? वृक्ष की सबसे महत्वपूर्ण इकाई उसकी जड़े है यदि उनसे ही नाता टूट जाये तो बड़े से बड़ा वृक्ष को  भी धराशायी होने में समय नहीं लगता किसान की समाज में यही स्थिति है यदि इन जड़ों को हिलाने या नुकसान पहुँचने का प्रयास होगा तो निश्चित रूप से विकास रुपी वृक्ष धराशयी हो जायेगा । देश में विकास क्या केवल उद्योगों एवं मशीनों से ही आएगा ?  सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि हर इकाई का अपना महत्व है उपयोगिता है किसी को भी नज़रंदाज़ करने की भूल नहीं की जा सकती ।
इस आन्दोलन में केवल किसान ही भाग नहीं ले रहा बल्कि घर में बैठा उसका भूखा, प्यासा परिवार भी शामिल है,जिसकी आँखों में आंसू हैं इतिहास सक्षी है दुखियों की आह और आंसुओं ने बड़े–बड़े सत्ताधारियों को मुंह के बल पछाड़ा है । आज सरकार द्वारा उस किसान के ऊपर उसे चुप करने, दबाने कुचलने के लिए गोली तक चलवा देना और फिर मृतकों को मुआवजा देना निश्चित रूप से सरकार की असफलता और संवेदनहींनता को दर्शाता है । जी हाँ,ये वास्तविकता उसी सरकार की है जिसे उम्मीदों की पालकी पर बिठाकर इसी जनता ने सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठाया था ।
परिस्थिति ये है कि आज की सरकार तब तक किसी आन्दोलन को महत्व नहीं देती जब तक की कोई बढ़ी घटना नहीं घट जाती और क्या कारण है की किसान आन्दोलन हिंसक न हो जिन लोगों की जान चली गयी है क्या मुआवजा देने से उनके परिवार की भरपाई हो पाएगी क्या सरकार के प्रतिनिधि जो बढ़ी कुर्सियों को दोनों हाथ से थाम कर बैठे है वो एक करोड़ रूपये के एवज में अपने पुत्र परिवार की मृत्यु को स्वीकार करंगे ।
सरकार द्वारा घोषित किया गया की किसानो की मांगे मान ली गई है । वास्तव में ये सरकार द्वारा फूट डालो शासन करो की निति का अनुसरण था । जिसके द्वारा किसानो को दो भागों में बाँट दिया गया अब इन दो धड़ो में जिसने आपकी हाँ में हाँ मिलाई वो धन्य-धन्य हो गया लेकिन जिसने मुद्दे की और हक की बात की वो दोषी करार कर दिया गया यहाँ तक की उस पर गोलियां भी बरसा दी गयी। ये लोकतंत्र की हत्या है ।
सरकार के प्रतिनिधि कह रहे हैं कि गोली हमने नहीं चलाई आन्दोलन में कुछ विपक्ष के लोग माहौल बिगाड़ने का काम कर रहे हैं जबकि वहां के पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कुछ फायरिंग हमारी तरफ से भी हुई है ये दोनों बयान सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगाते है क्योंकि यदि पुलिस ने गोली नहीं चलाई तो सरकार मृतकों को एक –एक करोड़ देने के लिए क्यों मरी जा रही है ? अब इसे क्या समझा जाए क्या सरकार और पुलिस प्रशासन में तालमेल नहीं है या पुलिस प्रशासन निरंकुश हो गया है मुझे तो लगता है आने वाले दिनों में आपको ये भी सुनने को मिल सकता है की किसान आपस में ही एक दुसरे को गोली मार रहे है क्या आप ने चुनावों में अच्छे दिन इन्ही परिस्थितियों को कहा था क्या इसी के लिए शिवराज सरकार को सत्ता सौंपी थी।
यदि ये सरकार वाकई किसानो की मौत को लेकर दुखी है तो इस सरकार को दान बांटने और आड़े टेड़े बयान देने की जगह जल्दी से जल्दी किसानो को उनकी मेहनत का उचित मूल्य देना जिससे ये आन्दोलन और इससे होने वाली क्षति से बचा जा सके । 
सर्वाधिकार सुरक्षित

No comments:

Post a Comment

युवा नरेन्द्र से स्वामी विवेकानंद तक....

  जाज्वल्य मान व्यक्तित्व के धनी स्वामी विवेकानंद ‘ विवेकानंद ’ बनने से पहले नरेन्द्र नाम के एक साधारण से बालक थे। इनका जन्म कोलकता में एक स...